Advertisment

ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ जी की जयंती पर विशेष : 'जिसको सबका नाथ बनाना होता है भगवान उसे अनाथ बना देते'

यूपी के सीएम व गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के पूज्य गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ का शुरुआती जीवन और बाद में राष्ट्र संत और राम मंदिर आंदोलन के नायक के रूप में उनकी प्रतिष्ठा प्रतिकूलता के इस ईश्वरीय विधान का प्रमाण है।

author-image
Vivek Srivastav
गोरखपुर

अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ के साथ योगी आदित्‍यनाथ। Photograph: (सोशल मीडिया)

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। प्रतिकूलता भी ईश्वर की कृपा होती है। यह उसके द्वारा ली जाने वाली परीक्षा है। संभव है इस प्रतिकूलता के जरिये वह आपको बहुत कुछ ऐसा देने वाला हो जिसके बारे में आपने कभी सोचा भी न हो। यह भी संभव है कि प्रतिकूलता की यह ईश्वरीय कृपा जितनी बड़ी हो उसके बदले उनसे मिलने वाला रिटर्न भी उसी अनुरूप बहुत बड़ा हो। 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के पूज्य गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ का शुरुआती जीवन और बाद में राष्ट्र संत और राम मंदिर आंदोलन के नायक के रूप में उनकी प्रतिष्ठा प्रतिकूलता के इस ईश्वरीय विधान का प्रमाण है। उनका जन्म  28 मई 1921 को गढ़वाल (उत्तराखंड) जिले के कांडी गांव में हुआ था। वह राय सिंह विष्ट के इकलौते पुत्र थे। उनके बचपन का नाम कृपाल सिंह विष्ट था। नाथ परंपरा में दीक्षित होने के बाद वह अवैद्यनाथ के नाम से जाने गए। 

बचपन में ही माता-पिता, कुछ बड़े हुए तो पाल्य दादी की हो गई मौत

कृपाल सिंह विष्ट के बचपन में ही उनके माता-पिता का निधन हो गया। कुछ और बड़े हुए तो पाल्य दादी भी नहीं रहीं।

परिजनों की मौत से विरक्त हुए तो भाने लगा साधु, संतों का साथ

परिजनों की मौत से अनाथ हुए तो मन विरक्त हो गया। फिर तो उनको साधु, संतों का साथ अच्छा लगने लगा। इस क्रम में ऋषिकेश में सन्यासियों के सत्संग से हिंदू धर्म, दर्शन, संस्कृत और संस्कृति के प्रति रुचि जगी। फिर शांति की तलाश में उन्होंने केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और कैलाश मानसरोवर की यात्रा की। वहां वापसी में हैजा होने पर साथी उनको मृत समझ आगे बढ़ गए। वह ठीक हुए तो उनका मन और विरक्त हो उठा।
इस घटना के बाद शांति की तलाश की चाहत और बढ़ी। इसी दौरान ईश्वरीय कृपा से उस समय के नाथपंथ के जानकार योगी निवृत्तिनाथ, अक्षयकुमार बनर्जी और गोरक्षपीठ के सिद्ध महंत रहे गंभीरनाथ के शिष्य योगी शांतिनाथ से उनकी भेंट (1940) हुई।  निवृत्तनाथ ने ही उनकी तब के गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ से भेंट कराई। पहली मुलाकात में ही दिग्विजयनाथ ने उनको अपना शिष्य बनने का प्रस्ताव दिया, पर कृपाल सिंह विष्ट ने इसके प्रति अनिच्छा जताई। फिर वह करांची जाकर एक सेठ के यहां रहने लगे। उस सेठ की उपेक्षा से आहत होने के बाद वे फिर शांतिनाथ से मिले और उनकी ही सलाह पर गोरक्षपीठ में आकर नाथपंथ में दीक्षित हो गए। 

Advertisment

यह सब यूं ही हो गया? शायद नहीं। यह सब इसलिए होता गया क्योंकि उनको हिंदू समाज का नाथ बनना था। अपने उस गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की मदद करनी थी जो पूरी मुखरता एवं दमदारी से उस समय हिंदुत्व की बात कर रहे थे, जब इसे गाली समझा जाता था।

मीनाक्षीपुरम के धर्मांतरण की घटना से आहत होने के बाद वह राजनीति में आए

ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ मूलतः धर्माचार्य। वह देश के संत समाज में बेहद सम्मानीय एवं सर्वस्वीकार्य थे। दक्षिण भारत के मीनाक्षीपुरम में हरिजनों की सामूहिक धर्मांतरण की घटना से वह खासे आहत हुए थे। इसका विस्तार उत्तर भारत में न हो, इसके लिए वे सक्रिय राजनीति में आए। 

चार बार सांसद एवं पांच बार रहे विधायक

उन्होंने चार बार (1969, 1989, 1991 और  1996) गोरखपुर सदर संसदीय सीट से यहां के लोगों का प्रतिनिधित्व किया। अंतिम लोकसभा चुनाव को छोड़ उन्होंने सभी चुनाव हिंदू महासभा के बैनर तले लड़ा। लोकसभा के अलावा उन्होंने पांच बार (1962, 1967, 1969,1974 और 1977) में मानीराम विधानसभा का भी प्रतिनिधित्व किया था।

Advertisment

राम मंदिर आंदोलन के सर्वस्वीकार्य शीर्षस्थ अगुआ भी रहे 

अवैद्यनाथ जी श्रीराम मंदिर आंदोलन के शीर्षस्थ नेताओं में शुमार रहे। 1984 से श्रीरामजन्म भूमि यज्ञ समिति के अध्यक्ष और श्रीरामजन्म भूमि न्यास समिति के आजीवन सदस्य  रहे। योग व दर्शन के मर्मज्ञ महंतजी के राजनीति में आने का मकसद हिंदू समाज की कुरीतियों को दूर करना और राम मंदिर आंदोलन को गति देना रहा।

काशी के डोम राजा के घर भोजन कर समाज को जोड़ने का बड़ा संदेश दिया

बहुसंख्यक समाज को जोड़ने के लिए सहभोजों के क्रम में उन्होंने बनारस में संतों के साथ डोमराजा के घर सहभोज किया। महंत अवैद्यनाथ ने वाराणसी व हरिद्वार में संस्कृत का अध्ययन किया था। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद से जुड़ी शैक्षणिक संस्थाओं के अध्यक्ष व मासिक पत्रिका योगवाणी के संपादक भी रहे। उन्होंने ताउम्र अयोध्या स्थित जन्मभूमि पर भव्य एवं दिव्य राम मंदिर का सपना देखा। उस सपने को साकार होता देख यकीनन स्वर्ग में वह खुश हो रहे होंगे। यह खुशी यह सोचकर और बढ़ जाती होगी कि जब यह सपना मूर्त रूप ले रहा है तो उनके ही शिष्य योगी आदित्यनाथ के हाथों उत्तर प्रदेश की कमान भी है। 

यह भी पढ़ें : UP News : सीएम योगी बोले, सरकार वही जो जनता के द्वार जाकर समस्याओं का समाधान निकाले

Advertisment

यह भी पढ़ें : जनता दर्शन : CM Yogi बोले-जन समस्याओं के निस्तारण में न हो तनिक भी लापरवाही

यह भी पढ़ें : Operation Sindoor : सामूहिक विवाह योजना के तहत कन्‍या को सिंदूरदान भी दिया जाएगा

यह भी पढ़ें : UP News : बाल श्रम रोकने के लिए प्रदेश भर में जिला टास्क फोर्स का होगा गठन

Advertisment
Advertisment