लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। बिजली आपूर्ति बाधित करने पर बिना जांच कार्मिकों को बर्खास्त करने के फैसले का उपभोक्ता परिषद ने कड़ा विरोध किया है। परिषद ने कहा कि पावर कारपोरेशन का सेवा नियामवली में संशोधन कर लागू किया गया विशेष नियम आसंवैधानिक है। यह सुप्रीम कोट के पूर्व में दिए गए फैसलों का उल्लंघन है। संविधान में अपील करने वाले को अपना पक्ष रखने का अधिकार दिया गया है। बिना अवसर दिए उसे पद से बर्खास्त नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद 311(2) की अनदेखी पर नाराजगी
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा Avadhesh Kumar Verma ने कहा कि पावर कारपोरेशन (Power Corporation) प्रबंधन ने सेवा नियमावली में संशोधन कर बिजली व्यवस्था में बाधा डालने और या प्रयास करने पर दंड के संबंध में विशेष नियम बनाया है। इसमें संविधान के अनुच्छेद 311 का जिक्र तो किया गया है, लेकिन उसके उपखंड अनुच्छेद 311 (2) को नजरअंदाज कर दिया गया है। यह भी निदेशक मंडल से पारित व्यवस्था है।
बिना सुनवाई बर्खास्तगी गलत
वर्मा कहा कि विद्युत आपूर्ति बाधित करने का अधिकार किसी को नहीं है। लेकिन पावर कारपोरेशन को संविधान में दी गई व्यवस्था का उल्लंघन करने का भी हक नहीं है। वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट के बृजनंदन कंसल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले का हवाला देते हुए कहा कि अनुच्छेद 311 (2) के अनुसार किसी भी कर्मचारी को बर्खास्त करने से पहले उसे अपना पक्ष रखने का पूरा अवसर दिया जाना चाहिए। ऐसा नहीं करने पर उसे नौकरी से निलाका नहीं जा सकता।
बिजली चोरी पर 65% छूट का आरोप
अवधेश वर्मा ने कहा यह कोई पहला मामला नहीं है। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि पावर कारपोरेशन के निदेशक मंडल ने बिजली चोरी के असेसमेंट मामले में लोकसभा से पास विद्युत अधिनियम 2003 का उल्लंघन करते हुए बिजली चोरी में राजस्व निर्धारण में 65 प्रतिशत तक की छूट दे दी थी। बैंड चार में नौकरी में पहुंचने में कम से कम 30 से 32 साल लग जाता है। लेकिन पावर कारपोरेशन के इसी निदेशक मंडल ने लिटरल एंट्री के माध्यम से केवल इंटरव्यू के आधार पर सीधे अकाउंट विंग में सीजेएम की पोस्टिंग कर दी। इसमें अभी भी लोग लाइन में लगे हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसलों की अनदेखी
परिषद अध्यक्ष ने कहा कि पावर कारपोरेशन लगातार बिजली कंपनियों में हस्तक्षेप कर मनमाने आदेश जारी कर रहा है। जबकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कई मामलों में फैसला सुनाया है कि पावर कारपोरेशन की कोई कानूनी वैधता नहीं है। वह बिजली कंपनियों के मामलों में वह बिजली कंपनियां के मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। चाहे मां विंध्यवासिनी का केस हो या फिर तिरुपति सिलेंडर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य से संबंधित मामला। दोनों में उच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी थी कि विद्युत नियामक आयोग ने प्रदेश की बिजली कंपनियों को लाइसेंस दिया है। वह स्वतंत्र रूप से काम कर रही हैं।
निजीकरण मसौदा तत्काल रद्द हो
वर्मा ने कहा कि न्यायालय के आदेश के बावजूद पावर कारपोरेशन ने दक्षिणांचल और पूर्वांचल बिजली कंपनियों के निजीकरण का मसौदा पास कर दिया। निजीकरण का फैसला पूरी तरह असंवैधानिक है। इसे तत्काल निरस्त किया जाए। उन्होंने मुख्यमंत्री से मांग की है कि
पावर कारपोरेशन के निदेशक मंडल के पिछले दो वर्षों के सभी फैसलों की उच्च स्तरीय समीक्षा होना चाहिए। इसमें जो भी सदस्य दोषी हो, उन्हें सीधे बर्खास्त किया जाए।
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