वाशिंगटन, वाईबीएन नेटवर्क।
Tariff War: अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ को लेकर तनाव बना हुआ है। दोनों देश अपनी-अपनी जगह अड़े हुए हैं और कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। इसी बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि अगर टैरिफ पर कोई बातचीत होनी है तो इसकी शुरुआत चीन को करनी होगी। ट्रंप ने अपने बयान में कहा, "बातचीत कब और कैसे होगी, ये चीन को तय करना है। हमें उनसे कोई डील करनी जरूरी नहीं है बल्कि उन्हें हमसे समझौता करना होगा। चीन और बाकी देशों में फर्क है।" हालांकि अब उनके सुर नरम पड़ रहे हैं। टैरिफ को लेकर अमेरिका में भी जबरदस्त विरोध है। इस टैरिफ युद्ध ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता बढ़ा दी है।
कैरोलिन लेविट ने जारी किया बयान
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा, "राष्ट्रपति ने चीन को लेकर अपनी बात बहुत साफ कर दी है और अभी-अभी उन्होंने ओवल ऑफिस में मुझसे एक और बयान साझा किया है, जो मैं बताना चाहती हूं। लेविट ने कहा, "अब गेंद चीन के पाले में हैं। चीन को अमेरिका से समझौता करने की जरूरत है। हमें उनके साथ समझौते की कोई ज़रूरत नहीं है। चीन और बाकी देशों में फर्क नहीं है, सिवाय इसके कि वे (चीन) बहुत बड़े हैं।" : international news | International Relations | DonaldTrump | donald trump news
चीन से समझौते को तैयार, लेकिन
ट्रंप का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि चीन और बाकी देश वही चाहते हैं जो अमेरिका के पास है-अमेरिकी ग्राहक। साफ शब्दों में कहें तो "उन्हें हमारे पैसों की जरूरत है।" लेविट ने कहा, " राष्ट्रपति ने इसलिए एक बार फिर साफ कर दिया है कि वह चीन से समझौते के लिए तैयार हैं, लेकिन असल में चीन को अमेरिका के साथ समझौता करना पड़ेगा।"
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अमेरिका के साथ चल रहे ट्रेड वॉर पर पहली बार प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने साफ कहा कि चीन किसी से डरने वाला नहीं है। बीजिंग में स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज से मुलाकात के दौरान जिनपिंग ने कहा, "इस ट्रेड वॉर में कोई नहीं जीत सकता। अगर आप दुनिया के खिलाफ जाएंगे तो खुद ही अलग-थलग पड़ जाएंगे।" उन्होंने ये भी कहा कि पिछले 70 सालों में चीन ने अपनी मेहनत से तरक्की की है और वो किसी के दबाव में झुकने वाला नहीं है। जिनपिंग ने यूरोपीय संघ (EU) से अपील की कि वे अमेरिका की इस एकतरफा दबाव वाली नीति के खिलाफ साथ आएं। उन्होंने कहा कि चीन और यूरोप को मिलकर अपने अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियां निभानी चाहिए और अमेरिका की इस दादागिरी का मिलकर जवाब देना चाहिए।
असली निशाने पर है चीन
दरअसल, अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ को लेकर तनाव 2025 में अपने चरम पर पहुंच गया है, जिसके केंद्र में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आक्रामक टैरिफ नीतियां और चीन की जवाबी कार्रवाइयां हैं। ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में वैश्विक व्यापार घाटे को कम करने के लिए "रेसिप्रोकल टैरिफ" नीति को जोर-शोर से लागू किया, जिसका सबसे बड़ा निशाना चीन बना। इस नीति के तहत, ट्रंप ने उन देशों पर समान टैरिफ लगाने की वकालत की, जो अमेरिकी सामानों पर ऊंचे शुल्क लगाते हैं। उनका तर्क है कि यह नीति अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगी और व्यापार संतुलन को ठीक करेगी।
चीन पर टैरिफ को 145% टैरिफ
ट्रंप ने चीन पर विशेष रूप से कड़ा रुख अपनाया था। उन्होंने 8 अप्रैल 2025 को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर कहा, "चीन के विश्व बाजारों के प्रति अनादर के आधार पर, मैं अमेरिका द्वारा चीन पर शुल्क 125% तक बढ़ा रहा हूं, तत्काल प्रभाव से। उम्मीद है, चीन को जल्द समझ आएगा कि अमेरिका और अन्य देशों का शोषण अब संभव नहीं।" इसके बाद, उन्होंने चीन पर टैरिफ को 145% तक बढ़ाने की घोषणा की, जबकि अन्य 75 से अधिक देशों को 90 दिनों की छूट देते हुए रेसिप्रोकल टैरिफ को 10% तक सीमित किया। ट्रंप का कहना है कि चीन ने लंबे समय तक अमेरिका के साथ "असहनीय रूप से बुरा व्यवहार" किया और अब "अमेरिका वैश्विक व्यापार में मूर्ख बनकर नहीं रहेगा।"
व्यापार घाटा है टैरिफ की बड़ी वजह
रेसिप्रोकल टैरिफ को लेकर विवाद का मूल कारण अमेरिका और चीन के बीच व्यापार घाटा है, जो लगभग 295 अरब डॉलर का है। ट्रंप का मानना है कि चीन द्वारा अमेरिकी सामानों पर लगाए गए ऊंचे टैरिफ अनुचित हैं, और उनकी नीति इसे संतुलित करेगी। दूसरी ओर, चीन ने अमेरिका के टैरिफ को "एकतरफा उकसावे" और विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) नियमों का उल्लंघन बताया। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि चीन "अन्यायपूर्ण दमन से नहीं डरता" और वह "अंत तक लड़ेगा।" चीन ने जवाबी टैरिफ के साथ-साथ दुर्लभ खनिजों पर निर्यात नियंत्रण जैसे कदम उठाए, जिससे तनाव और बढ़ गया।