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प्रतीकात्मक तस्वीर।
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। राजधानी में साइबर ठगों ने रिटायर्ड इंजीनियर को 17 दिन तक ‘डिजिटल अरेस्ट’ में रखकर करोड़पति बनने के सपने नहीं, बल्कि पूरी जमा-पूंजी लूट ली। कुर्सी रोड स्थित जानकीपुरम गार्डन निवासी 65 वर्षीय अश्वनी कुमार गुप्ता से ठगों ने खुद को क्राइम ब्रांच अधिकारी बताकर 38.42 लाख हड़प लिए। धोखाधड़ी का अहसास तब हुआ जब बार-बार पैसे मांगने पर उन्होंने परिवार से बात की। अब पीड़ित ने साइबर थाने में शिकायत दर्ज कराई है।
आपका आधार हवाला केस में फंसा है’ ऐसे शुरू हुई ठगी
30 सितंबर की दोपहर अश्वनी कुमार के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से कॉल आई। फोन करने वाले ने कहा, आपके आधार कार्ड का दुरुपयोग हुआ है, आपका केस मुंबई क्राइम ब्रांच को भेजा जा रहा है।कुछ देर बाद दूसरा कॉल आया आपके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग और हवाला का केस दर्ज होने वाला है, मामला चेन्नई डीजीपी को ट्रांसफर किया गया है।डराने के बाद जालसाजों ने कहा कि जब तक जांच पूरी नहीं होती, तब तक किसी से बात नहीं करनी है। उन्होंने वाट्सएप पर “फर्जी जांच दस्तावेज” और “समन” भेजे ताकि विश्वास कायम हो। इसके बाद उन्होंने बैंक खातों की जांच के नाम पर पूरी रकम उनके बताए खातों में ट्रांसफर करने के लिए कहा।
पहले बैंक खाते से रकम, फिर लोन लेकर भेजे 13 लाख
धमकियों से घबराए अश्वनी कुमार 14 अक्टूबर को बैंक पहुंचे और जालसाजों के निर्देश पर 24.70 लाख ट्रांसफर कर दिए। दो दिन बाद ठगों ने फिर कॉल की और और रकम भेजने का दबाव बनाया।जब अश्वनी ने कहा कि अब पैसे नहीं बचे, तो ठगों ने उनके बेटे को जेल भेजने की धमकी दे दी।डर के मारे उन्होंने एसबीआई से 14 लाख का पेंशन लोन लिया और 13.72 लाख और भेज दिए।
परिवार से बात करने पर टूटी डिजिटल कैद
लगातार रकम मांगने और धमकियों से परेशान होकर आखिरकार अश्वनी ने परिवार को पूरी बात बताई। बेटे ने बैंक जाकर लेनदेन की जानकारी निकाली तो ठगी का राज खुला। साइबर क्राइम थाना प्रभारी ब्रजेश कुमार यादव के मुताबिक, “अज्ञात साइबर अपराधियों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया है। जिन खातों में रुपये भेजे गए हैं, उन्हें फ्रीज कराने की प्रक्रिया चल रही है।
क्या है डिजिटल अरेस्ट?
‘डिजिटल अरेस्ट’ एक नई साइबर ठगी तकनीक है, जिसमें अपराधी खुद को पुलिस या जांच एजेंसी का अधिकारी बताकर पीड़ित को डराते हैं। वे कहते हैं कि पीड़ित का नाम किसी अपराध में फंसा है और जांच पूरी होने तक उसे किसी से बात नहीं करनी है। ठग वीडियो कॉल, फर्जी दस्तावेज और सरकारी मुहरों के सहारे भरोसा दिलाते हैं और धीरे-धीरे पूरी रकम हड़प लेते हैं।
लखनऊ में बढ़ रहे ऐसे मामले
राजधानी में बीते कुछ महीनों में ‘डिजिटल अरेस्ट’ और साइबर ठगी के कई हाई-प्रोफाइल केस सामने आए हैं। इंदिरानगर की प्रोफेसर प्रमिला मानसिंह से 78.50 लाख ठगे गए।एसजीपीजीआई की डॉक्टर रुचिका टंडन से 2.81 करोड़ वसूले गए।हजरतगंज के डॉक्टर पंकज रस्तोगी की पत्नी दीपा से 2.71 करोड़ की ठगी। इंजीनियर ए.के. सिंह से 84 लाख और रिटायर्ड अफसर कमल कांत मिश्रा से 17.50 लाख की ठगी हो चुकी है।
ऐसे बचें डिजिटल ठगों से
किसी भी अनजान कॉल पर व्यक्तिगत या बैंक जानकारी साझा न करें।
अगर कोई खुद को पुलिस, ईडी, या क्राइम ब्रांच अधिकारी बताए तो तुरंत कॉल काट दें।
किसी भी डराने वाली कॉल पर 100 या 1930 नंबर पर तत्काल शिकायत करें।
www.cybercrime.gov.in वेबसाइट पर भी ऑनलाइन शिकायत दर्ज की जा सकती है।
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