नई दिल्ली,वाईबीएन नेटवर्क।
आज के समय में प्रदूषण एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। बढता औद्योगीकण और वाहनों से निकलने धुआं सभी के लिए घातक होता जा रहा है। हाल ही में इसको लेकर ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों एक अध्ययन किया है, जिसमें बताया गया है कि PM 2.5 कण लिवर को नुकसान पहुंचाकर फैटी लिवर डिजीज का खतरा बढा रहे हैं।
इतना घातक है ट्रेफिक का धुआं
ट्रैफिक से निकलने वाला एयर पॉल्यूशन आपके लंग्स के लिए ही नहीं, बल्कि लिवर के लिए भी खतरनाक होता जा रहा है। यह खुलासा ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने हाल ही एक अध्ययन में किया है। इसमें पता चला है कि वाहनों से निकलने वाले PM 2.5 के कण लिवर को नुकसान पहुंचाते हैं और फैटी लिवर डिजीज का खतरा बढ़ा सकते हैं। फैटी लिवर को चिकित्सा विज्ञान की भाषा में हेपेटिक स्टेटोसिस कहा जाता है। फैटी लिवर की समस्या दुनियाभर में तेजी से बढ़ रही है और हर उम्र के लोग इसका शिकार हो रहे हैं। फैटी लिवर तब होता है, जब लिवर की सेल्स में ज्यादा फैट जमा हो जाता है।
फैटी लीवर की बडी वजह
अध्ययन से पता चला है कि गलत खान-पान और व्यस्ततम जीवनशैली के बजाय एयर पॉल्यूशन से फैटी लीवर का खतरा अधिक बढता है। आसान भाषा में कहें, तो वाहनों से निकलने वाला थोड़ा सा पॉल्यूशन भी फैटी लिवर जैसी कंडीशन पैदा कर सकता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि लोगों को वाहनों से होने वाले पॉल्यूशन से भी बचने की जरूरत है, ताकि लंग्स के साथ लिवर की बीमार से भी बचा जा सके।
चूहों पर अध्ययन से सामने आई बात
वैज्ञानिकों ने पॉल्यूशन के असर का पता लगाने के लिए चूहों पर इसका अध्ययन किया। अध्ययन में चूहों को 10 माइक्रोग्राम PM 2.5 कणों के संपर्क में रखा और 4, 8, 12 सप्ताह बाद उनके लिवर में हुए बदलावों पर गहन शोध किया। पहले 4 से 8 सप्ताह तक कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिला, लेकिन 12 सप्ताह बाद लिवर की कार्यशैली में अचानक बदलाव देखने को मिले। शोधकर्ताओं ने पाया कि इस दौरान लिवर में 64 कार्यात्मक प्रोटीन प्रभावित हुए, जिनमें से कई फैटी लिवर और शरीर के इम्यून सिस्टम में गड़बड़ी से संबंधित थे। इससे यह साबित होता है कि पॉल्यूशन लीवर के लिए खतरा पैदा कर सकता है।
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