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दिव्यांग पुत्र को विवाहित होने मात्र से पारिवारिक पेंशन से वंचित नहीं कर सकते Photograph: (google)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि दिवंगत कर्मचारी का शत-प्रतिशत दिव्यांग पुत्र केवल विवाहित होने के कारण पारिवारिक पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने पुनर्विचार कर निर्णय के लिए प्रकरण वापस भेज दिया है। मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने झांसी के इफ्तिखार की याचिका स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया है।
दिव्यांग पुत्र को राहत
कोर्ट ने केंद्रीय सिविल सेवा (सीसीएस) (पेंशन) नियम, 1972 के नियम 54 के उप-नियम (6) के स्पष्टीकरण 1 का हवाला देते हुए कहा कि उद्धृत संशोधित स्पष्टीकरण यह स्पष्ट करता है कि दिव्यांग पुत्र को छोड़ कर विवाहित पुत्र पारिवारिक पेंशन के लिए अपात्र हो जाएगा। ऐसे में याची जो मृतक कर्मचारी का शत प्रतिशत दिव्यांग पुत्र है, उसका विवाहित होना पारिवारिक पेंशन के लिए उसके अधिकार को अस्वीकार करने का आधार नहीं हो सकता।
कैट के आदेश के खिलाफ याचिका
उच्च न्यायालय में यह याचिका उस आदेश के विरुद्ध दायर की गई थी, जिसके अंर्तगत केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण इलाहाबाद (कैट) ने याची का आवेदन खारिज कर दिया था। खंडपीठ की राय में न्यायाधिकरण और विभाग ने याची के दावे पर निर्णय लेते समय कानूनी स्थिति पर नहीं विचार किया। न्यायाधिकरण का निर्णय केवल 15 जनवरी 2010 के परिपत्र पर आधारित है और किसी अन्य आधार पर नहीं।
याची शत-प्रतिशत दिव्यांग नेत्रहीन
याची के पिता वर्ष 2002 में सेवानिवृत्त हुए थे। वह पेंशन लाभ प्राप्त कर रहे थे। वर्ष 2015 में उनकी मृत्यु हो गई। याची शत-प्रतिशत दिव्यांग (नेत्रहीन) है और उनके पास मुख्य चिकित्सा अधिकारी का प्रमाण पत्र भी है। उसने पारिवारिक पेंशन के लिए आवेदन किया। संबंधित विभाग ने पेंशन संबंधी उसका आवेदन 15 जनवरी, 2010 के उस परिपत्र का हवाला देते हुए अस्वीकार कर दिया। जिसमें कहा गया है विवाहित पुत्र दिव्यांग होने पर भी पारिवारिक पेंशन प्राप्त करने का हकदार नहीं है। इस आदेश को ट्रिब्यूनल (कैट) के समक्ष इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि रेलवे बोर्ड के 24 फरवरी, 2016 के पत्र के अनुसार याची पारिवारिक पेंशन का हकदार है, लेकिन विभाग ने वर्ष 2010 में जारी परिपत्र पर भरोसा कर गलती की थी। ट्रिब्यूनल ने भी यह निष्कर्ष दर्ज करते हुए आवेदन खारिज कर दिया कि जनवरी 2010 वाला परिपत्र, जिसमें यह प्रविधान है कि विवाहित पुत्र और पुत्रियांं, चाहे वे किसी भी विकार/विकलांगता से पीड़ित हों, पारिवारिक पेंशन के लिए पात्र नहीं हैं, लागू रहेगा।
Allahabad High Court | Allahabad High Court hearing
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