/young-bharat-news/media/media_files/2025/10/10/digital-arrest-scam-2025-10-10-09-25-06.jpg)
सांकेतिक फोटो।
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। राजधानी के विकासनगर इलाके में रहने वाले सेवानिवृत्त वरिष्ठ बैंककर्मी सिद्धार्थ नाथ साइबर ठगों के एक बेहद सुनियोजित जाल में फंस गए। जालसाजों ने उन्हें 51 दिनों तक डिजिटल अरेस्ट में रखकर मानसिक रूप से इतना भयभीत किया कि उन्होंने अपनी जीवनभर की जमा पूंजी करीब 2.75 करोड़ रुपये ठगों को ट्रांसफर कर दिए। पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
व्हाट्सएप कॉल से शुरू हुआ ठगी का खेल
सिद्धार्थ नाथ ने बताया कि 30 जुलाई की सुबह उन्हें व्हाट्सएप पर एक अनजान नंबर से कॉल आई। कॉल करने वाले ने खुद को टेलीकॉम कंपनी का कर्मचारी बताया और कहा कि उनके नाम से मुंबई में एक सिम खरीदी गई है, जिसका उपयोग अवैध गतिविधियों में किया जा रहा है। पीड़ित के इनकार करने पर उसने “पुलिस अधिकारी से बात कराने का बहाना किया और कॉल एक अन्य ठग को ट्रांसफर कर दी।
डिजिटल कोर्ट में कराई पेशी
दूसरे ठग ने खुद को क्राइम ब्रांच अधिकारी बताते हुए कहा कि सिद्धार्थ नाथ मनी लॉन्ड्रिंग के केस में फंसे हैं और अब उनकी डिजिटल कोर्ट में पेशी होगी। कुछ ही देर बाद वीडियो कॉल पर उन्हें एक फर्जी कोर्ट रूम दिखाया गया, जहां जज और वकील के रूप में ठग बैठे थे। उन्हें कहा गया कि वह अपने कमरे में बंद रहें, क्योंकि उनकी “रिमांड” चल रही है।ठगों ने लगातार कॉल के जरिये उन्हें यह विश्वास दिलाया कि वे सरकारी जांच के अधीन हैं और पूरी प्रक्रिया डिजिटल निगरानी में है।
मानसिक दबाव में हुई करोड़ों की ठगी
अगले कुछ हफ्तों तक ठगों ने उन्हें लगातार डराते हुए कहा कि यदि वे सहयोग नहीं करेंगे तो उनकी संपत्ति जब्त कर ली जाएगी और जेल भेज दिया जाएगा। भय के माहौल में उन्होंने अपनी एफडी, म्यूचुअल फंड, पेंशन और पत्नी की जमा पूंजी तक तुड़वा दी।2 अगस्त से 19 सितंबर के बीच जालसाजों ने किस्तों में 2.75 करोड़ रुपये उनसे वसूल लिए।
जमानत के नाम पर फिर मांगे 50 लाख
ठगों ने “डिजिटल रिमांड” खत्म करने का झांसा देते हुए कहा कि अब उन्हें जमानत मिल सकती है, लेकिन इसके लिए 50 लाख रुपये और देने होंगे। असमर्थता जताने पर ठगों ने संपर्क तोड़ लिया। तब जाकर पीड़ित को अहसास हुआ कि वह साइबर अपराधियों के जाल में फंस गए हैं।
शिकायत के बाद केस साइबर थाने को ट्रांसफर
घटना के बाद सिद्धार्थ नाथ की तबीयत बिगड़ गई। झिझक के कारण उन्होंने कई दिन तक पुलिस में शिकायत नहीं की। परिजनों के समझाने पर उन्होंने 6 अक्तूबर को विकासनगर थाने में शिकायत दी।थानाध्यक्ष आलोक सिंह ने बताया कि केस दर्ज कर साइबर क्राइम थाना को जांच के लिए सौंपा गया है।
डिजिटल अरेस्ट से बचाव के उपाय
अनजान नंबर या व्हाट्सएप कॉल पर किसी सरकारी अधिकारी, बैंककर्मी या एजेंसी का दावा करने वाले व्यक्ति से बातचीत न करें।
यदि कोई कहे कि आपके नाम से पार्सल, सिम या केस दर्ज है, तो तुरंत कॉल काट दें।
किसी भी स्थिति में व्यक्तिगत या वित्तीय जानकारी साझा न करें।
ठगी का संदेह होते ही पुलिस या साइबर सेल (टोल फ्री 1930) पर संपर्क करें या वेबसाइट www.cybercrime.gov.in
पर शिकायत दर्ज करें।