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डिमेंशिया का कारण बन सकती है कम घंटों की नींद, बुजुर्गों पर किए गए शोध में खुलासा

बुजुर्गों पर किए गए एक दीर्घकालिक अध्ययन में अब यह सामने आया है कि ज्यादा समय तक ये समस्या हमारे मस्तिष्क के अंदर होने वाले उन बदलावों से जुड़ी हुई है, जो मनोभ्रंश (डिमेंशिया)का कारण बनते हैं। 

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YBN News
Dementia Sleep Study

देर रात तीन बजे आंख खुलने के बाद लगातार टकटकी लगाये छत पर लगे पंखे या घड़ी को देखते रहने से सिर्फ अगले दिन के लिए ऊर्जा कम होती है। अमेरिका में बुजुर्गों पर किए गए एक दीर्घकालिक अध्ययन में अब यह सामने आया है कि ज्यादा समय तक ये समस्या हमारे मस्तिष्क के अंदर होने वाले उन बदलावों से जुड़ी हुई है, जो मनोभ्रंश (डिमेंशिया)का कारण बनते हैं। अमेरिका के मेयो क्लिनिक के शोधकर्ताओं ने 50 वर्ष और उससे अधिक आयु के 2,750 लोगों पर औसतन साढ़े पांच साल तक नजर रखी। 

स्मृति जांच में मिली चौंकाने वाली जानकारियां

अध्ययन में शामिल लोगों ने हर साल विस्तृत स्मृति जांच कराई और कई लोगों के मस्तिष्क स्कैन भी हुए, जिनसे भविष्य में संज्ञानात्मक समस्याओं के दो स्पष्ट संकेत मिले, जिनमें ‘एमिलॉइड प्लेक’ का निर्माण और मस्तिष्क के श्वेत पदार्थ में क्षति के छोटे-छोटे निशान शामिल हैं और इसे श्वेत पदार्थ हाइपरइंटेंसिटीज भी कहते हैं। एक महीने के अंतराल पर कम से कम दो बार इस समस्या का निदान होने पर प्रतिभागियों को लंबे समय से इस समस्या से ग्रस्त माना गया। अध्ययन में पाया गया कि ये समस्या 16 प्रतिशत लोगों को प्रभावित करती थी। 

गहरी नींद में वाले की अपेक्षा अनिद्रा वालों की क्षमता में गिरावट

गहरी नींद में सोने वाले लोगों की तुलना में लंबे समय से अनिद्रा का शिकार लोगों की याददाश्त व सोचने की क्षमता में गिरावट देखी गई और अध्ययन अवधि के दौरान उनमें मनोभ्रंश के हल्के लक्षण विकसित होने की संभावना 40 प्रतिशत अधिक थी। जब टीम ने बारीकी से अध्ययन किया, तो पाया कि सामान्य से कम घंटे सोने वाले लोग अगर अनिद्रा का शिकार होते हैं तो ये स्थिति विशेष रूप से हानिकारक थी। कम घंटे सोने वाले इन लोगों का प्रदर्शन पहले ही मूल्यांकन के समय ऐसा था मानो वे चार साल बड़े हों और उनमें ‘एमिलॉइड प्लेक’ और श्वेत पदार्थ क्षति दोनों का ही स्तर अधिक था। 

एमिलॉइड प्लेक’ और रक्त वाहिकाओं की क्षति

इसके विपरीत, अनिद्रा के शिकार जिन रोगियों ने कहा कि वे सामान्य से अधिक सो रहे हैं, शायद इसलिए क्योंकि उनकी नींद की समस्या कम हो गई थी और उनमें श्वेत पदार्थ क्षति औसत से कम थी। ‘एमिलॉइड प्लेक’ और रक्त वाहिकाओं की क्षति, दोनों ही क्यों महत्वपूर्ण हैं? अल्जाइमर रोग केवल ‘एमिलॉइड’ के कारण नहीं होता। अध्ययनों से लगातार यह पता चला कि छोटी रक्त वाहिकाओं का बंद होना या उनमें रिसाव होना भी आपके सोचने-समझने की क्षमता में कमी को तेज कर देता है और ये दोनों रोग एक-दूसरे को बढ़ा सकते हैं।

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‘एमिलॉइड’ स्वयं न्यूरॉन्स को अवरुद्ध करता है

 श्वेत पदार्थ की ‘हाइपरइंटेंसिटीज’ मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्रों के बीच संदेशों को पहुंचाने वाले तार को बाधित करती है, जबकि ‘एमिलॉइड’ स्वयं न्यूरॉन्स को अवरुद्ध करता है। लंबे समय से अनिद्रा के शिकार लोगों में दोनों के उच्च स्तर का पाया जाना इस विचार को पुष्ट करता है कि कम घंटे तक सोने से नींद, मस्तिष्क को और ज्यादा नुकसान पहुंचाने का काम करती है। अध्ययन में ‘एपीओई4’ प्रकार के होने के प्रभाव की पुष्टि की गयी जो देर से शुरू होने वाले अल्जाइमर के लिए सबसे प्रबल सामान्य आनुवंशिक जोखिम कारक है।

नींद नहीं आने से होने वाले नुकसान

 वैज्ञानिकों ने संदेह जताया कि ‘एपीओई4’ रात में ‘एमिलॉइड’ की निकासी को धीमा कर रक्त वाहिकाओं को सूजन के प्रति अधिक संवेदनशील बनाकर रात के समय नींद नहीं आने से होने वाले नुकसान को और बढ़ा देता है। ऐसा प्रतीत होता है कि लंबे समय से अनिद्रा की शिकायत होना मनोभ्रंश की गति को तेज करता है और यह एक नहीं बल्कि कई तरीकों से जिनमें ‘एमिलॉइड’ को बढ़ाकर, श्वेत पदार्थ को नष्ट कर और संभवतः रक्तचाप और रक्त शर्करा के स्तर को भी बढ़ाना शामिल है।

संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी अब भी उपचार का सर्वोत्तम तरीका 

अनिद्रा के लिए संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी अब भी उपचार का सर्वोत्तम तरीका बनी हुई है और लगभग 70 प्रतिशत रोगियों की नींद में सुधार करती है। रोकथाम शुरू करें जल्दी मेयो क्लिनिक अध्ययन में भाग लेने वाले प्रतिभागियों की उम्र अध्ययन की शुरुआत में औसतन 70 वर्ष थी लेकिन अन्य शोध में सामने आया कि 50 की उम्र में नियमित रूप से रात में छह घंटे से कम सोना दो दशक बाद भी मनोभ्रंश के उच्च जोखिम से जुड़ा हुआ है। 

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रोकथाम के प्रयासों को ज्यादा देर तक नहीं टालें

अध्ययन से पता चलता है कि रोकथाम के प्रयासों को ज्यादा देर तक नहीं टाला जाना चाहिए। रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल और व्यायाम के साथ-साथ मध्य आयु से ही सोने के घंटों पर नजर रखना एक समझदारी भरा कदम हो सकता है। रातों की नींद न आना एक परेशानी से कहीं ज्यादा है। रात में पर्याप्त नींद मस्तिष्क स्वास्थ्य के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है लेकिन वैज्ञानिक अब भी इस बात पर काम कर रहे हैं कि क्या अनिद्रा की समस्या को ठीक करने से वास्तव में मनोभ्रंश को रोका जा सकता है और जीवन के किस चरण में हस्तक्षेप से सबसे अधिक लाभ होगा। द कन्वरसेशन dementia causes study | HEALTH | DiversityInHealthcare | Digital health care | get healthy | get healthy body 

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