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बिजली कंपनियों की परिसंपत्तियों पर उद्योगपतियों की नजर, उपभोक्ता परिषद ने कहा- निजीकरण की आड़ में लूट की तैयारी

Electricity Privatisation: विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेष वर्मा ने कहा कि कोई भी औद्योगिक समूह प्रदेश की बिजली कंपनियों को अकेले नहीं खरीद सकता। ऐसे में परसंपत्तियों की कीमत कम करवाने में पूरी लॉबी जुटी है।

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Deepak Yadav
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औद्योगिक समूहों की बिजली कंपनियों की परिसंपत्तियों पर नजर Photograph: (google)

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। देश में शीर्ष पांच परिसंपत्तियों वाली बिजली कंपनियों की सूची में यूपी दूसरे नंबर पर है। पावर फाइनेंस कारपोरेशन की इस साल मई में जारी बिजली कंपनियों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट के अनुसार, बीते साल 31 मार्च तक देश में सबसे ज्यादा परसंपत्तियों वाली बिजली कंपनियों में महाराष्ट्र पहले नबर पर है। उसकी कुल परसंपत्तियां 1 लाख 87450 करोड़ रुपये है। इसके बाद यूपी का स्थान आता है। प्रदेश की बिजली कंपनियों की परसंपत्तियां 1 लाख 77535 करोड़ रुपये हैं। इसमें दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम की 36762 करोड़ और पूर्वांचल डिस्कॉम की परसंपत्तियां 54164 करोड़ रुपये है। अकेले पूर्वांचल डिस्कॉम के पास देश में किसी भी बिजली कंपनी के मुकाबले सबसे ज्याद परसंपत्तियां है।

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परिसंपत्तियों की कीमत कम करने की साजिश

राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेष वर्मा ने कहा कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम को तोड़कर पांच नई कंपनियां बनाई जायेंगी। एक कंपनी में आठ जनपदों की परसंपत्तियां शामिल होंगी। कोई भी औद्योगिक समूहों प्रदेश की बिजली कंपनियों को अकेले नहीं खरीद सकता। ऐसे में परसंपत्तियों की कीमत कम करवाने में पूरी लॉबी जुटी है। इसलिए औद्योगिक समूह दोनों डिस्काम के 42 जनपदों के निजीकरण को लेकर इतनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। उनकी नजर इन्हीं परिसंपत्तियों पर है। उन्होंने कहा कि देश की राज्य सेक्टर में जहां कुल परसंपत्तियां लगभग 13 लाख 60912 करोड़ हैं। वहीं प्राइवेट सेक्टर में केवल 87 हजार 58 करोड़ हैं। परिषद अध्यक्ष ने कहा कि यूपी में बिजली कंपनियों की परिसंपत्तियों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इस पर तत्काल राज्य सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए।

राज्य सेक्टर        परिसंपत्तिया (एसेट)

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महाराष्ट्र                             1 लाख 87450 करोड़
उत्तर प्रदेश                        1 लाख 77535 करोड़
तमिलनाडु                         1 लाख 59283 करोड़
राजस्थान                          1 लाख 02053 करोड़
आंध्र प्रदेश                         96 हजार 598 करोड़

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