Anxiety: भागदौड़ भरी जिंदगी में चिंता (एंजाइटी) से बचना वक्त की एक बड़ी चुनौती बन गया है। आधुनिक जीवनशैली, काम का दबाव, सामाजिक अपेक्षाएं और तकनीकी निर्भरता ने इंसान को मानसिक रूप से थका सा दिया है। भारत में भी यह समस्या तेजी से बढ़ रही है, और इसके पीछे सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारण जिम्मेदार हैं। जिंदगी में लोगों के पास वक्त इतना कम है कि वो किसी से 5 मिनट हाल चाल भी ढंग से नहीं पूछ सकते हैं। ऐसे में लोग अवसाद और चिंता जैसी मानसिक परेशानियों से जूझ रहे हैं।
खासतौर पर महिलाओं के साथ ये समस्या ज्यादा है। क्योंकि उन्हें ऑफिस के काम से लेकर घर संभालने तक की दोहरी जिम्मेदारी निभानी होती है। चिंता एक सामान्य भावना है और यह शारीरिक लक्षण पैदा कर सकती है, जैसे कांपना और पसीना आना। जब चिंता लगातार बनी रहती है या अत्यधिक हो जाती है, तो व्यक्ति को एंजाइटी हो सकती है। आइए, समझते हैं कि चिंता से कैसे बचा जा सकता है।
चिंता से बचने के उपाय
| Health Awareness 'टाइम मैनेजमेंट : आज की जिंदगी में सबसे बड़ी समस्या है समय की कमी। काम, परिवार और व्यक्तिगत जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाना जरूरी है। एक दिनचर्या बनाएं जिसमें काम के साथ-साथ休息 और मनोरंजन के लिए भी समय हो। इससे दिमाग को राहत मिलती है और तनाव कम होता है।
ध्यान और व्यायाम: योग, प्राणायाम और मेडिटेशन चिंता को कम करने में बहुत कारगर हैं। सुबह 15-20 मिनट का ध्यान या हल्का व्यायाम जैसे टहलना या स्ट्रेचिंग, मानसिक शांति देता है। भारत में प्राचीन काल से योग को तन-मन के संतुलन का साधन माना गया है, जिसे फिर से अपनाने की जरूरत है।
सोशल मीडिया से दूरी: आजकल लोग सोशल मीडिया पर दूसरों की जिंदगी से अपनी तुलना करते हैं, जिससे असुरक्षा और चिंता बढ़ती है। रोजाना कुछ घंटे स्क्रीन से दूर रहकर किताब पढ़ना, प्रकृति के साथ समय बिताना या अपनों से बात करना मददगार हो सकता है।
खानपान और नींद: संतुलित आहार और पर्याप्त नींद मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी हैं। जंक फूड और कैफीन का अधिक सेवन चिंता को बढ़ा सकता है। रात को 7-8 घंटे की नींद लेना दिमाग को रिचार्ज करता है।
सकारात्मक सोच: नकारात्मक विचारों को नियंत्रित करने के लिए खुद को प्रेरित करें। छोटी-छोटी सफलताओं को सराहें और असफलताओं को सीख का हिस्सा मानें। दोस्तों या परिवार से भावनाएं साझा करना भी बोझ हल्का करता है।
तनाव को कैसे करें कम (how to reduce stress)
- अच्छा खान पान (diet for mental) सेहत और मन दोनों को ठीक करने के लिए बहुत जरूरी होता है। इसके लिए आप सैल्मन, अखरोट आदि का सेवन ज्यादा से ज्यादा करें।
- शराब का सेवन भी मूड को गलत तरीके से प्रभावित करता है। ऐसे में अगर आप एल्कोहलिक हैं तो इससे जितना जल्दी हो छुटकारा पा लीजिए।
- अपने व्यस्त जीवन से मी टाइम जरूर निकालें। इसमें आप खुद की ग्रूमिंग करें। किताब पढ़ें, वीडियो और मूवी देखें। इससे आपको बहुत अच्छा महसूस होगा।
- अगर आप बहुत ज्यादा तनाव में रहते हैं तो परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं। इससे आपको अच्छा महसूस होगा। आप अपने मन की स्थिति को उनसे साझा करके हल्का महसूस करेंगी।
- अगर आप खुद को तनाव मुक्त रखना चाहती हैं तो सोशल मीडिया से खुद को दूर कर लीजिए। यह भी कई बार आपको तनाव देता है. बहुत जरूरी हो तो ही अपने फोन को उठाएं।
- आपको जो काम करना बहुत पसंद है उसे करें- जैसे- डांस, गाना, पेंटिंग, रीडिंग, फिल्में आदि. इससे आप अच्छा महसूस करेंगी।
चिंता बढ़ने की वजह ?
get healthy भारत में एंजाइटी के मामले पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़े हैं। नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे (2022-23) के अनुसार, भारत में लगभग 15 करोड़ लोग किसी न किसी मानसिक समस्या से जूझ रहे हैं, और यह आंकड़ा अब और बढ़ चुका है। इसके कई कारण हैं।
आर्थिक दबाव: भारत में बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और नौकरी की असुरक्षा ने लोगों पर आर्थिक बोझ डाला है। खासकर युवाओं में करियर को लेकर अनिश्चितता चिंता का बड़ा कारण बन रही है।
सामाजिक अपेक्षाएं: भारतीय समाज में शादी, परिवार और सफलता को लेकर तय मानदंड हैं। इन अपेक्षाओं को पूरा न कर पाने का डर लोगों को तनाव में डालता है। खासकर महिलाएं, जो घर और नौकरी दोनों संभालती हैं, इस दोहरे दबाव से प्रभावित होती हैं।
शहरीकरण और अकेलापन: तेजी से बढ़ते शहरों में लोग परिवार और समुदाय से दूर हो रहे हैं। अकेलापन और सामाजिक अलगाव मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी पारंपरिक सहयोग तंत्र कमजोर पड़ रहा है।
तकनीकी प्रभाव: स्मार्टफोन और इंटरनेट ने जिंदगी को आसान बनाया, लेकिन सूचनाओं का अतिरेक और लगातार ऑनलाइन रहने की मजबूरी ने दिमाग को थका दिया है। सोशल मीडिया पर परफेक्ट जिंदगी की झूठी तस्वीरें भी लोगों में हीन भावना पैदा कर रही हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: भारत में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता और सुविधाएं अभी भी सीमित हैं। लोग चिंता को गंभीरता से नहीं लेते और न ही समय पर इलाज लेते हैं। मनोचिकित्सकों और काउंसलर की कमी भी एक बड़ी समस्या है।