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Electricity Privatisation : बिजली कंपनियों को भुगतान के लिए 2400 करोड़ का कर्ज, फिर निजीकरण क्यों?

Electricity Privatisation : उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने बताया कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल डिस्कॉम में 1.7 करोड़ उपभोक्ता हैं। पावर कारपोरेशन इन बड़ी बिजली कंपनियों के निजीकरण में लगा है।

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Deepak Yadav
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बिजली कंपनियों को भुगतान के लिए 2400 करोड़ का कर्ज, फिर निजीकरण क्यों Photograph: (YBN)

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लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने एक बार फिर बिजली के निजीकरण में भ्रष्टाचार का गंभीर आरोप लगाया है। परिषद ने बताया कि पावर कारपोरेशन जहां प्रदेश में बढ़ती बिजली मांग को पूरा करने के लिए कंपनियों को भुगतान के लिए सात साल में पीएफसी और बैंक से हजारों करोड़ रुपये का कर्ज लेने जा रहा है। वहीं, पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम को निजी हाथों में देने पर भी आमादा है। 

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उपभोक्ताओं के हित में नहीं निजीकरण

उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने बताया कि प्रदेश में पांच बिजली कंपनियों के लगभग 3 करोड़ 45 लाख उपभोक्ता हैं। इनमें  पूर्वांचल और दक्षिणांचल डिस्कॉम में 1 करोड़ 70 लाख उपभोक्ता शामिल हैं। पावर कारपोरेशन इतनी बड़ी संख्या वाली बिजली कंपनियों के निजीरकण में लगा है। जोकि उपभोक्ताओं के हित में नहीं है। उन्होंने कहा कि पावर कारपोरेशन के निदेशक मंडल ने बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन (PFC) से सात साल के लिए 2 हजार करोड़ रुपये और इंडियन ओवरसीज बैंक लिमिटेड से 400 करोड़ रुपये कर्ज लेने का फैसला किया है। एक तरफ बिजली कंपनियां अगले सात साल के लिए कर्ज का इंतजाम कर रही हैं। वहीं दूसरी तरफ 42 जनपदों वाली बिजली कंपनियों का निजीकरण किया जा रहा है। 

निजीकरण का प्रस्ताव शुरू से विवादों में

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वर्मा ने कहा कि पावर कारपोरेशन का निजीकरण प्रस्ताव शुरू से ही विवादों में रहा है। पहली सलाहकार कंपनी को हटाकर दूसरी कंपनी को कंसलटेंट बनाया गया। जिसने झूठे शपथ पत्र देकर टेंडर हासिल किया। जब यह मामला सामने आया तो उसकी फाइल दबा दी गई और बाद में उसे क्लीन चिट दे दी गई। उन्होंने बताया कि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 17 के तहत जिस भी बिजली कंपनी को धारा 14 के तहत लाइसेंस मिला है, उन्हें अपना कोई भी शेयर स्थानांतरित करने, कंपनी बेचने या अन्य किसी मामले में विद्युत नियामक आयोग की पूर्व अनुमति लेना जरूरी है। लेकिन ऐसा भी नहीं किया गया। कुल मिलाकर विद्युत अधिनियम 2003 के प्रावधानों को तोड़-मरोड़कर बिजली कंपनियां नियमों के साथ खेल रही हैं। सबसे चिंता की बात यह है कि ऊर्जा विभाग और सरकार इस पूरे मामले पर चुपचाप तमाशा देख रही हैं।

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