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Explain: इजरायल-ईरान WAR में क्यों कूदा अमेरिका, क्या थीं TRUMP की मजबूरियां

डोनाल्ड ट्रम्प कई मोर्चों पर घिरे हुए हैं। उनकी यूक्रेन नीति विफल हो गई है। पुतिन के साथ उनकी दोस्ती की कवायद और चीन के खिलाफ उनका अभियान खटाई में पड़ चुका है। उनके मनमाने कदमों को अमेरिकी अदालतें रोक रही हैं।

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Shailendra Gautam
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Photograph: (X)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः हैरत में डालने वाले एक राजनीतिक दांव में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इजरायल- ईरान की लड़ाई में अमेरिका को उलझा दिया है। इस महीने की शुरुआत में तेहरान के परमाणु ठिकानों पर तेल अवीव के हमलों से खुद को दूर रखने के बाद अब इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते संघर्ष में ट्रम्प ने एंट्री की है। ट्रम्प के हस्तक्षेप के दूरगामी मतलब हैं - न केवल अमेरिका की घरेलू राजनीति और विदेश नीति के लिए, बल्कि मिडिल ईस्ट और एशिया की व्यापक राजनीति के लिए भी।

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दूसरे कार्यकाल में तेजी से फंसते जा रहे हैं डोनाल्ड ट्रम्प

डोनाल्ड ट्रम्प कई मोर्चों पर घिरे हुए हैं। उनकी यूक्रेन नीति विफल हो गई है। पुतिन के साथ उनकी दोस्ती की कवायद और चीन के खिलाफ उनका अभियान खटाई में पड़ चुका है। उनके टैरिफ के झांसे उलटे पड़ रहे हैं, जिससे यूएस निर्माताओं, आयातकों और उपभोक्ताओं के लिए योजना बनाना मुश्किल हो रहा है। ट्रम्प की चीनी रणनीति अलगाव और आक्रामकता का एक बेमेल मिश्रण है। उनकी मनमाने कदमों को ज्यादातर अदालतें रोक रही हैं।

एग्रीकल्चर सेक्रेट्री ब्रुक रोलिंस के ICE छापों से खेतिहर मजदूरों को बचाने की प्रतिबद्धता जताने के बाद, जिसे बाद में संदिग्ध अपराधियों के अलावा होटल और रेस्तरां के मजदूरों तक बढ़ा दिया गया, ट्रम्प ने गुस्से में आकर अपना रुख़ पलट दिया और ICE को निर्देश दिया कि अरेस्ट को दोगुना करे। उनके बिग ब्यूटीफुल बिल ने कांग्रेस में उनके रिपब्लिकन सहयोगियों को विभाजित कर दिया है। राष्ट्रपति बनने के बाद तक उऩके हमकदम रहे एलन मस्क भी उनके इस कदर खिलाफ हो चुके हैं कि वो उनको एक्सपोज करने की धमकी देने लगे हैं। ट्रम्प की अप्रूवल रेटिंग अब बहुत नीचे गिर गई है। जैसे-जैसे ट्रम्प अधिक अलोकप्रिय होते जा रहे हैं, वो लापरवाह होते जा रहे हैं। पिछले हफ्ते तक वो ईरान पर इजराइल के व्यापक युद्ध को रोकने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन अब इन वजहों के चलते खुद इसमें कूद गए।

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ईरान के जरिये खुद को चमकाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं

इन सारी चीजों को देखने से लगता है कि ट्रम्प अपने खिलाफ बने माहौल को ईरान के जरिये धोना चाहते हैं। उनको पता है कि वो अपने देश में और वहां से बाहर की दुनिया में बुरी तरह से घिर चुके हैं। माहौल को अपने पक्ष में करना है कि तो उन्हें अपने उस नारे की तरफ वापस जाना होगा जिसमें उन्होंने कहा था-  मेक अमेरिका ग्रेट अगेन। हालांकि जब वो राष्ट्रपति का चुनाव दोबारा लड़ रहे थे तो उन्होंने अपने पूरे अभियान के दौरान प्रेसीडेंट फार पीस होने का वादा किया था।

विदेशी धरती पर सैन्य उलझनों से बचने का वचन दिया था। लेकिन अब उनको लग रहा है कि ईरान पर त्वरित हमला  निर्णायक होगा और तेहरान उनकी मांगों को मान लेगा। उसके बाद दुनिया उनके पीछे आने में देर नहीं लगाएगी। जो माहौल उनके खिलाफ है वो तकरीबन खत्म हो जाएगा। एक के बाद एक असफलताओं के बाद ट्रम्प को जीत की बेहद सख्त जरूरत है। अगर चीजें ठीक रहीं तो ट्रम्प को फोर्डो में जमीन के नीचे दबी ईरान की यूरेनियम प्रयोगशालाओं को ध्वस्त करने का श्रेय मिलेगा। इनको नेस्तनाबूद करने के लिए 30 हजार पाउंड के बंकर बस्टर का इस्तेमाल किया जाएगा, जो केवल अमेरिका के पास है। हालात जो बन रहे हैं उनमें लगता है कि ट्रम्प अयातुल्ला खामेनेई की हत्या में नेतन्याहू के साथ शामिल हो सकते हैं। उनकी कोशिश होगी कि ईरान मुल्ला तंत्र के खिलाफ खड़ा होकर और इजरायल के साथ शांति करे और अमेरिकी का पिछलग्गू बन जाए।

