नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। Donald Trump Attack on Iran: अमेरिकी
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा गुरुवार को ईरान को दी गई "दो हफ्ते की डेडलाइन" महज दो दिन में ही खत्म हो गई। शनिवार की रात ट्रंप ने ऐलान किया कि अमेरिकी लड़ाकू विमानों ने ईरान के
तीन परमाणु ठिकानों पर सफलतापूर्वक हमला किया है। इस हमले में ईरान का बेहद सुरक्षित माना जाने वाला फोर्दो परमाणु ठिकाना भी निशाने पर था, जिसे ईरान की न्यूक्लियर ताकत का 'ताज' माना जाता है।
ट्रंप ने क्यों दी थी दो हफ्तों की डेडलाइन
अब सवाल उठता है कि क्या यह "दो हफ्तों की डेडलाइन" सिर्फ एक रणनीतिक छल थी? क्या ट्रंप प्रशासन ने ईरान को झूठी सुरक्षा का अहसास दिलाने की कोशिश की? या फिर ट्रंप के शांतिदूत स्टीव विटकॉफ द्वारा किए जा रहे पर्दे के पीछे के समझौते विफल हो गए? अभी तक इस हमले के बाद बहुत कम जानकारी सामने आई है। हालांकि ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में इसे "बहुत सफल ऑपरेशन" बताया और कहा, "अब शांति का समय है।" लेकिन क्या वाकई ऐसा होगा?
ईरान की चेतावनी और बढ़ते तनाव
ईरान ने पहले ही चेताया था कि अगर अमेरिका, इज़राइल की तरफ से उसकी संप्रभुता पर हमला करता है तो वह जवाबी कार्रवाई करेगा। इज़राइल ने पिछले दिनों ईरान की सैन्य ताकत को कमजोर करने की कई कोशिशें की हैं, लेकिन ईरान के पास अब भी जवाब देने के हथियार और रणनीतियां बची हैं। अब निगाहें इस पर टिकी हैं कि ईरान अमेरिका के इस हमले पर किस तरह की प्रतिक्रिया देता है। क्या यह संघर्ष एक बड़े युद्ध में तब्दील होगा?
क्या अमेरिका ने लक्ष्य हासिल कर लिया?
Israel- Iran war: ट्रंप भले ही इस हमले को एक सफल एकमुश्त कार्रवाई बता रहे हों, लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या अमेरिकी वायुसेना ने वाकई में ईरान के बेहद संरक्षित न्यूक्लियर ठिकानों को पूरी तरह नष्ट कर दिया है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो अमेरिका पर फिर से हमला करने का दबाव बढ़ेगा और ट्रंप को भारी राजनीतिक जोखिम उठाना पड़ सकता है।
अमेरिका के भीतर भी असहमति
इस हमले को लेकर अमेरिका के अंदर भी राजनीतिक भूचाल है। न केवल डेमोक्रेट्स बल्कि ट्रंप की खुद की 'अमेरिका फर्स्ट' विचारधारा से जुड़े लोग भी इस पर सवाल उठा रहे हैं। ट्रंप के पहले कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि यह मानी जाती थी कि उन्होंने कोई नया युद्ध शुरू नहीं किया। लेकिन अब वही राष्ट्रपति एक आक्रामक हमले के साथ वैश्विक संघर्ष के मुहाने पर खड़े नजर आ रहे हैं।
युद्ध लंबा चला तो ट्रंप की भी मुश्किल तय
अगर यह हमला एक सीमित कार्रवाई रहा तो ट्रंप अपनी राजनीतिक छवि को बचा सकते हैं। लेकिन यह हमला अमेरिका को एक बड़े युद्ध में घसीट ले गया, तो ट्रंप को अपने ही समर्थकों के गुस्से का सामना करना पड़ सकता है। अब गेंद ईरान के पाले में है। क्या वह जवाबी हमला करेगा? क्या बातचीत के दरवाजे पूरी तरह बंद हो चुके हैं? और क्या ट्रंप का यह दाव कूटनीतिक रूप से फायदेमंद साबित होगा या अमेरिका को एक और युद्ध की आग में झोंक देगा, यह आने वाला समय तय करेगा।
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