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Tariff मामले में भारत सख्त, अमेरिकी स्टील पर जवाबी टैरिफ

टैरिफ मामले में भारत सख्त रुख अपनाया, अमेरिकी स्टील पर जवाबी टैरिफ लगाने का प्रस्ताव, भारत ने WTO में अमेरिका के स्टील और एलुमिनियम टैरिफ पर 1.91 अरब डॉलर के बराबर जवाबी शुल्क लगाने का प्रस्ताव रखा।

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Dhiraj Dhillon
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। भारत ने सोमवार को विश्व व्यापार संगठन (WTO) में अमेरिका के स्टील और एलुमिनियम उत्पादों पर लगाए गए टैरिफ के जवाब में जवाबी शुल्क (retaliatory duties) लगाने का प्रस्ताव दिया है। भारत का यह कदम अमेरिका द्वारा सुरक्षा के नाम पर लगाए गए व्यापारिक प्रतिबंधों के विरोध में उठाया गया है। WTO को भेजी गई आधिकारिक सूचना में कहा गया है, "इन सुरक्षा उपायों के कारण अमेरिका को भारत से होने वाले $7.6 बिलियन के आयात पर कुल $1.91 बिलियन का शुल्क लग रहा है।" भारत ने इसके बदले उत्पत्ति अमेरिका से होने वाले उत्पादों पर समान राशि का जवाबी शुल्क वसूलने का इरादा जताया है।

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अमेरिका के टैरिफ और भारत की आपत्ति

मार्च 2018 में अमेरिका ने स्टील और एलुमिनियम उत्पादों पर क्रमशः 25% और 10% का ad valorem टैरिफ लगाया था। इसे जनवरी 2020 में बढ़ाया गया और फरवरी 2025 में फिर संशोधित कर अनिश्चित काल तक लागू कर दिया गया। भारत ने अप्रैल में इन टैरिफ के खिलाफ WTO के सुरक्षा उपाय समझौते (Safeguards Agreement) के तहत अमेरिका से औपचारिक विचार-विमर्श की मांग की थी। लेकिन अमेरिका ने इन शुल्कों को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा कदम बताते हुए सुरक्षा उपाय के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया।

WTO में भारत का आधिकारिक नोटिफिकेशन

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WTO में दायर किए गए दस्तावेज में भारत ने कहा, "भारत अमेरिका द्वारा 10 फरवरी 2025 को घोषित और 12 मार्च 2025 से प्रभावी टैरिफ के संदर्भ में WTO की वस्तु व्यापार परिषद (Council for Trade in Goods) को अपनी रियायतों और अन्य दायित्वों को निलंबित करने का प्रस्ताव देता है।" भारत ने यह भी स्पष्ट किया है कि भले ही अमेरिका ने इन उपायों को WTO को अधिसूचित नहीं किया है, लेकिन वे वास्तविक रूप में सुरक्षा उपाय ही हैं और उन पर जवाब देना आवश्यक है। यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्ते जटिल दौर से गुजर रहे हैं। यह प्रस्ताव भारत की ओर से वैश्विक मंच पर समान व्यापारिक अधिकारों की मांग और संरक्षणवाद के विरोध की दिशा में एक सशक्त कदम माना जा रहा है।

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