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लेकिन इस लड़ाई में कूदने के दूरगामी परिणाम भी हैं

लेकिन इसके दूरगामी परिणाम भी होते दिख रहे हैं। यहूदियों के बहुत से दक्षिणपंथी दोस्त फिर से यहूदी-विरोधी रवैये पर वापस लौट आएंगे। इजरायल एक अंतरराष्ट्रीय बहिष्कृत देश बन जाएगा, जो अमेरिका को अमेरिकी सहयोगियों के बचे-खुचे हिस्से से अलग कर देगा। नेतन्याहू खुद अपने घर में घिरे हुए हैं। उनकी कुर्सी खतरे में है। वो करप्ट साबित हो चुके हैं। ट्रम्प के समर्थन से वह वो कुछ करने की कोशिश कर रहे हैं जो किसी अन्य इजरायली नेता ने नहीं किया है। शिया और सुन्नी राज्यों को एकजुट करना। जो एक-दूसरे से नफरत करते हैं। इजरायल ईरान को शायद हरा सकता है, चाहे इसका मतलब जो भी हो, लेकिन इजरायल पूरे मध्य पूर्व के खिलाफ एक साथ युद्ध नहीं जीत सकता। मिडिल ईस्ट के बाकी देश अमेरिकी अभियान से खुश नहीं हैं। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को क्षेत्रीय शक्ति संतुलन की अच्छी समझ है। ईरान पर इजरायल का चौतरफा युद्ध अब्राहम समझौते को खत्म कर रहा है। 2023 से सऊदी सरकार ईरान के साथ तनाव कम करने की कोशिश कर रही है। सऊदी ने पिछले सप्ताह ईरान के खिलाफ इजरायल के जबरदस्त आक्रमण की निंदा की थी। 

खटाई में पड़ सकता है अब्राहम समझौता 

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अब्राहम समझौता एक शांति समझौता है, जिसका उद्देश्य इजरायल और अरब देशों के बीच कूटनीतिक संबंध स्थापित करना है। 2020 का यह समझौता दशकों से चली आ रही दुश्मनी को समाप्त कर व्यापार, सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने की कवायद है। इस समझौते के तहत पहले संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने इजरायल को मान्यता दी। इसके बाद सूडान और मोरक्को ने भी इस प्रक्रिया में कदम रखा। इस समझौते का नाम अब्राहम रखा गया है, जो यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम के साझा धर्मगुरु अब्राहम से प्रेरित है और इसका उद्देश्य इन तीन धर्मों के देशों के बीच संवाद और सहयोग बढ़ाना है। जहां यूएई और बहरीन पहले ही व्यापारिक समझौतों, संयुक्त रक्षा परियोजनाओं और पर्यटन के क्षेत्र में इजरायल के साथ कदम बढ़ा चुके हैं, वहीं सऊदी अरब अब तक इस समझौते से दूर रहा है। हालांकि सऊदी अरब ने अब तक औपचारिक रूप से इजरायल को मान्यता नहीं दी है, लेकिन अब्राहम समझौते के प्रति उसकी बढ़ती सहमति मिडिल ईस्ट में शांति की एक अनूठी पहल बन सकती थी। ईरान पर इजरायल के हमलों और अमेरिकी भागीदारी से ये समझौता बेमतलब हो सकता है। 

ईरान पर हमले के फैसले से अमेरिकी भी स्तब्ध

सर्वेक्षणों से पता चलता है कि अधिकांश अमेरिकी चाहते हैं कि अमेरिका युद्ध से बाहर रहे। YouGov के एक नए सर्वेक्षण में पाया गया कि केवल 23 प्रतिशत रिपब्लिकन कहते हैं कि अमेरिका को ईरान और इजराइल के बीच संघर्ष में शामिल होना चाहिए, जबकि 51 प्रतिशत चाहते हैं कि अमेरिका इससे बाहर रहे। सभी अमेरिकियों में से केवल 16 प्रतिशत अमेरिकी इजरायल के साथ भागीदारी का समर्थन करते हैं, जबकि 60 प्रतिशत विरोध करते हैं। जॉर्जिया के रिप्रजेंटेटिव मार्जोरी टेलर ग्रीन ने एक्स पर लिखा कि कोई भी व्यक्ति जो अमेरिका को इजराइल-ईरान युद्ध में पूरी तरह से शामिल होने के लिए उकसा रहा है, वह अमेरिकी नहीं है। निर्दोष लोगों की हत्या करना घृणित है। कहने की जरूरत नहीं कि ईरान पर खेला दांव उलटा पड़ा तो ट्रम्प के लिए अमेरिका में मुश्किलें बहुत ज्यादा बढ़ सकती हैं।

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