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नई दिल्ली, वाईबीएन।दिल्ली हाई कोर्ट ने एक नाबालिग लड़की के यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत दे दी और कहा कि लड़की ने विरोधाभासी बयान दिए हैं। जस्टिस रविंद्र डुडेजा ने कहा कि ‘फोरेंसिक’ साक्ष्य भी नाबालिग लड़की के बयान का समर्थन नहीं करते।
अदालत ने कहा, पीडि़ता के बयान विरोधाभासी
यह कथित घटना 2023 में हुई थी और उस समय लड़की 10 वर्ष की थी। अदालत ने कहा, 'इस स्थिति में की गई कोई भी टिप्पणी मुकदमे को प्रभावित कर सकती है, इसलिए यहां आरोपों के गुण-दोष पर कुछ कहना उचित नहीं होगा। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मामले में पीडि़ता के बयान विरोधाभासी है।' अदालत ने कहा कि आरोपी पहले ही जांच में शामिल हो चुका है। अदालत ने 21 मई के आदेश में कहा कि हालांकि लड़की के नमूने ‘फोरेंसिक’ विश्लेषण के लिए भेजे गए थे, लेकिन परिणामों के अनुसार, साक्ष्यों में पुरुष ‘डीएनए’ नहीं पाया गया।
आरोपी के वकील ने कहा, बाद में याचिकाकर्ता पर आरोप लगाया
अग्रिम जमानत की मांग करते हुए, आरोपी व्यक्ति के अधिवक्ता ने कहा कि उसका नाम प्राथमिकी में भी नहीं था और शुरू में लड़की ने अपने पिता के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। अधिवक्ता ने कहा कि हालांकि, बाद में सोच-विचार कर और अपनी मां के उकसावे पर लड़की ने याचिकाकर्ता (आरोपी) के खिलाफ आरोप लगा दिए।
पहले लड़की ने पिता पर आरोप लगाया था
प्राथमिकी के अनुसार, लड़की ने आरोप लगाया है कि सितंबर 2023 में पिता ने घर में उसका यौन शोषण किया और पिता की धमकियों के कारण लड़की ने मां को कुछ नहीं बताया। लड़की के पिता को गिरफ्तार किया गया और फिर जमानत पर रिहा किया गया। बाद में अक्टूबर 2023 में लड़की की मां ने पुलिस को शिकायत देकर दावा किया कि उसकी बेटी ने अब सही तथ्य उजागर कर दिया है कि उसका यौन उत्पीड़न उसके पिता ने नहीं, बल्कि पड़ोस में नाई का काम करने वाले व्यक्ति ने किया।
अदालत ने याचिकाकर्ता को राहत देते हुए कहा कि अगर व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो उसे 30-30 हजार रुपये के निजी मुचलके और जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।