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Match fixing IN IPL: मैच फिक्सिंग के घने काले बादलों से फिर कम हुई क्रिकेट की चमक

क्रिकेट भारत में एक धर्म की तरह है, जो लाखों लोगों के दिलों और भावनाओं को जोड़ता है। लेकिन इस खेल की चमक को कुछ हद तक मैच फिक्सिंग के काले बादलों ने धूमिल किया है।

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Suraj Kumar
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नई दिल्‍ली, वाईबीएन स्‍पोर्ट्स।  क्रिकेट भारत में एक धर्म की तरह है, जो लाखों लोगों के दिलों और भावनाओं को जोड़ता है। लेकिन इस खेल की चमक को कुछ हद तक मैच फिक्सिंग के काले बादलों ने धूमिल किया है। मैच फिक्सिंग, क्रिकेट की साख और खेल भावना पर एक गंभीर आघात है। यह न केवल खेल की निष्पक्षता को प्रभावित करता है, बल्कि प्रशंसकों का विश्वास भी तोड़ता है। आईपीएल ( IPL)के राजस्थान रॉयल्स और लखनऊ सुपर जायंट्स के मुकाबले में मैच फिक्सिंग के आरोप से व्हाइट कॉल गेम माने जाने वाले क्रिकेट पर फिर बदनुमा दाग लगा गया है। इसमें कितनी सच्चाई है, यह तो जांच में ही सामने आएगा, लेकिन जिस तरह के आरोप लगे हैं, वे काफी गंभीर भी हैं और सवालों को कोहरा घना करने के लिए काफी है। क्रिकेट और फिक्सिंग का पुराना नाता रहा है। आइए जानते हैं भारत में क्रिकेट से जुड़े मैच फिक्सिंग के कुछ ऐसे विवाद, जिन्होंने क्रिकेट जगत में भूचाल ला दिया था।... 

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भारत में मैच फिक्सिंग के मामले

भारत में मैच फिक्सिंग के मामले मुख्य रूप से 1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक की शुरुआत में सामने आए। सबसे चर्चित मामलों में निम्नलिखित शामिल हैं:

2000 का हैंसी क्रॉनिए कांड: यह भारत का पहला बड़ा मैच फिक्सिंग घोटाला था, जिसमें दक्षिण अफ्रीका के कप्तान हैंसी क्रॉनिए का नाम सामने आया। दिल्ली पुलिस ने क्रॉनिए और भारतीय सट्टेबाज संजीव चावला के बीच बातचीत के टेप रिकॉर्ड किए, जिसमें मैच फिक्सिंग की योजना बन रही थी। इस घोटाले में भारतीय खिलाड़ी मनोज प्रभाकर और अजय जडेजा का नाम भी उछला। इस मामले ने क्रिकेट जगत को हिलाकर रख दिया।

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2013 का आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग कांड: इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में 2013 में स्पॉट फिक्सिंग का बड़ा मामला सामने आया। इस घोटाले में राजस्थान रॉयल्स के खिलाड़ी श्रीसंत, अंकित चव्हाण और अजीत चंदीला शामिल थे। दिल्ली पुलिस ने इन खिलाड़ियों को सट्टेबाजों के साथ मिलकर स्पॉट फिक्सिंग करने के आरोप में गिरफ्तार किया। इस मामले में सट्टेबाजों और कुछ फ्रेंचाइजी अधिकारियों के नाम भी सामने आए।

2012 में स्टिंग ऑपरेशन: टीवी चैनल इंडिया टीवी ने 2012 में एक स्टिंग ऑपरेशन के जरिए पांच घरेलू क्रिकेटरों - टीपी सुदींद्र, मुरलीधरन गौतम, शलभ श्रीवास्तव, अमित यादव और अभिनव बाली - पर फिक्सिंग के आरोप लगाए। इन खिलाड़ियों पर सट्टेबाजों से पैसे लेकर खराब प्रदर्शन करने का आरोप था।

