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एक मर्तबा जिलाध्यक्ष की कुर्सी की दौड़ में शिकस्त मिली थी। अब एक सप्ताह पहले जिलाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई तो निष्ठा-समर्पण दिखाना जरूरी है। ताजपोशी के बाद जश्न के दौर में हादसे का शिकार होने के कारण अस्पताल में भर्ती होना मजबूरी थी। इसी दरमियान पार्टी ने सत्ता के शानदार आठ बरस पूर्ण होने के नाते तमाम आयोजन गढ़ दिये।
आलाकमान ने आयोजनों-कार्यक्रमों को कामयाब बनाने का फरमान जारी किया तो कार्यकर्ताओं से संवाद करना और जिम्मेदारी सौंपना जरूरी था। अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति में तकनीकी माध्यम से जूम मीटिंग संभव थी, लेकिन परहेज किया गया। आलाकमान तक निष्ठा-समर्पण-जुनून का संदेश पहुंचाने के लिए अस्पताल की व्यवस्थाओं को रौंदते हुए जनरल वार्ड को पार्टी-दफ्तर जैसा बनाकर कार्यकर्ताओं की चौपाल लगाई गई। सत्ता के जोश में माटी-कीचड़ सने जूतों से संक्रमण फैलाया गया, मरीजों की सेहत को नजरअंदाज किया गया। सत्ताधीशों का मामला था, लिहाजा अस्पताल प्रबंधन भी चुप्पी साधे तमाशा देखता रहा।
वेदांता के जनरल वार्ड में भाजपा दफ्तर
खबर के साथ चस्पा तस्वीर को देखिए। आर्यनगर इलाके के नामचीन वेदांता अस्पताल के जनरल वार्ड में भाजपा उत्तर जिलाध्यक्ष अनिल दीक्षित बतौर मरीज भर्ती हैं। दरअसल, जिलाध्यक्ष निर्वाचित होने के अगले ही दिन घर की सीढ़ियों से फिसलने के कारण कूल्हे की हड्डी टूट गई थी। नतीजे में वेदांता अस्पताल में भर्ती हुए, जहां ऑपरेशन करना पड़ा था। जख्म ठीक होने तक डाक्टर्स ने उन्हें एडमिट कर लिया है। इसी दरमियान योगी सरकार के आठ बरस पूर्ण होने के उपलक्ष्य में भाजपा ने समस्त इकाइयों को सरकार की उपलब्धियों को घर-घर पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपकर योजनाबद्ध तरीके से काम करने का हुक्म सुना दिया। चूंकि अनिल दीक्षित फिलवक्त अस्पताल में भर्ती हैं, लिहाजा उन्होंने तीन दिन पहले नायाब तरीका अख्तियार किया। दीक्षित ने अस्पताल के जनरल वार्ड में चौपाल लगाने का फैसला करते हुए कार्यकर्ताओं को न्योता भेज दिया।
बैनर लगाया, जूतों से बिस्तर रौंदा
जिलाध्यक्ष का न्योता मिलते ही उत्साहित भाजपा कार्यकर्ता बड़ी संख्या में वेदांता अस्पताल पहुंच गए। यूं तो संक्रमण से बचाने के लिए अनिल दीक्षित को अस्पताल की ऊपरी मंजिल में भर्ती किया गया है, लेकिन बैठक करने के लिए वह जैसे-तैसे जतन करते हुए स्ट्रैचर के सहारे जनरल वार्ड में पहुंच गए। यहां कार्यकर्ताओं ने दीक्षित के बेड के पीछे भाजपा का बैनर लगाया और बाकायदा बैठक हुई।
दीक्षित ने सिपहसालारों को आयोजन-कार्यक्रम सफल बनाने के लिए दिशा-निर्देश दिये। बैठक में 14 अप्रैल तक तय कार्यक्रमों को लेकर चर्चा हुई। सभी को जिम्मेदारियां सौंपी गईं। इस दरमियान तमाम पदाधिकारी-कार्यकर्ता जूते पहनकर मरीजों के खाली बिस्तरों पर बैठे रहे। तमाम ने तीमारदारों की कुर्सियों पर कब्जा कर लिया था। स्वयं दीक्षित को संक्रमण से बचने की ताकीद है, लेकिन उन्होंने खुद को जोखिम में डाला और अन्य मरीजों को भी।
तकनीकी से परहेज, अस्पताल भी अनजान
आलाकमान के हुक्म पर बैठक आवश्यक थी तो जूम मीटिंग और गूगल मीट जैसे तमाम तकनीकी विकल्प मौजूद थे। बावजूद, आलाकमान को चेहरा दिखाने की होड़ और खुद की निष्ठा का प्रदर्शन करने के लिए संचार-तकनीकी साधनों से परहेज किया गया। गौरतलब है कि, देश के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री स्वयं तकनीकी साधनों के जरिए लोकार्पण-संबोधन करते हैं, लेकिन इस रीति को भाजपा जिलाध्यक्ष ने नहीं निभाया।
इस संदर्भ में सवाल करने पर अनिल दीक्षित ने कहाकि, अस्पताल अभी नया बना है, लिहाजा जनरल वार्ड में कोई भर्ती नहीं था, इसलिए बैठक करने में कोई आपत्ति नहीं थी। सवाल के जवाब में डॉक्टर गोविंद त्रिवेदी बोले कि, अनिल दीक्षित प्राइवेट रूम में भर्ती हैं, लेकिन जनरल वार्ड में बैठक करने की जानकारी नहीं है। कुल मिलाकर अस्पताल के नियमों को रौंदा गया, लेकिन सत्ताधीशों से मामला जुड़ा होने के कारण अस्पताल प्रबंधन भी मौन है और बैठक वाले दिन हुजूम में पहुंचे भाजपाइयों को रोकने की हिम्मत न अस्पताल के डाक्टरों की हुई न सुरक्षाकर्मियों की।