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मुजफ्फरपुर, वाईबीएन डेस्क | उत्तर बिहार में लकवे (पैरालिसिस) का खतरा तेजी से युवाओं को अपनी चपेट में ले रहा है। एसकेएमसीएच (श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल) के सुपर स्पेशियलिटी विंग में आने वाले करीब 250 मरीजों में से लगभग 100 मरीज लकवे से पीड़ित हैं। ये मरीज मुजफ्फरपुर के अलावा मोतिहारी, बेतिया, सीतामढ़ी, शिवहर, सीवान और गोपालगंज जैसे जिलों से पहुंच रहे हैं। न्यूरो सर्जरी विभाग के मुताबिक युवाओं में चेहरे टेढ़े होने, बोलने में लड़खड़ाहट, हाथ-पैरों में कमजोरी और धुंधली दृष्टि जैसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं।
नींद की कमी और नशे की लत
जानकारों के मुताबिक, युवाओं में लकवे की बढ़ती समस्या के पीछे रात में पूरी नींद न लेना और धूम्रपान या नशे की आदतें जिम्मेदार हैं। नशे से मस्तिष्क की नसों पर असर पड़ता है, जिससे कम उम्र में ही लकवे का खतरा बढ़ जाता है। उन्होंने बताया कि लकवे से बचने के लिए कम से कम 6 से 8 घंटे की नींद जरूरी है। इसके साथ ही, ज्यादातर मरीजों में हाई ब्लड प्रेशर (160–180 mmHg तक) की भी शिकायत मिली है, जो लकवे का मुख्य कारण बन रहा है।
सुविधाएं सीमित, मरीज हो रहे रेफर
हालांकि एसकेएमसीएच में सुपर स्पेशियलिटी सुविधाएं मौजूद हैं, फिर भी गंभीर मरीजों को इलाज के लिए पटना या अन्य शहरों में रेफर करना पड़ रहा है। अस्पताल में न्यूरो फिजिशियन की कमी और पैरामेडिकल स्टाफ की अपर्याप्तता इसकी बड़ी वजह है। यही स्थिति राज्य के अन्य सरकारी अस्पतालों में भी देखी जा रही है।
जीवनशैली का बड़ा रोल
डॉक्टरों का कहना है कि लकवे से ग्रसित मरीजों को खून पतला करने की दवाएं दी जाती हैं, ताकि रक्त का प्रवाह मस्तिष्क तक बना रहे। इसके अलावा, नियमित व्यायाम और बीपी नियंत्रण बेहद जरूरी है।
गर्मी भी बना रही कारण
बीते दिनों की भीषण गर्मी के कारण लकवे के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। डॉ. के मुताबिक, अधिक गर्मी से मानसिक तनाव और रक्तचाप में उतार-चढ़ाव होता है, जिससे लकवे का खतरा और बढ़ जाता है।
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