गाजियाबाद वाईबीएन संवाददाता
भारत में सड़क सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा रहा है, खासकर दोपहिया वाहन चालकों के लिए, जो सड़क दुर्घटनाओं में सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। इन दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों और गंभीर चोटों का एक प्रमुख कारण हेलमेट का उपयोग न करना है। इसी समस्या से निपटने के लिए "हेलमेट नहीं तो पेट्रोल नहीं" अभियान की शुरुआत की गई। यह अभियान सड़क सुरक्षा को बढ़ावा देने और लोगों को हेलमेट पहनने के लिए प्रेरित करने का एक प्रभावी प्रयास साबित हुआ है।
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अभियान की शुरुआत
"हेलमेट नहीं तो पेट्रोल नहीं" अभियान की अवधारणा कोई नई नहीं है। इसकी शुरुआत अलग-अलग राज्यों और शहरों में समय-समय पर की गई, लेकिन इसे व्यापक स्तर पर लागू करने का प्रयास हाल के वर्षों में तेज हुआ। भारत में इस अभियान का प्रयोग उत्तर प्रदेश के नोएडा में साल 2019 में देखने को मिला। उस समय गौतमबुद्ध नगर के तत्कालीन जिलाधिकारी ने इस नियम को लागू किया था, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए थे। इस सफलता के बाद, उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे पूरे राज्य में लागू करने की दिशा में कदम उठाए।
No हेलमेट No पेट्रोल
हालांकि, इस अभियान को व्यापक और व्यवस्थित रूप से लागू करने की शुरुआत उत्तर प्रदेश में जनवरी 2025 में हुई। परिवहन आयुक्त ब्रजेश नारायण सिंह ने 8 जनवरी, 2025 को एक आधिकारिक पत्र जारी कर सभी पेट्रोल पंप संचालकों को निर्देश दिया कि बिना हेलमेट के दोपहिया वाहन चालकों को ईंधन न दिया जाए।
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इस नीति को पूरे राज्य में 26 जनवरी, 2025 (गणतंत्र दिवस) से सख्ती के साथ लागू करने का फैसला लिया गया। इस अभियान का उद्देश्य सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाना और हेलमेट के प्रति जागरूकता बढ़ाना था। कई अन्य राज्यों जैसे दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में भी इस तरह के नियम पहले से मौजूद थे, लेकिन उत्तर प्रदेश में इसे बड़े पैमाने पर लागू करने की पहल ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना दिया।
अभियान का प्रभाव
"हेलमेट नहीं तो पेट्रोल नहीं" अभियान का प्रभाव विभिन्न स्तरों पर देखा गया। सबसे पहले, इसने लोगों के व्यवहार में बदलाव लाने की कोशिश की। कई शहरों में पेट्रोल पंपों पर बिना हेलमेट वालों को ईंधन देने से मना करने की शुरुआत हुई, जिसके कारण दोपहिया वाहन चालकों को मजबूरन हेलमेट का उपयोग करना पड़ा।
प्रदेश में हुआ लागू
2025 में उत्तर प्रदेश में अभियान शुरू होने के बाद भी शुरुआती संकेत सकारात्मक रहे। गाजियाबाद,मेरठ, चंदौली, हापुड़ और वाराणसी जैसे जिलों में पेट्रोल पंप संचालकों ने इस नियम का पालन शुरू किया। हालांकि, कुछ जगहों पर इसका विरोध भी देखने को मिला। कई वाहन चालकों ने इसे अपनी स्वतंत्रता पर हमला बताते हुए पेट्रोल पंप कर्मियों के साथ बहस की, लेकिन प्रशासन ने सख्ती से नियम लागू करने के लिए सीसीटीवी निगरानी और जुर्माने जैसे कदम उठाए।
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जागरूकता अभियान चलाया गया
इस अभियान का एक अप्रत्यक्ष प्रभाव यह भी हुआ कि लोगों में हेलमेट के महत्व को लेकर जागरूकता बढ़ी। परिवहन विभाग और यातायात पुलिस ने स्कूलों, कॉलेजों और सार्वजनिक स्थानों पर जागरूकता कार्यक्रम चलाए, जिसमें हेलमेट पहनने की अनिवार्यता पर जोर दिया गया। मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत हेलमेट न पहनना पहले से ही दंडनीय अपराध है, लेकिन इस अभियान ने इसे और सख्ती से लागू करने का रास्ता खोला।
हालांकि, कुछ चुनौतियां भी सामने आईं। कई ग्रामीण क्षेत्रों में लोग इस नियम का पालन करने में उदासीन दिखे। कुछ पेट्रोल पंपों पर कर्मचारी ग्राहकों के दबाव में नियम तोड़ते भी पाए गए। वाराणसी जैसे शहरों में कुछ पंपों ने हेलमेट उपलब्ध कराकर इस नियम को हल्का करने की कोशिश की, जिससे अभियान का मकसद कमजोर हुआ। फिर भी, प्रशासन ने इसे लागू करने के लिए सख्त कदम उठाए, जिसमें पंप संचालकों पर कार्रवाई और चालान की प्रक्रिया शामिल थी।
निष्कर्ष
"हेलमेट नहीं तो पेट्रोल नहीं" अभियान सड़क सुरक्षा की दिशा में एक साहसिक और प्रभावी कदम है। इसकी शुरुआत भले ही अलग-अलग समय पर हुई हो, लेकिन 2025 में उत्तर प्रदेश में इसे बड़े पैमाने पर लागू करने का प्रयास इसे एक मॉडल नीति बना सकता है।