लखनऊ वाईबीएन संवाददाता। पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के निजीकरण की प्रक्रिया में हर दिन नया पेंच फंस रहा है। उपभोक्ता परिषद ने गुरुवार को दावा किया कि बिडिंग डॉक्यूमेंट के मसौदे में विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 17 का जिक्र ही नहीं है। अगर इसी ड्राफ्ट के आधार पर बिजली कंपनियों का निजीकरण किया गया, तो यह एक बड़ी कानूनी गलती होगी। दरअसल, धारा 131 का इस्तेमाल केवल एक बार के लिए किया जा सकता है। लेकिन अब उसी का दोबारा उपयोग करने की तैयारी हो रही है।
धारा 131 के तहत हुआ बिजली कंपनियों का गठन
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि प्रदेश सरकार ने धारा 131 के तहत पावर कारपोरेशन सहित अन्य बिजली कंपनियों का गठन किया था। उसके बाद अब सभी बिजली कंपनियों को विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 14 के तहत नियामक आयोग से लाइसेंस दिया जा चुका है। ऐसे में पावर कारपोरेशन बिडिंग डॉक्यूमेंट के आधार पर अलग-अलग पांच कंपनियों के लिए आयोग में दाखिल करने का आरएफपी बना रहा है। उसने इस पर पुनः उस पर विचार करना चाहिए।
धाराओं के सही मूल्यांकन करे यूपीपीसीएल
वर्मा ने कहा कि पावर कारपोरेशन निजीकरण का मसौदा तैयार करने वाली सलाहकार कंपनी ग्रांट थार्नटन झूठा शपथ पत्र देने के मामले में दोषी है। उसकी रिपोर्ट पर निजीकरण की प्रकिया आगे बढ़ाना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि पावर कॉरपोरेशन पहले विद्युत अधिनियम 2003 की धाराओं का सही मूल्यांकल करे कि कौन सी धारा कब काम आएगी। उन्होंने कहा कि पिछले छह माह से निजीकरण को लेकर एनर्जी टास्क फोर्स और पावर कारपोरेशन के ज्यादातर फैसले विवादों में हैं। निजी घरानों के दबाव में पावर कारपोरेशन को कुछ सूझ नहीं रहा है।
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