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आक्रोश : 27 लाख बिजली कर्मी आज देश भर में करेंगे विरोध प्रदर्शन

संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दूबे ने बताया कि लगभग 27 लाख बिजली कर्मचारी, जिनमें कर्मचारी और अभियंता शामिल हैं, अपने भोजन अवकाश के दौरान प्रदर्शन करेंगे। वे निजीकरण का प्रस्ताव खारिज करेंगे।

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Anupam Singh
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लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता।  आज पूरे भारत में पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के खिलाफ बिजली कर्मी विरोध प्रदर्शन होंगे।

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संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दूबे ने बताया कि लगभग 27 लाख बिजली कर्मचारी, जिनमें कर्मचारी और अभियंता शामिल हैं, अपने भोजन अवकाश के दौरान प्रदर्शन करेंगे। वे निजीकरण का प्रस्ताव खारिज करेंगे और प्रबंधन के साथ पूर्ण असहयोग की घोषणा करेंगे। यह आंदोलन बिजली क्षेत्र में बदलाव के खिलाफ एक मजबूत कदम है।

इस दौरान वे प्रबंधन के जन विरोधी और कर्मचारी विरोधी आदेशों का पालन नहीं करेंगे। प्रबंधन की किसी बैठक और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में शामिल नहीं होंगे। हालांकि आंदोलन के दौरान उपभोक्तओं को किसी भी तरह की दिक्कत नहीं होने दी जाएगी। उपभोक्ताओं की सभी समस्याओं को निपटाया जाएगा। 

अभियंताओं के नाम डीएम को सौंपने के निर्देश

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बिजली कर्मचारियों ने कार्य बहिष्कार का फैसला वापस ले लिया है। इसके बजाय, वे पावर कॉरपोरेशन के साथ असहयोग आंदोलन चलाने का निर्णय किए हैं। इस बदलाव के बाद, सभी जिलों में वैकल्पिक इंतजाम कर लिए गए हैं ताकि बिजली आपूर्ति में कोई रुकावट न हो। पावर कॉरपोरेशन ने सभी जिलों को सतर्क रहने का निर्देश दिया है। यदि कहीं भी बिजली आपूर्ति बाधित करने का प्रयास होता है, तो तुरंत वैकल्पिक व्यवस्था अपनाई जाए। उपभोक्ताओं को किसी भी तरह की परेशानी न हो, यह सुनिश्चित किया गया है। इसके साथ ही, जिलों को यह भी कहा गया है कि जिन कर्मचारियों या अभियंताओं पर आपूर्ति प्रभावित करने का शक हो, उनका चिन्हांकन कर डीएम को नाम सौंप दिए जाएं। इससे आपात स्थिति में कार्रवाई आसान हो सके। यह कदम बिजली आपूर्ति को स्थिर रखने और किसी भी तरह की बाधा से बचाने के लिए उठाए गए हैं।

आगरा में निजीकरण से हर साल 1000 करोड़ का नुकसान 

संघर्ष समिति ने ऊर्जा मंत्री एके शर्मा के बयान पर आपत्ति जताई है। मंत्री ने आगरा की टोरेंट और नोएडा पावर कंपनी की सेवाओं की प्रशंसा की थी। लेकिन संघर्ष समिति का कहना है कि ये दावे सही नहीं हैं। आगरा में निजीकरण के कारण हर साल करीब 1000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। पिछले साल, पावर कॉरपोरेशन ने 5 रुपये 55 पैसे प्रति यूनिट बिजली खरीदी और टोरेंट को 4 रुपये 36 पैसे प्रति यूनिट पर दी। इसका मतलब है कि सरकार को हर यूनिट पर नुकसान हो रहा है। संघर्ष समिति का आरोप है कि सरकार के दावे गलत हैं और निजीकरण से स्थिति और खराब हो रही है। जनता को सही जानकारी मिलनी चाहिए ताकि वे समझ सकें कि बिजली सेवाओं में क्या असली स्थिति है।

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किसानों को नहीं मिल रही मुफ्त बिजली

 टोरेंट कंपनी ने 2300 मिलियन यूनिट बिजली सप्लाई की, जिससे कॉरपोरेशन को 275 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। हालांकि, कंपनी सस्ती बिजली खरीदकर महंगी कीमतों पर बेचती है, जिससे सालाना लगभग 800 करोड़ रुपये का मुनाफा हो रहा है। आगरा और ग्रेटर नोएडा में किसानों को मुफ्त बिजली नहीं मिल रही है। संघर्ष समिति का कहना है कि अगर एनपीसीएल की बिजली व्यवस्था इतनी ही अच्छी है, तो सरकार सुप्रीम कोर्ट में क्यों मुकदमा लड़ रही है कि एनपीसीएल का लाइसेंस रद्द किया जाए?

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