नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
लगातार कई घंटों काम करने से शरीर में थकावट होना आम बात है लेकिन हमारे काम करने का तरीका तय करता है कि यह थकावट हमारे स्वास्थ्य पर क्या असर डालेगी। आज के समय में काम करने का तरीका ऑफिस और कम्प्यूटर की स्क्रीन तक ही सिमट कर रह गया है। लम्बे समय तक एक ही जगह पर बैठना शरीर के लिए नुकसान दायक हो सकता है। इससे सर्केडियन साइकल प्रभावित होती है। यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ फ्लोरिड़ा के क्लेयर ई. स्मिथ द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह दावा किया गया है।
शोध में सामने आई ये बात
अध्ययन में सामने आया है कि लोग टेक्नोलॉजी पर काफी निर्भर हो गए हैं, जिसके कारण अधिक चलना- फिरना नहीं हो पाता है। इसका सीधा असर नींद पर पड़ता है। शोधकर्ताओं ने 1300 से अधिक कामकाजी लोगों पर रिसर्च की। इन्होंने प्रति सप्ताह लगभग 46 घंटे काम किया था। शोधकर्ताओं ने 10 साल तक इनकी निगरानी की, ताकि यह समझा जा सके कि किस तरह एक जगह बैठकर काम करने से नींद प्रभावित होती है।
अध्ययन में नींद के कई पहलुओं को ध्यान में रखा गया जैसे.-
- लोग कितनी कंसिसटेंसी से सोते हैं
- उन्हें सोने में कितना समय लगता है
- उन्हें दिन में कितनी थकान होती है
- दिन में कितनी बार झपकी लेते हैं
- कुल कितने घंटे की नींद लेते हैं
- कहीं उनमें इंसोमनिया के लक्षण तो नहीं हैं
अध्ययन में पाया गया कि इस प्रकार की जीवनशैली से नींद बुरी तरह से प्रभावित होती है। इससे इंसोमनिया के लक्षणों में 37 फीसदी और कैच अप स्लीप में 66 फीसदी की वृद्धि होती है ,जिसके कारण झपकी आती है। प्र
मुख्य शोधकर्ता क्लेयर स्मिथ ने बताया कि इस तरह काम करने की प्रवृत्ति से नींद पर बुरा असर पड़ता है। इंसान को हर रोज कम से कम 8 घंटे की नींद लेनी चाहिए। उन्हें इसका शेड्यूल बनना चाहिए कि कब सोना है, कितने घंटे सोना है और ठीक से सोना है। कंपनियों को नींद न लेने से होने वाले जोखिमों के बारे में पता होना चाहिए, ताकि कर्मचारियों का ध्यान रखा जा सके। हालांकि शोधकर्ताओं ने कहा कि दिन के समय कम्प्यूटर पर काम करने से नींद को कम नुकसान होता है।
सर्केडियन साइकल – ये शरीर में एक घड़ी की तरह काम करती है, जो इंसान के दैनिक कामों में मदद करती है। जैसे भूख लगना, नींद आना आदि
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