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पूरे देश में इन दिनो नवरात्र का पर्व मनाया जा रहा है, हम आप को नियमित हमारे लेख के माध्यम से गाजियाबाद के उन प्राचीन और ऐतिहासिक के बारे में बता रहे हैं, जिनका महत्व इतिहास, पुराणों आदि से जुड़ा हुआ है और नई पीढ़ी शायद उन धरोहरों को भूला रही है, आज आप पढ़िए श्री रामायण काल के रामसेतु से जुड़ी कड़ी की।
गाजियाबाद उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख औद्योगिक और ऐतिहासिक शहर, अपनी सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक स्थलों के लिए भी जाना जाता है। इस शहर के रेलवे रोड बजरिया क्षेत्र में स्थित एक मंदिर श्रद्धालुओं और इतिहास प्रेमियों के बीच खासा लोकप्रिय है।
इस मंदिर की सबसे अनूठी विशेषता है एक तैरता हुआ पत्थर, जिसे श्री राम सेतु का हिस्सा माना जाता है। यह पत्थर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि प्राचीन भारतीय इतिहास और पौराणिक कथाओं से जुड़ा एक रहस्यमयी अवशेष भी है। इस लेख में हम इस मंदिर, तैरते पत्थर और इसके इतिहास के बारे में विस्तार से जानेंगे।
मंदिर का परिचय
रेलवे रोड बजरिया में स्थित यह मंदिर भगवान राम को समर्पित है। यहाँ स्थानीय लोग और दूर-दराज से आए श्रद्धालु भगवान राम की पूजा-अर्चना करने आते हैं। मंदिर का वातावरण शांत और आध्यात्मिक है, जो इसे एक विशेष धार्मिक स्थल बनाता है।
लेकिन इस मंदिर को प्रसिद्धि दिलाने वाला प्रमुख आकर्षण वह तैरता हुआ पत्थर है, जिसे राम सेतु से जोड़ा जाता है। यह पत्थर पानी में डूबता नहीं, बल्कि उसकी सतह पर तैरता रहता है, जो इसे देखने वालों के लिए आश्चर्य और श्रद्धा का विषय बनाता है।
तैरते पत्थर का रहस्य
यह तैरता हुआ पत्थर एक हल्के भूरे रंग का पत्थर है, जो आकार में छोटा और असामान्य रूप से हल्का है। जब इसे पानी के एक पात्र में डाला जाता है, तो यह डूबने के बजाय पानी की सतह पर तैरने लगता है।
विज्ञान क्या कहता है
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसकी यह विशेषता इसके कम घनत्व और संभवतः छिद्रपूर्ण संरचना के कारण हो सकती है, जो इसे पानी पर तैरने में सक्षम बनाती है। लेकिन स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं के लिए यह कोई साधारण पत्थर नहीं, बल्कि रामायण काल का एक चमत्कारी अवशेष है। उनका मानना है कि यह पत्थर उस राम सेतु का हिस्सा है, जिसे भगवान राम ने लंका तक पहुँचने के लिए बनवाया था।
राम सेतु का पौराणिक इतिहास
रामायण के अनुसार, जब भगवान राम को अपनी पत्नी सीता को रावण से छुड़ाने के लिए लंका जाना था, तो उनके सामने समुद्र की विशाल रुकावट थी। इस समस्या को हल करने के लिए वानर सेना, विशेष रूप से नल और नील की मदद से, एक पुल का निर्माण किया गया।
इस सेतु को बनाने के लिए पत्थरों का उपयोग किया गया, जिन्हें भगवान राम के नाम की शक्ति से तैरने की क्षमता प्राप्त हुई। कहा जाता है कि वानर सेना ने इन पत्थरों पर "राम" नाम लिखा।
