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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। अमेरिका से टैरिफ वार के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के बंदरगाह शहर तिआंजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए बृहस्पतिवार को रवाना हो गए। पहले वो जापान जाएंगे और 31 अगस्त को एससीओ शिखर सम्मेलन में शिरकत करेंगे। आइए जानते हैं क्या है एससीओ और कितना प्रभावी है? इसमें भारत की भूमिका कैसी है? दरअसल, एससीओ की जड़ें "शंघाई फाइव" व्यवस्था में हैं, जब शीत युद्ध की समाप्ति के बाद सीमा सुरक्षा के मुद्दों के प्रबंधन के लिए 1996 में चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान एक साथ आए थे। 15 जून, 2001 को शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना हुई, जिसमें उज्बेकिस्तान छठे सदस्य के रूप में शामिल हुआ।
क्षेत्रीय सुरक्षा समूह के रूप में हुई शुरुआत
इसकी एक क्षेत्रीय सुरक्षा समूह के रूप में शुरूआत हुई थी। यह संगठन आज एक क्षेत्रीय संगठन के रूप में विकसित हो गया है। एससीओ दुनिया की लगभग आधी आबादी, वैश्विक भूभाग का एक चौथाई और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का एक चौथाई हिस्सा कवर करता है।
एससीओ के सदस्यों की संख्या: एससीओ में अब 10 सदस्य देश, दो पर्यवेक्षक देश और 14 वार्ता साझेदार देश हैं। वर्तमान में एससीओ देशों में शामिल हैं- बेलारूस, भारत, ईरान, कजाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान।
एससीओ के प्रमुख उद्देश्य
राजनीतिक मामलों, अर्थव्यवस्था और व्यापार, वैज्ञानिक-तकनीकी, सांस्कृतिक और शैक्षिक क्षेत्रों के साथ-साथ ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन और पर्यावरण संरक्षण में सहयोग को बढ़ावा देना, क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और स्थिरता की रक्षा करना, लोकतांत्रिक, न्यायसंगत अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था बनाना
एससीओ सदस्य देशों की अर्थव्यवस्था
2022 में जारी एक व्यापार विकास रिपोर्ट के अनुसार, इसकी स्थापना के बाद से पहले 20 वर्षों में, एससीओ सदस्य देशों का कुल व्यापार मूल्य लगभग 100 गुना बढ़ गया, जबकि वैश्विक व्यापार में उनकी हिस्सेदारी 2001 में 5.4 प्रतिशत से बढ़कर 2020 में 17.5 प्रतिशत हो गई, जो बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है।
भारत और शंघाई सहयोग संगठन
जुलाई 2005 के अस्ताना शिखर सम्मेलन में भारत को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया गया था। उसके बाद से भारत ने पर्यवेक्षकों के लिए खुले सभी शंघाई सहयोग संगठन मंचों में भाग लिया है। सितंबर 2014 में दुशांबे में हुए शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन से पहले, भारत ने शंघाई सहयोग संगठन के तत्कालीन अध्यक्ष देश ताजिकिस्तान को पूर्ण सदस्यता के लिए औपचारिक रूप से आवेदन प्रस्तुत किया था। इसके बाद, जुलाई 2015 में उफा (रूस) में हुए अगले शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन में, शंघाई सहयोग संगठन में भारत (और पाकिस्तान) की पूर्ण सदस्यता की प्रक्रिया की शुरुआत की घोषणा की गई।
एससीओ शिखर सम्मेलन में मोदी की भागीदारी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 (चिंगदाओ), 2019 (बिश्केक), 2020 (मॉस्को, वर्चुअल प्रारूप), 2021 (दुशांबे, वर्चुअल प्रारूप), 2022 (ताशकंद) और 2023 (नई दिल्ली, वर्चुअल प्रारूप) में एससीओ शिखर सम्मेलनों में भाग लिया। 2024 के अस्ताना शिखर सम्मेलन में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने प्रधानमंत्री का प्रतिनिधित्व किया।
शंघाई सहयोग संगठन में भारत का योगदान
भारत ने 16 सितंबर 2022 को समरकंद शिखर सम्मेलन में शंघाई सहयोग संगठन की अध्यक्षता संभाली थी। शंघाई सहयोग संगठन में भारत की अध्यक्षता सदस्य देशों के बीच गहन गतिविधि और पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग का काल रही। भारत ने 140 से अधिक बैठकों और कार्यक्रमों की मेजबानी की, जिनमें 14 मंत्रिस्तरीय बैठकें शामिल हैं। भारत ने अपनी अध्यक्षता में सहयोग के नए स्तंभ स्थापित किए - स्टार्टअप और नवाचार; पारंपरिक चिकित्सा; डिजिटल समावेशन; युवा सशक्तीकरण; और साझा बौद्ध विरासत. इसके अलावा, भारत ने एससीओ देशों के बीच ऐतिहासिक और सभ्यतागत संबंधों का जश्न मनाते हुए लोगों के बीच बेहतर संबंधों को बढ़ावा देने की दिशा में काम किया।
पीएम मोदी की भागीदारी का महत्व
ट्रंप प्रशासन द्वारा भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत टैरिफ की घोषणा ने एक विश्वसनीय हिंद-प्रशांत साझेदार के रूप में अमेरिका पर भारत के बढ़ते विश्वास को हिला दिया है। ट्रंप का रवैया और टैरिफ दोनों एशियाई दिग्गजों भारत और चीन को एक-दूसरे के करीब ला रहे हैं, क्योंकि दोनों पड़ोसी देश अपने संबंधों में नया अध्याय शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं। चीनी विदेश मंत्री वांग यी की हालिया यात्रा के दौरान इसकी पुष्टि हुई, जब चीन ने उर्वरकों, दुर्लभ मृदा चुम्बकों, महत्वपूर्ण खनिजों और सुरंग खोदने वाली मशीनों पर निर्यात प्रतिबंध हटा दिए। यह देखते हुए कि भारत अपने लगभग 90 प्रतिशत दुर्लभ मृदा चुम्बकों का आयात चीन से करता है। Shanghai Cooperation Organisation | SCO 2025 | India role in SCO