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नाक: श्वसन अंग ही नहीं, शरीर का सुरक्षा कवच भी जानें- क्या कहता है आयुर्वेद

आयुर्वेद में नाक को केवल श्वसन अंग नहीं माना गया है, बल्कि यह शरीर के सुरक्षा कवच के रूप में भी देखी जाती है। नाक के जरिए शरीर में प्राणवायु का संचार होता है और यह बाहरी रोगाणुओं से रक्षा करती है। 

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YBN News
Tadasanayoga

Tadasanayoga Photograph: (ians)

नई दिल्ली।आयुर्वेद में नाक को केवल श्वसन अंग नहीं माना गया है, बल्कि यह शरीर के सुरक्षा कवच के रूप में भी देखी जाती है। नाक के जरिए शरीर में प्राणवायु का संचार होता है और यह बाहरी रोगाणुओं से रक्षा करती है। 

आयुर्वेद में, नाक को सिर्फ श्वसन अंग से कहीं ज़्यादा माना जाता है। इसे 'शिराद्वार' कहा गया है, जिसका अर्थ है 'सिर का द्वार'। यह उपाधि इस बात को दर्शाती है कि नाक का संबंध सिर्फ़ सांस लेने से नहीं, बल्कि पूरे शरीर और विशेष रूप से मस्तिष्क के स्वास्थ्य से है।

नाक की बनावट

नाक की शारीरिक बनावट इस प्रकार है कि यह बाहरी हानिकारक कणों, जीवाणुओं और धूल को छानने का कार्य करती है। नाक के भीतर छोटे बाल और श्लेष्मा (म्यूकस) होते हैं जो अवांछनीय तत्वों को अंदर प्रवेश करने से रोकते हैं। यह प्रक्रिया शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने में सहायक होती है। नाक न केवल वायु का प्रवेश मार्ग है, बल्कि वह वायु का शोधन, तापमान संतुलन और आर्द्रता नियंत्रण भी करती है। ठंडी या प्रदूषित हवा को नाक भीतर जाकर गर्म और शुद्ध करती है, जिससे फेफड़ों पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े।

योग और प्राणायाम में नाक का महत्व

योग और प्राणायाम में नाक का महत्व अत्यधिक है। सभी श्वसन अभ्यास नाक से ही किए जाते हैं, क्योंकि यह मानसिक शांति, तंत्रिका तंत्र की मजबूती और प्राण के संतुलन में सहायक है। अनुलोम-विलोम, नाड़ी शोधन और भ्रामरी जैसी प्राणायाम विधियां नाक के माध्यम से ही की जाती हैं।

रोगों का प्रवेश द्वार:

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नाक बाहरी वातावरण से आने वाले धूल, धुआं, परागकण और सूक्ष्मजीवों को शरीर में प्रवेश करने से रोकती है। नाक के अंदर के छोटे बाल (लोम) और श्लेष्मा (म्यूकस) इन कणों को फँसाकर शरीर को संक्रमण से बचाते हैं।आयुर्वेद में नाक को 'प्राणायः द्वारम्' कहा गया है, जिसका अर्थ है जीवन ऊर्जा के प्रवेश का मार्ग। प्राण वायु के बिना शरीर का कोई भी कार्य संभव नहीं है। सांस के माध्यम से जो वायु शरीर में प्रवेश करती है, वही कोशिकाओं तक ऑक्सीजन पहुंचाकर जीवन बनाए रखती है।

प्राण वायु का मार्ग:

आयुर्वेद के अनुसार, हमारा शरीर 'प्राण' नामक जीवन ऊर्जा से चलता है, और प्राण का मुख्य मार्ग नाक ही है। स्वच्छ और मुक्त नाक से प्राण का प्रवाह सुचारू रहता है, जिससे शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं।

मस्तिष्क और इंद्रियों का संबंध:

नाक सीधे मस्तिष्क और हमारी पाँचों इंद्रियों, विशेष रूप से सूंघने की क्षमता (घ्राणेंद्रिय) से जुड़ी हुई है। स्वस्थ नाक से मस्तिष्क को सही पोषण मिलता है और मानसिक स्पष्टता बनी रहती है।आयुर्वेद के अनुसार नाक का सीधा संबंध मस्तिष्क से होता है, इसीलिए आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में नस्य कर्म जैसी प्रक्रिया विकसित की गई है। इसमें औषधियों को नाक के माध्यम से डाला जाता है ताकि सिर, मस्तिष्क, नेत्र, कंठ और नाड़ियों से संबंधित विकारों का उपचार किया जा सके। यह मानसिक थकान, भूलने की बीमारी, सिरदर्द, नींद की कमी और चिंता जैसे रोगों में अत्यंत लाभकारी है।

पंचकर्म में महत्व:

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नाक की शुद्धि के लिए आयुर्वेद में 'नस्य' नामक एक विशेष चिकित्सा प्रक्रिया है। नस्य में नाक के रास्ते औषधीय तेल या घी डाला जाता है, जिससे सिर, गर्दन और श्वसन तंत्र से संबंधित कई विकारों जैसे साइनस, सिरदर्द, अनिद्रा और एलर्जी का इलाज किया जाता है।

संक्षेप में, आयुर्वेद में नाक सिर्फ सांस लेने का अंग नहीं, बल्कि शरीर को बाहरी खतरों से बचाने वाला एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच और पूरे शरीर के स्वास्थ्य का दर्पण है। इसलिए, नाक की देखभाल को आयुर्वेद में विशेष महत्व दिया गया है।

(इनपुट-आईएएनएस)

Disclaimer: इस लेख में प्रदान की गई जानकारी केवल सामान्य जागरूकता के लिए है। इसे किसी भी रूप में व्यावसायिक चिकित्सकीय परामर्श के विकल्प के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। कोई भी नई स्वास्थ्य-संबंधी गतिविधि, व्यायाम, शुरू करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरूर लें।"

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