इनके अलावा समय-समय पर घरेलू क्रिकेट और छोटे टूर्नामेंट्स में भी फिक्सिंग के आरोप सामने आए हैं। उदाहरण के लिए, 2018 में अलीगढ़ क्रिकेट लीग में फिक्सिंग का मामला सामने आया, जिसमें स्थानीय खिलाड़ी शामिल थे। अनुमान है कि भारत में पिछले दो दशकों में 10-15 बड़े और छोटे मैच फिक्सिंग मामले सामने आए हैं। ये मामले मुख्य रूप से क्रिकेट से संबंधित हैं, क्योंकि यह भारत में सबसे लोकप्रिय खेल है।

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खिलाड़ियों पर हुई कार्रवाई

साख बचाने के लिए मैच फिक्सिंग में शामिल खिलाड़ियों पर कठोर कार्रवाई की गई है, ताकि खेल की साख बनी रहे। 

2000 के घोटाले में कार्रवाई:

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मनोज प्रभाकर: उन पर आजीवन प्रतिबंध लगा, लेकिन बाद में इसे हटा लिया गया।

अजय जडेजा: पांच साल का प्रतिबंध लगाया गया, जिसे बाद में कम कर दिया गया।

मोहम्मद अजहरुद्दीन: पूर्व भारतीय कप्तान पर आजीवन प्रतिबंध लगा, लेकिन 2012 में आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने इसे हटा दिया।

2013 आईपीएल घोटाले में कार्रवाई:

श्रीसंत: उन पर बीसीसीआई ने आजीवन प्रतिबंध लगाया, लेकिन 2020 में इसे सात साल तक कम कर दिया गया। सजा पूरी होने के बाद वे क्रिकेट में वापस लौटे।

अंकित चव्हाण और अजीत चंदीला: दोनों पर आजीवन प्रतिबंध लगाया गया।

टीमों पर कार्रवाई: चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रॉयल्स को दो साल के लिए आईपीएल से निलंबित कर दिया गया।

2012 स्टिंग ऑपरेशन:

टीपी सुदींद्र पर आजीवन प्रतिबंध लगाया गया।
शलभ श्रीवास्तव पर पांच साल का प्रतिबंध लगा।
अन्य खिलाड़ियों को एक से तीन साल तक के लिए निलंबित किया गया।

देश में 20-25 खिलाड़ियों पर विभिन्न स्तरों पर कार्रवाई हुई है, जिसमें आजीवन प्रतिबंध से लेकर अस्थायी निलंबन तक शामिल हैं। इसके अलावा, सट्टेबाजों और मध्यस्थों पर भी पुलिस और कानूनी कार्रवाई हुई है।

मैच फिक्सिंग क्या है और कैसे होती है...

मैच फिक्सिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें खिलाड़ी, कोच, अंपायर या अन्य संबंधित व्यक्ति सट्टेबाजों या बाहरी एजेंटों के साथ मिलकर खेल के परिणाम या उसके कुछ हिस्सों को पहले से तय करते हैं। यह खेल की निष्पक्षता को नष्ट करता है। मैच फिक्सिंग के दो मुख्य प्रकार हैं:

पूर्ण मैच फिक्सिंग: इसमें पूरे मैच का परिणाम पहले से तय किया जाता है, जैसे कि कौन सी टीम जीतेगी।

स्पॉट फिक्सिंग: इसमें मैच के छोटे-छोटे हिस्सों को फिक्स किया जाता है, जैसे कि एक विशेष ओवर में कितने रन बनेंगे या कोई खिलाड़ी कब आउट होगा।
मैच फिक्सिंग आमतौर पर सट्टेबाजी के लिए की जाती है, जहां सट्टेबाज बड़े मुनाफे कमाने के लिए खिलाड़ियों को पैसे या अन्य प्रलोभन देते हैं। यह अवैध है और इसे खेल और कानून दोनों के दृष्टिकोण से गंभीर अपराध माना जाता है।

