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बिजली निजीकरण मामले में CAG की एंट्री, पावर कारपोरेशन से तलब की फाइल, अधिकारियों में मची खलबली

भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने पावर कारपोरेशन से निजीकरण के मसौदे की रिपोर्ट तलब करते उसे तत्काल प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।

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Deepak Yadav
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CAG ने पावर कारपोरेशन से तलब की बिजली कंपनियों के निजीकरण की फाइल Photograph: (YBN)

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लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। प्रदेश में पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के मामले में पावर कारपोरेशन की मुश्किलें बढ़ गई हैं। भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने यूपीपीसीएल से निजीकरण मसौदे ​फाइल और कागजात तलब करते उसे तत्काल प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। इससे  पावर कारपोरेशन के अधिकारियों में हड़कंप मच गया। दरअसल, राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद लगातार निजीकरण के मसौदे को आसंवैधानिक बताते हुए इसमें भ्रष्टाचार किए जाने का मामला उठा रहा है। उसने इस साल जून में मामले को प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को भेजते हुए सीबीआई, सीएजी व उच्च स्तरीय जांच कमेटी से कराने की मांग उठाई थी। अब सीएजी ने पूरे मामले की छानबीन शुरू कर दी है।

विवादित कंपनी की सलाह पर बना निजीकरण का प्रस्ताव

उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि बिजली कंपनियों के निजीकरण के रखी गई  सलाहकार कंपनी ग्रांट थॉनर्टन पर अमेरिका में 40 हजार डॉलर का जुर्माना लग चुका है। इसका खुलासा होने के बाद भी इस विवादित कंपनी की सलाह पर निजीकरण का प्रस्ताव तैयार किया गया। वहीं, विद्युत नियामक आयोग ने निजीकरण के मसौदे में वित्तीय कमियां निकालते हुए उसे सरकार को वापस कर दिया है। 

आरडीएसएस फंड के दुरुपयोग पर एजेंसियां सतर्क

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अवधेश वर्मा ने कहा कि केंद्र सरकार की आरडीएसएस योजना से मिले सरकारी धन के दुरुपयोग होने से केंद्रीय एजेंसियां सतर्क हैं। उन्होंने बताया कि केन्द्र सरकार ने देश भर के लिए करीब 303758 करोड़ रुपये की योजना शुरू की थी। इसमें उत्तर प्रदेश के लिए 44094 करोड़ रुपये मंजूर किए गए थे। इस योजना के तहत दक्षिणांचल डिस्कॉम को करीब 7434 करोड़ और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम को 9481 करोड़ दिए जाने हैं। 

पावर कारपोरेशन प्रबंधन में खलबली

इसके अलावा आरडीएसएस योजना के तहत स्मार्ट प्रीपेड मीटर के लिए केंद्र सरकार ने 18,885 करोड़ मंजूर किए थे, लेकिन बिजली कंपनियों ने 27,343 करोड़ का टेंडर जारी किया। ऐसे में 9000 करोड़ की भरपाई कौन करेगा। इसका कुछ अता-पता नहीं हैं। इस योजना के लिए प्रदेश की बिजली कंपनियों की हालत सुधारी जा रही है। उसके लिए अलग-अलग स्तर पर मॉनिटरिंग कमेटी बनाई गई हैं। ऐसे में इनका निजीकरण करना सरकारी धन का दुरुपयोग है। इस मामले को कैग के संज्ञान लेने से पावर कारपोरेशन प्रबंधन में खलबली मच गई है।

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