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सुप्रीम कोर्ट ने महिला एडीजे का चाइल्ड केयर लीव नामंजूर करने पर झारखंड हाई कोर्ट से एक हफ्ते में मांगा जवाब

झारखंड में एडिशनल डिस्ट्रिक जज के रूप में कार्यरत एक महिला जज को हाई कोर्ट ने बच्‍चे की देखभाल करने के लिए अवकाश नहीं दिया। इसी मुद्दे को लेकर महिला जज सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से जवाब मांगा है।

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Narendra Aniket
suprim

Photograph: (google)

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रांची/नई दिल्ली, आईएएनएस। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड की एक महिला एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज (एडीजे) कशिका एम. प्रसाद का 'चाइल्ड केयर लीव' (बच्चे की देखभाल के लिए अवकाश) का आवेदन खारिज किए जाने पर झारखंड हाई कोर्ट से एक सप्ताह में जवाब मांगा है।  
यह निर्देश चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने महिला एडीजे की ओर से दायर की गई याचिका पर गुरुवार को सुनवाई करते हुए दिया।

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ईमेल से मांगी जानकारी, अगले सप्‍ताह करेगा निपटारा

अदालत ने इस संबंध में झारखंड हाई कोर्ट को ईमेल के माध्यम से सूचित करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा, 'सभी पक्षों को सूचित किया जाता है कि हम अगली तिथि पर इस मामले का निपटारा करेंगे।'

हाई कोर्ट नीति के अनुसार 730 दिन का अवकाश दिया जा सकता है

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याचिकाकर्ता एडीजे के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि वह एक सिंगल पैरेंट हैं और उनका सेवा रिकॉर्ड उत्कृष्ट रहा है। उनका वार्षिक गोपनीय रिकॉर्ड भी देखा जा सकता है। उन्होंने छह माह की चाइल्ड केयर लीव का अनुरोध किया था। जबकि, हाई कोर्ट की नीति के अनुसार, ऐसे मामले में 730 दिनों तक का अवकाश दिया जा सकता है।

सीधे सुप्रीम कोर्ट आने पर याचिकाकर्ता से पूछा सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता से पूछा कि अवकाश स्वीकृत न होने पर उन्होंने न्यायिक राहत के लिए पहले हाई कोर्ट का रुख क्यों नहीं किया? इस पर अधिवक्ता ने जवाब दिया कि याचिकाकर्ता को मामले में त्वरित राहत की जरूरत थी, लेकिन हाई कोर्ट के नियमों के अनुसार यह 'अर्जेंट' श्रेणी में नहीं आता और यह ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद ही सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होता।

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तबादले के बाद बच्‍चे की देखभाल में हो रही थी कठिनाई

एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज कशिका एम. प्रसाद झारखंड के हजारीबाग जिला अदालत में पदस्थापित थीं। हाल में उनका तबादला किया गया है। ऐसे में बच्चे की देखभाल में उन्हें दिक्कत आ रही थी। इसी वजह से उन्होंने चाइल्ड केयर लीव मांगी थी। 
उनके अधिवक्ता के अनुसार, उन्होंने 10 जून से दिसंबर तक के अवकाश के लिए आवेदन किया था, जिसे नामंजूर कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इसे शीघ्र सुनवाई के लिए मेंशन किया था।

छुट्टी नामंजूर करने का कोई कारण नहीं बताया

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सुप्रीम कोर्ट ने उनका यह आग्रह स्वीकार करते हुए उनसे यह पूछा था कि उनकी छुट्‌टी को नामंजूर क्यों किया गया? इस पर उनके अधिवक्ता ने कोर्ट को सूचित किया कि इसके लिए कोई कारण नहीं बताया गया है।

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