नई दिल्ली, आईएएनएस। अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक नई जीन थेरेपी तैयार की है, जिसे नाक के जरिए स्प्रे करके फेफड़ों और सांस की नली तक पहुंचाया जा सकता है। जीन थेरेपी तब ही असरदार होती है जब इलाज से जुड़ी जरूरी चीजें शरीर के सही हिस्सों तक पहुंचें। जीन थेरेपी में, इलाज करने वाले अणुओं को शरीर के सही जगह तक पहुंचाना जरूरी होता है ताकि वे ठीक से काम कर सकें। इसके लिए अक्सर एडेनो-एसोसिएटेड वायरस (एएवी) जीन थेरेपी का उपयोग किया जाता है।
जानवरों पर की गई शुरुआती रिसर्च
इस तकनीक को और बेहतर बनाने के लिए मैस जनरल ब्रिघम के वैज्ञानिकों ने एएवी का एक नया रूप तैयार किया है, जिसका नाम एएवी.सीपीपी.16 है। इसे नाक में स्प्रे के रूप में दिया जा सकता है।
जानवरों पर की गई शुरुआती रिसर्च में ये नई तकनीक पुराने एएवी6 और एएवी9 की तुलना में ज्यादा असरदार साबित हुई। इसने फेफड़ों और सांस की नली को बेहतर तरीके से टारगेट किया और यह श्वसन और फेफड़ों की बीमारियों के इलाज में कारगर साबित हो सकती है।
ब्रिघम एंड वीमेन हॉस्पिटल के न्यूरो सर्जरी विभाग के फेंगफेंग बेई ने बताया कि एएवी.सीपीपी.16 को पहले हमने केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक पहुंचाने के लिए बनाया था, लेकिन यह फेफड़ों की कोशिकाओं में भी अच्छे से काम कर रहा है। इस वजह से हमने इसे नाक के जरिए फेफड़ों तक दवा पहुंचाने के लिए भी परखा। इस रिसर्च में एएवी.सीपीपी.16 ने न केवल कोशिका परीक्षणों में, बल्कि चूहों और अन्य जानवरों पर किए गए प्रयोगों में भी पहले के तरीकों से बेहतर परिणाम दिए।
वायरल इन्फेक्शन के लिए जीन थेरेपी
उन्होंने इस तरीके का उपयोग वायरल इन्फेक्शन के लिए जीन थेरेपी देने में भी किया। इसमें, कोविड-19 से संक्रमित चूहों पर हुए टेस्ट में एसएआरएस-सीओवी-2 वायरस को बढ़ने से रोकने में मदद मिली।
वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी और रिसर्च की जरूरत है, लेकिन अब तक के नतीजे दिखाते हैं कि एएवी.सीपीपी.16 एक असरदार तरीका हो सकता है जिससे सांस की नली और फेफड़ों को सीधे इलाज पहुंचाया जा सके।