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लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। उत्तर प्रदेश की राजनीति में शिष्टाचार भी अब रणनीति बन गया है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जन्मदिन की दी गई बधाई ने यह एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि राजनीति में हर शब्द, हर क्षण और हर शैली सन्देश होती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि लोकतांत्रिक मर्यादा के तहत राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को शुभकामनाएं देना एक सकारात्मक संकेत होता है। मगर अखिलेश यादव की यह बधाई देर रात दी गई और उसमें प्रयुक्त “मुबारकबाद” शब्द ने नई बहस छेड़ दी।
‘शुभकामना’ दी जाती है, ‘मुबारकबाद’ नहीं।
अखिलेश यादव का "मुबारकबाद" कहना एक साधारण सांस्कृतिक विविधता का प्रदर्शन हो सकता था, मगर उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह शब्द तुष्टिकरण या सांप्रदायिक झुकाव का संकेत बन गया। सोशल मीडिया पर हजारों यूजर्स ने लिखा कि सनातन परंपरा में ‘शुभकामना’ दी जाती है, ‘मुबारकबाद’ नहीं। यह प्रतिक्रिया बताती है कि आज की राजनीति में भाषा का चयन केवल साहित्यिक निर्णय नहीं, राजनीतिक गणना है। खासकर तब, जब आपके मतदाता जातीय और धार्मिक समीकरणों में बंटे हुए हों।
बधाई सुबह न देकर देर रात में देना
और बात सिर्फ भाषा की नहीं, टाइमिंग की भी है। बधाई सुबह न देकर देर रात देना, यह संकेत देता है कि नेता राजनीतिक संतुलन साध रहे हैं। क्या अखिलेश यादव अपने धर्मनिरपेक्ष तेवर को दिखाने के साथ-साथ हिंदू मतदाताओं की प्रतिक्रिया से बचना चाहते थे? यह सवाल यूं ही नहीं उठे। राजनीति में अब बधाई देने का समय भी वैचारिक स्पष्टता का संकेत माना जाता है। जब एक बड़े नेता द्वारा इस प्रकार की सावधानी बरती जाती है, तो यह सच्चाई उजागर होती है कि राजनीतिक संवाद भी अब खुलकर नहीं, 'संकेतों' में होता है।
मा. आदित्यनाथ जी को जन्मदिन की सौहार्दपूर्ण मुबारकबाद!
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) June 5, 2025
योगी की चुप्पी: रणनीति या तटस्थता?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस बधाई पर कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी। यह चुप्पी भी कम अर्थपूर्ण नहीं है। कई बार न बोलना, बोलने से बड़ा संदेश होता है। यह न तो विरोध था, न स्वीकृति। बस एक राजनीतिक संतुलन, जिसमें जवाब देने से लाभ नहीं, बल्कि मुद्दा बढ़ने का जोखिम था।
बधाई देना भी अब ‘हृदय से नहीं, हिसाब से’
अखिलेश यादव की यह बधाई दरअसल एक सधा हुआ राजनीतिक संवाद था, जिसमें भाषा से लेकर समय तक, हर तत्व को सोच-समझकर तय किया गया था। उत्तर प्रदेश जैसे संवेदनशील राजनीतिक भूगोल में, अब कोई भी सार्वजनिक वक्तव्य मात्र ‘वक्तव्य’ नहीं रह गया है। यह घटना बताती है कि हमारी राजनीति में अब केवल नीतियों की नहीं, प्रतीकों की भी तीखी प्रतिस्पर्धा चल रही है और बधाई देना भी अब ‘हृदय से नहीं, हिसाब से’ किया जाता है।
जाने क्या बोले सोशल मीडिया यूजर्स
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