दिल्ली वाईबीएन नेटवर्क: "मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बना लेना, मैं समुंदर हूं, लौट कर वापस आउंगा" ये लाइन डोनाल्ड ट्रंप पर भी सटीक बैठती है, अमेरिका में जब ट्रंप लौटे तो ऐसे लौटे कि उन्होंने दुनिया को चौंका दिया। 20 जनवरी से ट्रंप अमेरिका के 47 वें राष्ट्रपति के तौर पर अपना दूसरा कार्यकाल शुरू करेंगे।
लेकिन भारत के लिहाज से यहां सवाल यह है, कि क्या ट्रंप का दूसरा कार्यकाल भी भारत के लिए अच्छा संकेत है, या फिर इस बार कहानी कुछ और हो सकती है। ट्रंप के पिछले कार्यकाल की नीतियां जगजाहिर हैं। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी दोस्ती भी। फिर चाहे वह 2021 के चुनाव में "अबकी बार मोदी सरकार" के नारे की तर्ज पर 'अबकी बार ट्रंप सरकार' का प्रयोग हो या फिर प्रधानमंत्री मोदी का "हाउडी मोदी" कार्यक्रम।
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ट्रम्प का का चुनाव अभियान
लेकिन 2024 के अमेरिकी चुनाव में ट्रंप का रुख थोड़ा बदला हुआ है। इस बार अपने चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप ने भारत की नीतियों पर भी हमला बोला है। इतना ही नहीं, इस चुनाव में ट्रंप ने कई बार सार्वजनिक मंचों से पीएम मोदी का नाम भी लिया है। अब सवाल यह है कि “क्या फिर से दिखेगा मोदी और ट्रंप का प्यार या क्या अबकी बार आर-पार। इस पूरे मामले पर कूटनीतिज्ञों और विदेश नीति विशेषज्ञों की मानें तो उनका मानना है कि भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में और सुधार की संभावनाएं हैं, लेकिन कई अन्य चिंताएं भी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की अप्रत्याशित नेतृत्व शैली को देखते हुए दोनों देशों के संबंधों के बारे में अभी कुछ कहना उचित नहीं होगा।
कभी प्यार-कभी तकरार
ट्रंप के बारे में एक बात साफ तौर पर कही जा सकती है कि भारत के प्रति उनका रवैया कभी प्यार भरा तो कभी टकराव वाला रहा है। आतंकवाद के मुद्दे पर ट्रंप बिल्कुल स्पष्ट हैं और खुलकर इसका विरोध करते हैं, जो भारत के लिए अच्छी खबर है। लेकिन जब बात आर्थिक मोर्चे की आती है तो उनका रवैया बदल जाता है। सुरक्षा और आतंकवाद के मुद्दे पर ट्रंप भारत के साथ प्यार भरा रिश्ता रखते हैं, जबकि आर्थिक मोर्चे पर वो भारत के खिलाफ हो जाते हैं। यहां उनका भारत के साथ टकराव वाला रिश्ता है।
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निष्कर्ष
ट्रंप के चुनाव प्रचार, पीएम मोदी के साथ उनकी दोस्ती, आतंकवाद पर उनकी मुखरता और भारत की आर्थिक नीतियों पर उनके बयानों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि ट्रंप का लौटना कुछ मुद्दों पर भारत के लिए अच्छा हो सकता है, जबकि कुछ मुद्दों पर दोनों देशों की सरकारें आमने-सामने आ सकती हैं, लेकिन यह देखना बाकी है कि आने वाले समय में दोनों देशों की सरकारें इन मुद्दों से कैसे निपटती हैं।