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ब्रिटेन में रह रहे मदरसा शिक्षक के वेतन विवाद में यूपी के तीन जिला अल्पसंख्यक अधिकारी जांच के घेरे में

ब्रिटेन में रहने वाले आजमगढ़ के मदरसा शिक्षक शमशुल हुदा खां के वेतन, पेंशन और अन्य भुगतानों में अनियमितताओं के मामले में यूपी के तीन जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी (डीएमओ) जांच के घेरे में हैं।

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Shishir Patel
Shamshul Huda Khan

मदरसा शिक्षक शमशुल हुदा खां

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अधिकारियों की बड़ी अनियमितता का मामला सामने आया है। ब्रिटेन में रहने वाले आजमगढ़ के मदरसा शिक्षक शमशुल हुदा खां के वेतन, पेंशन और अन्य भुगतानों में नियमों के उल्लंघन के आरोपों के चलते तीन जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी (डीएमओ) जांच के घेरे में हैं।ये अधिकारी अलग-अलग समय पर आजमगढ़ में तैनात रहे और वर्तमान में क्रमशः बरेली, अमेठी और गाजियाबाद में डीएमओ के पद पर कार्यरत हैं। शासन को इस संबंध में रिपोर्ट भेज दी गई है। मामले की जांच यूपी एटीएस कर रही है, जिसने कई महत्वपूर्ण तथ्य उजागर किए हैं।

शमशुल 1984 में मदरसा में आलिया पद पर नियुक्त थे 

सूत्रों के अनुसार जांच में पाया गया कि शमशुल हुदा खां 12 जुलाई 1984 को मदरसा दारूल उलूम अहले, सुन्नत मदरसा अशरफिया मुबारकपुर (आजमगढ़) में सहायक अध्यापक (आलिया) के पद पर नियुक्त हुए थे। इसके बाद 2007 से वह ब्रिटेन में रहने लगे और 19 दिसंबर 2013 को ब्रिटिश नागरिकता हासिल कर ली।जांच में यह भी सामने आया कि 2007 से 2017 तक अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने उनकी सेवा पुस्तिका की जांच किए बिना प्रति वर्ष वेतन वृद्धि जारी रखी, और 1 अगस्त 2017 को उन्हें स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति प्रदान कर पेंशन भी स्वीकृत कर दी। एटीएस ने बताया कि शमशुल हुदा खां ब्रिटिश नागरिकता लेने के बाद विभिन्न देशों में यात्रा करते हुए इस्लाम धर्म का प्रचार कर रहे हैं।

जीपीएफ भुगतान पर हरस्ताक्षर करने वाले अधिकारी भी जांच के दायरे में 

यूपी एटीएस ने मामले में पाया कि शमशुल के वेतन, चिकित्सा अवकाश और अन्य भुगतानों के लिए मदरसे के प्रबंधक और प्रधानाचार्य के साथ-साथ आजमगढ़ के तत्कालीन डीएमओ लालमन, प्रभात कुमार और साहित्य निकत सिंह जिम्मेदार हैं। इस पर कड़ी कार्रवाई की संभावना जताई जा रही है।साथ ही, शमशुल की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति फाइल और जीपीएफ भुगतान पर हस्ताक्षर करने वाले अन्य अधिकारियों को भी जांच के दायरे में लिया गया है। फिलहाल, इन अधिकारियों के खिलाफ अधिकारिक कार्रवाई के परिणाम स्पष्ट नहीं हुए हैं, इसलिए उनके नाम सार्वजनिक नहीं किए गए हैं।इस मामले ने यूपी के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में लंबे समय से चल रही नियमावली उल्लंघन और जवाबदेही के सवाल को फिर से उजागर कर दिया है।

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