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किफायती तकनीकों के इस्तेमाल से 85 प्रतिशत ओरल प्रॉब्लम्स का समाधान संभव

 भारतीय दंत चिकित्सा अनुसंधान सोसायटी (आईएसडीआर) की ओर से आयोजित तीन दिवसीय 35वें वार्षिक सम्मेलन में 30 से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के वक्ताओं ने ओरल और क्रैनियोफेशियल (कपाल-चेहरे से संबंधित विज्ञान) में अनुसंधान की महत्ता पर बल दिया।

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YBN News
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स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहनाहै कि जागरूकता अभियान चलाकर और तकनीक का सदुपयोग कर लगभग 85 प्रतिशत ओरल प्रॉब्लम (मुंह से जुड़ी समस्या) का निवारण किया जा सकता है। भारतीय दंत चिकित्सा अनुसंधान सोसायटी (आईएसडीआर) की ओर से आयोजित तीन दिवसीय 35वें वार्षिक सम्मेलन में 30 से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के वक्ताओं ने ओरल और क्रैनियोफेशियल (कपाल-चेहरे से संबंधित विज्ञान) में अनुसंधान की महत्ता पर बल दिया।

ओरल डिजीज हमेशा जानलेवा नहीं होती

गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय (जीजीएसआईपीयू) के कुलपति प्रो. (डॉ.) महेश वर्मा ने आईएएनएस को बताया, "ओरल डिजीज हमेशा जानलेवा नहीं होती, लेकिन जीवन की गुणवत्ता पर जरूर नकारात्मक असर डालती है। जागरूकता, निवारक अनुसंधान और किफायती तकनीकों के इस्तेमाल से लगभग 85 प्रतिशत ओरल प्रॉब्लम्स को रोका जा सकता है।"

लाखों लोग या तो दंत चिकित्सा सेवा तक पहुंच नहीं पाते 

सम्मेलन के आयोजन अध्यक्ष वर्मा ने कहा, "हमारी चुनौती बड़ी है। ग्रामीण और शहरी भारत में लाखों लोग या तो दंत चिकित्सा सेवा तक पहुंच नहीं पाते या उसका खर्च वहन नहीं कर सकते। प्रौद्योगिकी और नवाचार को इस अंतर को पाटना होगा। आज जीवनशैली बदल रही है, जीवन स्तर बेहतर हो रहा है, तो ऐसे में समझना होगा कि वेलनेस बिना ओरल हेल्थ के हासिल नहीं की जा सकती है।"उन्होंने राष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेंडे में ओरल हेल्थ पर ध्यान देने की आवश्यकता पर बल दिया।

 दंत चिकित्सा अनुसंधान 36 श्रेणियों में किया जा सकता है

वर्मा ने कहा कि दंत चिकित्सा अनुसंधान 36 श्रेणियों में किया जा सकता है, जिसमें पुनर्योजी चिकित्सा (रीजेनरेटिव थेरेपी), री रीवाइटलाइजिंग डेड टिशू, भौतिक विज्ञान और पब्लिक हेल्थ अप्रोच शामिल हैं।विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि कैसे शराब पहली ही घूंट से ओरल हेल्थ को धीरे-धीरे नष्ट करना शुरू कर देती है।

मौलाना आजाद दंत विज्ञान संस्थान की डॉ. अश्विनी वाई.बी. ने कहा कि हालांकि यह सर्वविदित है कि शराब लिवर और शरीर के लिए हानिकारक है, लेकिन यह क्षति बहुत पहले, मुंह के अंदर ही शुरू हो जाती है।अश्विनी ने कहा, "हमारे मुंह में म्यूकोसा नामक एक नाजुक सुरक्षात्मक परत होती है। शराब इसे तुरंत सुखा देती है। यह सूखापन इस परत को कमजोर कर देता है और फिर दर्दनाक छालों को जन्म देता है। ये मुख संक्रमण को अत्यधिक संवेदनशील बना देते हैं।"

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शराब को तंबाकू के साथ मिलाने से खतरा

डॉक्टर ने आगे कहा, "शराब लार के प्रवाह को भी कम कर देती है—जो मुंह की प्राकृतिक सफाई प्रणाली है। पर्याप्त लार के बिना, हानिकारक बैक्टीरिया पनपते हैं, संक्रमण तेजी से फैलता है, और समय के साथ, मुंह के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।"अश्विनी ने शराब को तंबाकू के साथ मिलाने के बारे में भी कड़ी चेतावनी दी।दंत चिकित्सक ने कहा, "यह घातक संयोजन कैंसर सहित गंभीर मुंह के रोगों के जोखिम को कई गुना बढ़ा देता है। दुर्भाग्य से, यह एक बहुत ही आम आदत है, खासकर भारत में।"

सम्मेलन में अन्य विशेषज्ञों ने जनता से आग्रह किया कि वे मुंह में लगातार सूखापन, छाले या बेचैनी जैसे शुरुआती चेतावनी संकेतों को पहचानें और उन्हें गंभीरता से लें। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि मौखिक स्वास्थ्य की रक्षा केवल दिन में दो बार ब्रश करने से नहीं, बल्कि बेहतर जीवनशैली अपनाने से भी जुड़ी है।तीन दिवसीय सम्मेलन में 20 देशों के 150 अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभागियों सहित 600 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया।आईएएनएस : body pain health news | Digital health care | Dental Health Hindi | get healthy | get healthy body 

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