जिसके बाद वे पानी पर तैरने लगे और इस तरह समुद्र पर एक पुल बनाया गया। यह सेतु आज भी भारत और श्रीलंका के बीच एक भौगोलिक संरचना के रूप में मौजूद है, जिसे "एडम्स ब्रिज" या "राम सेतु" के नाम से जाना जाता है।
मंदिर में मौजूद तैरता पत्थर श्री राम कथा से प्रेरित है। मान्यता है कि यह पत्थर उस प्राचीन सेतु का एक हिस्सा है, जो किसी तरह गाजियाबाद तक पहुँच गया। कुछ लोगों का कहना है कि इसे दक्षिण भारत से लाकर यहाँ स्थापित किया गया, जबकि अन्य का मानना है कि यह एक प्राकृतिक चमत्कार है जो रामायण की सत्यता को प्रमाणित करता है।
मंदिर और पत्थर का ऐतिहासिक महत्व
मंदिर महंत नारायण गिरी के अनुसार इस मंदिर और तैरते पत्थर की उत्पत्ति के बारे में कोई ठोस ऐतिहासिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं। स्थानीय निवासियों के अनुसार, यह पत्थर कई पीढ़ियों से मंदिर में मौजूद है और इसे एक संत या भक्त द्वारा यहाँ लाया गया था।
ब्रिटिश काल से पहले का हो सकता है मंदिर
मंदिर के महंत नारायण गिरी जिनकी उम्र लगभग 90 वर्ष के आसपास बताई जाती और कुछ लोगों का मानना है कि यह मंदिर ब्रिटिश काल या उससे पहले का हो सकता है, जब गाजियाबाद एक छोटा कस्बा था और रेलवे लाइन के निर्माण ने इसे महत्वपूर्ण बनाया था। रेलवे रोड का नाम भी इस क्षेत्र के रेलवे इतिहास से जुड़ा है, जो 19वीं सदी में शुरू हुआ था।
मिथ्य या सत्य
यह पत्थर न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और वैज्ञानिक जिज्ञासा का भी विषय है। कई वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने इस तरह के तैरते पत्थरों का अध्ययन किया है और पाया है कि ये प्राकृतिक रूप से बने प्यूमिस जैसे पत्थर हो सकते हैं, जो ज्वालामुखी गतिविधियों से उत्पन्न होते हैं। हालाँकि, श्रद्धालुओं के लिए यह कोई वैज्ञानिक व्याख्या नहीं, बल्कि भगवान राम की दिव्य शक्ति का प्रतीक है।
बना महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र
आज यह मंदिर गाजियाबाद के स्थानीय लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र है। खास तौर पर राम नवमी और दीपावली जैसे त्योहारों पर यहाँ भक्तों की भीड़ उमड़ती है। तैरता पत्थर मंदिर के गर्भगृह या आसपास एक विशेष स्थान पर रखा गया है, जहाँ लोग इसे देख सकते हैं और इस चमत्कार को अपनी आँखों से अनुभव कर सकते हैं। यहाँ आने वाले श्रद्धालु इसे भगवान राम के प्रति अपनी आस्था का हिस्सा मानते हैं और इसे छूने या इसके दर्शन करने को सौभाग्य समझते हैं।
निष्कर्ष
गाजियाबाद की रेलवे रोड बजरिया का यह मंदिर और इसमें रखा श्री राम सेतु का तैरता पत्थर आस्था, इतिहास और रहस्य का एक अनूठा संगम है। यहाँ का यह पत्थर न केवल रामायण की कथा को जीवंत करता है, बल्कि लोगों को अपने प्राचीन अतीत से जोड़ता है। चाहे इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें या धार्मिक नजरिए से, यह पत्थर और मंदिर दोनों ही गाजियाबाद की पहचान को एक विशेष आयाम देते हैं। यह स्थान न सिर्फ श्रद्धालुओं, बल्कि उन सभी के लिए आकर्षण का केंद्र है जो इतिहास और पौराणिक कथाओं के प्रति रुचि रखते हैं।