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माइक्रोवेव एब्लेशन तकनीक से सर्जरी करने वाली डॉक्टरों की टीम Photograph: (YBN)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान (DrRMLIMS) ने चिकित्सा क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल की है। एंडोक्राइन सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने पहली बार माइक्रोवेव एब्लेशन से एक महिला मरीज थायरॉइड ग्रंथि की गंभीर बीमारी का सफल ऑपरेशन किया है। इस बीमारी में थायरॉइड ग्रंथि के साफ्ट टिशू आसामान्य रुप से बढ़ने के साथ गांठ में बदल जाते हैं। इससे थायरॉइड हार्मोन भी प्रभावित होते हैं। प्रदेश पहली बार में माइक्रोवेव एब्लेशन तकनीक से सर्जरी की गई। सर्जरी के बाद मरीज की तेजी से रिकवरी हो रही है।
लोहिया में पहली बार माइक्रोवेव एब्लेशन से सर्जरी
एंडोक्राइन सर्जरी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सारा इदरीस ने 'यंग भारत न्यूज' से बातचीत बताया कि गोरखपुर निवासी 32 वर्षीय महिला को लंबे समय से खाना निगलने में परेशानी के साथ गले में दर्द रहता था। समय से साथ दिक्क्त और और बढ़ गई। महिला ने करीब सात दिन पहले संस्थान के एंडोक्राइन विभाग की ओपीडी में डॉक्टर से दिखाया। यहां उनका इलाज शुरू करने साथ सभी जरूरी जांचें कराई गईं। जांच रिपोर्ट में थायरॉइड ग्रंथि में गांठ (थायरॉइड नोड्यूल) की पुष्टि हुई। रोग की जटिलता को देखते हुए 29 जुलाई को मरीज का ऑपरेशन अत्याधुनिक तकनीक माइक्रोवेव एब्लेशन से किया गया। इसमें एक छोटा छेद करके इलेक्ट्रोमैग्नेटिक किरणों से गांठ को जला दिया जाता है। उन्होंने बताया इस आधुनिक तकनीक से ब्रेस्ट की गांठ की भी सर्जरी की जाती है।
थायरॉइड हार्मोन भी हो सकते हैं प्रभावित
डॉ. सारा इदरीस ने बताया कि थायरॉइड ग्रंथि में बनने वाली गांठें हार्मोन को भी प्रभावित कर सकती हैं, जिससे मरीज को कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। ऐसे में समय से इसका इलाज बेहद जरूरी है। उन्होंने बताया कि इस आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल फिलहाल केवल डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में ही शुरू किया गया है। हालांकि केजीएमयू और एसजीपीजीआई में मशीनें हैं, लेकिन वहां सर्जरी की शुरुआत अभी तक नहीं हुई है।
माइक्रोवेव एब्लेशन के फायदे
- पारंपरिक सर्जरी के मुकाबले माइक्रोवेव एब्लेशन में सुई से केवल एक छोटा सा छेद करना पड़ता है। कोई टांका नहीं लगता, जिससे निशान कम पड़ते हैं। रिकवरी का समय काफी कम हो जाता है।
- सर्जन माइक्रोवेव ऊर्जा को प्रभावित क्षेत्र, गांठ तक सटीक रूप से पहुंचा सकता है। जिससे आसपास के ऊतकों को कम से कम नुकसान पहुंचता है।
- ज़्यादातर मामलों में यह प्रक्रिया डेकेयर के आधार पर की जा सकती है, जिससे मरीज़ जल्दी घर लौट सकते हैं।
- मरीज़ों को आमतौर पर प्रक्रिया के बाद बहुत कम असुविधा होती है और वे थोड़े समय में अपनी दैनिक गतिविधियां फिर से शुरू कर सकते हैं।
- इस तकनीक से सर्जरी के बाद तीन महीने के भीतर ग्रंथि ग्रंथि में अच्छा सुधार देखने को मिलता है।
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