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BBAU के वैज्ञानिकों की बड़ी कामयाबी, पपीते की फसल को इस खतरनाक रोग से बचाने वाला टीका किया तैयार

स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज की संकायाध्यक्ष प्रो. संगीता सक्सेना, जैव प्रौद्योगिकी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. युसुफ अख्तर और शोध छात्रा प्रियंका की टीम ने CSIR-IHBT. पालमपुर के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर यह सफलता हासिल की है।

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Deepak Yadav
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BBAU के वैज्ञानिकों को मिली बड़ी सफलता

पपीते की फसल को खतरनाक लीफ कर्ल रोग से बचाने वाला टीका तैयार Photograph: (YBN)

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लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता  बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय (BBAU) के वैज्ञानिकों ने पपीते की फसल को खतरनाक लीफ कर्ल रोग से बचाने के लिए राइबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) आधारित टीका तैयार किया है। बेगोमोवायरस से होने वाली यह बीमारी सफेद मक्खियों (व्हाइट फ्लाई) के जरिए फैलती है। यह वायरस पत्तियों को मोड़ देता है। इससे पौधे की ग्रोथ रुक जाती है और फलों को नुकसान पहुंचाता है। जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है। नया टीका पपीते के पौधों को इस गंभीर बीमारी से बचाने में सक्षम है। जोकि किसानों के लिए एक बड़ी राहत साबित होगी। 

CSIR-IHBT के साथ मिलकर किया शोध

स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज की संकायाध्यक्ष प्रो. संगीता सक्सेना, जैव प्रौद्योगिकी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. युसुफ अख्तर और शोध छात्रा प्रियंका की टीम ने सीएसआईआर–हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी संस्थान (IHBT), पालमपुर के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर यह सफलता हासिल की है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने  टीम की उपलब्धि पर गर्व जताते हुए उनके समर्पण और मेहनत की प्रशंसा की।

शोध अंतरराष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित

शोधकर्ताओं ने एक ऐसा तरीका विकसित किया है, जो पौधों के लिए टीके जैसा काम करता है। इस तकनीक में न तो रसायनों का इस्तेमाल होता है और न ही आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों का। इसके बजाय उन्होंने पौधों की पत्तियों पर डबल-स्ट्रैंडेड आरएनए (dsRNA) नामक विशेष आरएनए का छिड़काव किया। यह आरएनए पौधे की प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करता है और वायरस को बढ़ने से रोकता है। यह शोध अंतरराष्ट्रीय पत्रिका फिजियोलॉजिकल एंड मॉलिक्यूलर प्लांट पैथोलॉजी (एल्सेवियर) में प्रकाशित हुआ है। 

भारत विश्व का सबसे बड़ा पपीता उत्पादक

भारत दुनिया में सबसे अधिक पपीता पैदा करता है। लेकिन यह फसल लीफ कर्ल वायरस के प्रति बहुत संवेदनशील है। शोधकर्ताओं ने वायरस के अहम हिस्सों से डीएसआरएनए तैयार किया और इसका छिड़काव पपीता और प्रयोगात्मक पौधों पर किया। परिणाम बहुत ही सकारात्मक रहे। जिन पौधों पर dsRNA का प्रयोग किया गया 15 दिनों तक स्वस्थ रहे और वायरस की मात्रा बिना उपचार वाले पौधों की तुलना में 6 से 7.7 गुना कम पाई गई। 

पहली बार नॉन-जीएम तकनीक का उपयोग

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शोध का नेतृत्व करने वाली प्रो. संगीता सक्सेना ने बताया कि टीम ने वायरस के ऐसे हिस्सों का चयन किया जो जल्दी नहीं बदलते। जिससे यह तरीका कई तरह के बेगोमोवायरस पर असरदार साबित हुआ। बायोइंफॉर्मेटिक्स विश्लेषण और डेटा जांच में योगदान देने वाले डॉ. युसुफ अख्तर ने बताया कि पहली बार पपीता की खेती को रोग से बचाने के लिए नॉन-जेनेटिकली मॉडिफाइड तरीके का इस्तेमाल किया गया है। यह तकनीक पर्यावरण के लिए सुरक्षित है। प्राकृतिक रूप से नष्ट हो जाती है। 

किसानों के लिए किफायती और आसान

डॉ  अख्तर के अनुसार, सिर्फ 20 माइक्रोग्राम प्रति पौधे की अल्प मात्रा में काम करती है। जिससे यह किसानों के लिए किफायती और आसान हो जाती है। यह तरीका आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों से अलग है। जिन्हें मंजूरी में सालों लगते हैं और जनमत का भी सामना करना पड़ता है। यह तकनीक तुरंत इस्तेमाल के लिए तैयार है। इससे पौधे के डीएनए नहीं बदलता। यह रासायनिक कीटनाशकों का एक अच्छा विकल्प भी है। जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकते हैं। 

अन्य फसलों को वायरस से बचाने में मिलेगी मदद

वैज्ञानिकों का मानना है कि इस डीएसआरएनए स्प्रे को किसानों के लिए एक रेडी-टू-यूज़ फार्म में उपलब्ध कराया जा सकता है। शोधकर्ता अब प्रयोगशाला के बाहर इस तकनीक को खेतों में आजमाने की योजना बना रहे हैं। वे ऐसे नए तरीकों पर भी काम कर रहे हैं, जैसे नैनो-कैरियर तकनीक, जिससे डीएसआरएनए पौधों पर अधिक समय तक टिके और वास्तविक खेती की परिस्थितियों में बेहतर काम करे। यदि यह प्रयास सफल रहा तो यह न केवल पपीता बल्कि अन्य फसलों को भी वायरस जनित बीमारियों से बचा सकता है। जिससे किसानों को फसल क्षति कम करने और खाद्य सुरक्षा बढ़ाने में मदद मिलेगी। 

प्रियंका ने इन-विट्रो प्रयोगों में प्रमुख भूमिका निभाई

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प्रो. संगीता की पीएचडी छात्रा प्रियंका ने इस अध्ययन में सभी इन-विट्रो प्रयोगों को स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभाई। इस अवसर पर जैव प्रौद्योगिकी विभाग के  विभागाध्यक्ष प्रो. डीआर मोदी, अन्य शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों ने टीम को इस उपलब्धि के लिए बधाई दी और मानवता के हित में ऐसे शोध कार्यों को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया।

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