मैच फिक्सिंग को रोकने के उपाय

मैच फिक्सिंग को रोकने के लिए कई स्तरों पर प्रयास किए जा रहे हैं।

कठोर कानून और सजा:

भारत में सट्टेबाजी और मैच फिक्सिंग को रोकने के लिए विशेष कानून की आवश्यकता है। वर्तमान में, भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी) और अन्य धाराओं के तहत कार्रवाई की जाती है। एक समर्पित कानून फिक्सिंग से निपटने में अधिक प्रभावी होगा।
दोषी खिलाड़ियों और सट्टेबाजों पर कठोर सजा, जैसे आजीवन प्रतिबंध और जेल, निवारक के रूप में काम कर सकती है।

बीसीसीआई की एंटी-करप्शन यूनिट:

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने 2013 के घोटाले के बाद अपनी एंटी-करप्शन यूनिट को मजबूत किया। यह यूनिट खिलाड़ियों की गतिविधियों पर नजर रखती है और संदिग्ध गतिविधियों की जांच करती है।
खिलाड़ियों को नियमित रूप से भ्रष्टाचार विरोधी प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसमें सट्टेबाजों से संपर्क से बचने की सलाह शामिल होती है।

तकनीकी निगरानी:

सट्टेबाजी पैटर्न की निगरानी के लिए उन्नत तकनीक का उपयोग किया जा सकता है। असामान्य सट्टेबाजी गतिविधियां फिक्सिंग का संकेत दे सकती हैं। खिलाड़ियों के फोन और सोशल मीडिया की निगरानी (नैतिकता और गोपनीयता का ध्यान रखते हुए) संदिग्ध संपर्कों को पकड़ने में मदद कर सकती है।

खिलाड़ियों के लिए वित्तीय सुरक्षा:

कई बार खिलाड़ी कम आय या वित्तीय अस्थिरता के कारण फिक्सिंग की ओर आकर्षित होते हैं। घरेलू और युवा खिलाड़ियों के लिए बेहतर वेतन और अनुबंध सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।

बीसीसीआई और अन्य बोर्ड खिलाड़ियों को वित्तीय सलाह और सहायता प्रदान कर सकते हैं।

प्रशंसकों और मीडिया की भूमिका:

प्रशंसकों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाए जा सकते हैं, ताकि वे संदिग्ध गतिविधियों की सूचना दे सकें।
मीडिया को जिम्मेदारीपूर्वक रिपोर्टिंग करनी चाहिए और बिना सबूत के खिलाड़ियों को बदनाम करने से बचना चाहिए।

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) की एंटी-करप्शन यूनिट के साथ मिलकर काम करना जरूरी है। सट्टेबाजी का नेटवर्क वैश्विक है, इसलिए इसे रोकने के लिए वैश्विक सहयोग आवश्यक है। अन्य देशों के क्रिकेट बोर्डों के साथ सूचना साझा करना और सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना उपयोगी हो सकता है।

कुल मिलाकर मैच फिक्सिंग क्रिकेट के लिए एक गंभीर खतरा है, लेकिन इसे पूरी तरह खत्म करना असंभव नहीं है। भारत में पिछले कुछ दशकों में कई फिक्सिंग मामले सामने आए हैं, जिनमें दर्जनों खिलाड़ियों पर कार्रवाई हुई है। बीसीसीआई और आईसीसी ने इसे रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन अभी और काम करने की जरूरत है। कठोर कानून, तकनीकी निगरानी, खिलाड़ियों की वित्तीय सुरक्षा और जागरूकता अभियान इस समस्या से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। अंततः, क्रिकेट की साख को बचाने के लिए सभी हितधारकों - खिलाड़ियों, प्रशासकों, प्रशंसकों और मीडिया - को मिलकर काम करना होगा। केवल तभी हम इस खेल को उसकी शुद्धता और महिमा के साथ जीवित रख सकते हैं।

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