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निजीकरण के खिलाफ प्रदर्शन करते बिजली कर्मचारी Photograph: (vksssup)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। उड़ीसा में बिजली निजीकरण का प्रयोग विफल होने पर विद्युत नियामक आयोग निजी कंपनियों का लाइसेंस निरस्त करने की याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करेगा। इसी कड़ी में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने सीएम योगी आदित्यनाथ से ओडिशा से सबक लेकर यूपी में निजीकरण का प्रस्ताव तत्काल रद्द किए जाने की मांग की है।
आयोग में 10 अक्टूबर को सुनवाई
समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि उड़ीसा के सभी उपभोक्ता फोरम ने टाटा पावर की चारों विद्युत वितरण कंपनियों का लाइसेंस निरस्त करने के लिए आयोग में याचिका दाखिल की थी। इसमें उपभोक्ता सेवा में विफल और उत्पीड़न करने के आरोप लगाया था। इस मामले में आयोग ने कंपनियों को जुलाई में नोटिस जारी किया था। संतोषजनक जवाब नहीं मिलने से कंपनियों का लाइसेंस रद्द करने के लिए 10 अक्टूबर को सुनवाई की जाएगी।
पहली भी रद्द किया जा चुका लाइसेंस
पदाधिकारियों अुनसार, उड़ीसा में सबसे पहले 1999 में निजीकरण किया गया था। एक साल बाद ही अमेरिका की एईएस कंपनी वापस चली गई। रिलायंस पावर की बाकी तीनों कंपनी का लाइसेंस फरवरी 2015 में विद्युत नियामक आयोग ने पूरी तरह अक्षम रहने के कारण रद्द कर दिया था। 2020 में चारों कंपनियों का लाइसेंस टाटा पावर को दिया गया था।
औद्योगिक प्रांत उड़ीसा में निजीकरण विफल
संयोजक शैलेन्द्र दुबे ने कहा की उड़ीसा में कृषि क्षेत्र उत्तर प्रदेश की तुलना में बहुत कम है। बिजली के क्षेत्र में घाटा मुख्यतः ग्रामीण और कृषि क्षेत्र में होता है। निजीकरण का प्रयोग उड़ीसा जैसे औद्योगिक प्रांत में विफल रहा है और लाइसेंस निरस्त करने के लिए सुनवाई हो रही है। ऐसे में उत्तर प्रदेश के 42 जनपदों की बेहद गरीब जनता पर निजीकरण न थोपा जाय।
निजीकरण के खिलाफ प्रदर्शन जारी
दुबे ने बताया कि निजीकरण के खिलाफ बिजली कर्मचारियों ने आज वाराणसी, आगरा, मेरठ, कानपुर, गोरखपुर, मिर्जापुर, आजमगढ़, बस्ती, अलीगढ़, मथुरा, एटा, झांसी, बांदा, बरेली, देवीपाटन, अयोध्या, सुल्तानपुर, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, नोएडा, गाजियाबाद, मुरादाबाद, में विरोध प्रदर्शन किया।
Electricity Privatisation | vkssup
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