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KushaKapila Photograph: (IANS)
मुंबई।सोहा अली खान के पॉडकास्ट 'ऑल अबाउट हर' में अभिनेत्री और कंटेंट क्रिएटर कुशा कपिला ने किशोरावस्था के दौरान लड़कियों को होने वाली भावनात्मक और शारीरिक चुनौतियों पर बात की। कुशा कपिला ने महिलाओं के हार्मोनल चक्र और उससे जुड़ी परेशानियों के बारे में भी बात की।
'प्यूबर्टी यानी किशोरावस्था का समय
मालूम हो कि कुशा कपिला ने कहा कि 'प्यूबर्टी यानी किशोरावस्था का समय एक लड़की के लिए बेहद नाजुक होता है। यह वह समय होता है, जब उनका चेहरा, शरीर और पूरी बनावट बदलने लगती है। उन्होंने साझा किया कि जब वह केवल 10 या 11 साल की थीं, तब उनका शरीर बाकी सहेलियों की तुलना में ज्यादा परिपक्व दिखने लगा था। इस कारण वे खुद को लेकर बहुत सतर्क रहने लगी थीं। कोई लड़की अपने दोस्तों से पहले ही विकसित हो जाती है, तो कोई बाद में। इस असमानता की वजह से कई बार लड़कियों को शर्मिंदगी, असहजता या आत्मसंदेह महसूस होता है।
लड़कियों की बढ़ती उम्र
उन्होंने कहा कि समाज में अक्सर लड़कियों की बढ़ती उम्र के साथ उन पर नजर रखने वाली निगाहें बढ़ जाती हैं, जिससे वे ज्यादा सतर्क हो जाती हैं। किशोरावस्था में बच्चों को बहुत ध्यान देना पड़ता है कि वे किसके साथ समय बिता रहे हैं और किनसे बातें कर रहे हैं। यह उम्र बेहद संवेदनशील होती है और थोड़ा भी गलत प्रभाव उन्हें गहराई तक प्रभावित कर सकता है।
चिंता का विषय
कुशा ने बताया कि जब वे छुट्टियों में गोवा गई थीं, तो उन्होंने कुछ लड़कियों से अपनी उम्र छिपाकर खुद को दो साल बड़ा बताया, क्योंकि उनका शरीर पहले ही परिपक्व हो गया था। कुशा ने आगे बताया कि आज भी लड़कियों को अपने शरीर को लेकर बहुत सारी उलझनें होती हैं। मेरा एक पेज है, जहां स्कूल जाने वाली लड़कियां पूछती हैं कि यूनिफॉर्म के साथ क्या पहनना चाहिए। आज भी शिक्षा व्यवस्था और परिवारों में ऐसे विषयों पर खुलकर बात नहीं की जाती। लड़कियां इन जरूरी जानकारियों के लिए इंटरनेट या सोशल मीडिया का सहारा ले रही हैं, जो चिंता का विषय है।
महिलाओं के हार्मोनल चक्र
कुशा कपिला ने महिलाओं के हार्मोनल चक्र और उससे जुड़ी परेशानियों के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा कि एक महिला की जिंदगी में महीनेभर में सिर्फ 4-5 दिन ऐसे होते हैं जब वह खुद को पूरी तरह सामान्य महसूस करती है। बाकी समय वह या तो पीरियड्स के दर्द, मूड स्विंग्स, या फिर पीसीओडी जैसी समस्याओं से जूझ रही होती है। ऐसे में यह जरूरी है कि पुरुष इन बातों को समझें और सहानुभूति रखें, न कि कोई असंवेदनशील टिप्पणी करें। विशेष रूप से कार्यस्थलों पर महिलाओं के मूड या व्यवहार को लेकर सवाल करना बिल्कुल गलत है।
(इनपुट-आईएएनएस)