नई दिल्ली, वईबीएन डेस्कः सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सैम हिगिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी एंड साइंस (SHUATS) के निदेशक विनोद बिहारी लाल के खिलाफ उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स एक्ट के तहत दर्ज केस को रद्द कर दिया। जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि जिस तरह से पुलिस और जिला प्रशासन ने गैंग चार्ट को मंजूरी दी, वह रबर-स्टैम्प नौकरशाही की बेबसी और बेवकूफी को दर्शाता है। सुप्रीम कोर्ट ने योगी आदित्नाथ की पुलिस को तीखी फटकार लगाई। CM Yogi Adityanath | Judiciary | Indian Judiciary
कोर्ट बोली- ये तो लोमड़ी के मुर्गीघर की रखवाली करने जैसा
जजों ने माना कि एक्ट के तहत 2021 में बनाए गए नियम 5(3)(ए) की पालना तक नहीं की गई। अथारिटी ने गैंग-चार्ट को बिना यह सत्यापित किए मंजूर कर दिया कि इसे 2021 के नियमों के अनुसार तैयार किया गया था या नहीं। कोर्ट का कहना था कि हमें यह देखकर दुख हो रहा है कि अधिकारी इस तरह के गंभीर मामले में इतनी लापरवाही बरत रहे हैं, यह वास्तव में लोमड़ी के मुर्गीघर की रखवाली करने जैसा मामला है।
नियमों को देखे बगैर यूनिवर्सिटी डायरेक्टर पर लगा दिया गैंगस्टर एक्ट
यह मामला इलाहाबाद के नैनी पुलिस स्टेशन में दर्ज एक एफआईआर से जुड़ा है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि बिहारी लाल और डेविड दत्ता आर्थिक अपराधों में शामिल एक संगठित गिरोह चलाते हैं। एफआईआर दर्ज होने के दिन ही गैंग चार्ट को मंजूरी दे दी गई थी। गैंगस्टर अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू करने के लिए पहले की पांच एफआईआर में चार्जशीट का इस्तेमाल आधार के रूप में किया गया था। बिहारी लाल ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में धारा 482 सीआरपीसी के तहत दो अलग-अलग याचिकाएं दायर कीं।
एक कार्यवाही को रद्द करने के लिए और दूसरी उनके खिलाफ जारी गैर-जमानती वारंट को खारिज करने के लिए। 19 अप्रैल 2023 को हाई कोर्ट ने दोनों याचिकाओं को खारिज कर दिया। यह मानते हुए कि गैंगस्टर अधिनियम के तहत हिंसा या सार्वजनिक व्यवस्था में गड़बड़ी आवश्यक नहीं है और गैंग-चार्ट उचित विवेक का उपयोग दर्शाता है। बिहारी लाल ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
शीर्ष न्यायालय ने पाया कि गैंगस्टर अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू करने के लिए आधार के रूप में इस्तेमाल की गई पांच में से चार एफआईआर को या तो रद्द कर दिया गया है, रोक दिया गया है या अन्य आरोपियों के खिलाफ दायर किया गया है जो गैंगस्टर अधिनियम मामले में शामिल नहीं थे।
एक में घटना की तारीख गायब थी। एक अन्य मामले को सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही रद्द कर दिया था। न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि ऐसा कोई संकेत नहीं है कि सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने या अनुचित लाभ हासिल करने के लिए अपराध किए गए थे। ये दोनों आरोप अधिनियम को लागू करने के तहत आवश्यक हैं।
अफसरों से कहा- वो केवल जांच करें, फैसला हम करेंगे
बेंच ने आरोपपत्र में जांच अधिकारी को लताड़ लगाते हुए कहा कि बिना किसी जांच या दस्तावेज के अपराध साबित कर दिए गए। बेंच ने कहा कि हम याद दिलाना चाहेंगे कि जांच एजेंसियों की भूमिका आरोप की निष्पक्ष जांच करने तक ही सीमित है।
आरोपी का दोषी या निर्दोष होना ट्रायल कोर्ट को तय करना है। कोर्ट ने राज्य के अधिकारियों को गैंगस्टर एक्ट लागू करने के लिए दिसंबर 2024 में उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से जारी 29 प्वाइंट चेकलिस्ट और दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन करने का भी निर्देश दिया।
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