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डॉ. प्रगति कुशवाहा Photograph: (Google)
- लखनऊ विश्वविद्यालय के रसायन शास्त्र विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रगति कुशवाहा ने किया शोध
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। लखनऊ विश्वविद्यालय के रसायन शास्त्र विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रगति कुशवाहा ने इमिडाजोल नामक यौगिकों के औषधीय गुणों पर शोध किया है। उन्होंने शोध में पाया कि इमिडाजोल यौगिक भविष्य में नई और असरदार दवाएं बनाने में मददगार हो सकते हैं। उनका यह शोध अंतरराष्ट्रीय जर्नल केमिस्ट्री सेलेक्ट के अक्टूबर अंक में प्रकाशित हुआ है।
कैंसर, फंगल संक्रमण से लड़ने की अद्भुत क्षमता
इमिडाजोल यौगिकों में कैंसर, बैक्टीरिया, फंगल संक्रमण और सूजन से लड़ने की अद्भुत क्षमता पाई गई है। इस परिणाम से उत्साहित डॉ. प्रगति अब कैंसर, अल्जाइमर, टीबी और तंत्रिका रोगों जैसी जटिल बीमारियों के इलाज के लिए नई पीढ़ी की दवाओं पर शोध में लगी हैं। डॉ. प्रगति का कहना है कि इमिडाजोल आधारित यौगिक प्राकृतिक (ग्रीन केमिस्ट्री) और कृत्रिम रसायनों के बीच पुल की तरह है। ये विज्ञान को प्रकृति से जोड़ते हुए सुरक्षित और प्रभावी दवाओं का भविष्य तय करेंगे।
कई दवाओं में इस्तेमाल होता है इमिडाजोल
इमिडाजोल कई दवाओं में इस्तेमाल होता है। सर्जरी से पहले नींद लाने के लिए, दवा की ओवरडोज में राहत देने के लिए, खून में प्लेटलेट्स नियंत्रित करने के लिए, एलर्जी से राहत के लिए, चिंता और बेचैनी दूर करने के लिए बनने वाली दवाओं में इसी का इस्तेमाल होता है।
जानें क्या है इमिडाजोल
इमिडाजोल एक छोटी-सी रासायनिक रिंग है। जिसमें दो नाइट्रोजन परमाणु होते हैं। इसकी खास संरचना इसे शरीर में मौजूद प्रोटीन, एंजाइम और धातु आयनों से जुड़ने में मदद करती है। यही कारण है कि यह शरीर की कई महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं में योगदान करता है, जैसे एंजाइम की क्रिया, रोग प्रतिरोधक क्षमता और तंत्रिका संदेशों के संचार में। इसके प्रभावशाली गुण इसे दवा निर्माण में बेहद महत्वपूर्ण बनाते हैं।
समुद्री जीवों में पाया गया इमिडाजोल
डॉ. प्रगति ने बताया कि इमिडाजोल केवल प्रयोगशाला में बने यौगिकों में ही नहीं, बल्कि समुद्री जीवों जैसे स्पंज, कोरल और ट्यूनिकेट्स आदि में भी पाया जाता है। उनके विभिन्न प्रयोगों में एजेलाडिन ए, फेकलिन्स, ग्रोसुलरीन और क्रिब्रोस्टैटिन-6 नामक समुद्री यौगिकों ने प्रयोगों में कैंसर और संक्रमण दोनों के खिलाफ असरदार परिणाम दिखाए हैं। इन यौगिकों को अब प्रयोगशाला में तैयार किया जा रहा है, ताकि इनके औषधीय गुणों को और बेहतर तरीके से समझा जा सके।
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