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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में लोकतंत्र बहाल होने के संकेत हैं। हंगामे और जन उबाल के बाद शेख हसीना सरकार के पतन के बाद देश में अभी कार्यवाहक सरकार सत्ता संभाले हुई है। अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस ने शुक्रवार को घोषणा की कि देश में अप्रैल 2026 में आम चुनाव कराए जाएंगे।
शेख हसीना के सत्ता से बेदखल होने के बाद पहला चुनाव
मुहम्मद यूनुस की इस घोषणा के साथ ही बांग्लादेश में सत्ता की तस्वीर बदल जाएगी। सब कुछ पटरी पर रहा तो अगले वर्ष अप्रैल में होने वाला आम चुनाव पिछले वर्ष उस ऐतिहासिक जन उबाल के बाद का पहला चुनाव होगा जिसके कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को अगस्त 2024 सत्ता से न केवल हाथ धोना पड़ा, बल्कि भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी।
सरकारी नौकरी में कोटा प्रणाली के विरुद्ध आंदोलन जनविद्रोह में बदला
सरकारी नौकरी में कोटा प्रणाली के खिलाफ शुरू हुआ प्रदर्शन धीरे-धीरे जनविद्रोह में बदल गया। महीनों तक चले प्रदर्शनों में 300 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और 10,000 से अधिक प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी हुई। शेख हसीना के पतन के बाद बाद सेना ने सत्ता संभाली और मुहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख नियुक्त किया गया।
शेख हसीना पर चलेगा मामला
बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने 1 जून 2025 को पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना पर मानवता के खिलाफ अपराधों का मुकदमा दर्ज किया है। आरोप है कि उन्होंने विरोध प्रदर्शनों को कुचलने के लिए संगठित हमले करवाए। उनके साथ पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल और पूर्व पुलिस महानिदेशक चौधरी ममून को भी सह-आरोपी बनाया गया है।
घाषणा से पहले मचा रहा राजनीतिक तूफान
इस घोषणा से पहले चुनाव को लेकर बांग्लादेश में राजनीतिक तूफान मचा रहा। पिछले शनिवार को यूनुस ने 28 से ज्यादा राजनीतिक दलों के साथ बैठक की, जिसमें ज्यादातर ने दिसंबर या उससे पहले तक चुनाव पर सहमति जताई थी। खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) दिसंबर 2025 तक चुनाव चाहती है। तीन राजनीतिक दल, जिनमें कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी और नाहिद इस्लाम की एनसीपी यूनुस के दिसंबर 2025 और जून 2026 के बीच चुनाव कराने का समर्थन कर रहे थे।
जमात-ए-इस्लामी पर से बैन हटा
जमात-ए-इस्लामी को हाल ही में बांग्लादेशी सुप्रीम कोर्ट से चुनाव लड़ने की मंजूरी मिली है, जिसने सियासी माहौल को और गरमा दिया है। 2013 में शेख हसीना की सरकार ने जमात-ए-इस्लामी को बैन किया था। उस पर देश-विरोधी गतिविधियों का आरोप लगा था। लेकिन अगस्त 2024 में हसीना के सत्ता से हटने के बाद, यूनुस की अंतरिम सरकार ने इस बैन को हटा दिया।
जमात की पुराने चुनाव चिह्न के साथ मैदान में उतरने की तैयारी
जमात अब अपनी पुरानी ‘तराजू’ निशान के साथ चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। उसे अपना जनाधार बनाने के लिए समय की जरूरत है, इसलिए चुनाव कराने में देरी वह चाहती है ताकि अपना जनाधार बढ़ा सके और गठबंधन की स्थिति में वह किंग मेकर बन सके।
भारत विरोधी है जमात-ए-इस्लामी
1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में पाकिस्तान का साथ देने वाली जमात-ए-इस्लामी का इतिहास भारत विरोधी रहा है। हाल ही में जमात ने चीनी प्रतिनिधियों से मुलाकात कर रोहिंग्या के लिए अलग देश की मांग उठाई, जो भारत के लिए चिंता का विषय है। इस पार्टी का पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था आईएसआई से पुराना रिश्ता भी भारत के लिए खतरे की घंटी है।