लखनऊ वाईबीएन संवाददाता। प्रदेश का कुल रिपोर्टेड क्षेत्रफल 235.14 लाख हेक्टेयर है, जिसमें से 165 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि पर खरीफ और रबी की फसलें उगाई जाती हैं। खरीफ के मौसम में लगभग 58.96 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती होती है, जबकि रबी के दौरान लगभग 97.88 लाख हेक्टेयर में गेहूं की फसल बोई जाती है। इसके अतिरिक्त, लगभग 21 लाख हेक्टेयर भूमि पर गन्ने की खेती की जाती है। इन मुख्य फसलों की कटाई के बाद बड़ी मात्रा में अवशेष जैसे पुआल, भूसा और गन्ने की सूखी पत्तियां शेष रहती हैं। गेहूं और जौ के भूसे का उपयोग प्रायः पशु आहार के रूप में किया जाता है, वहीं धान का पुआल और गन्ने की सूखी पत्तियां न केवल चारे के रूप में, बल्कि पशुओं के लिए बिछावन के तौर पर भी इस्तेमाल की जाती हैं।
फसल अवशेषों का खेतों में उपयोग
विगत कुछ वर्षों से मजदूरों की समस्यायें एवं आधुनिक कृषि यंत्रों यथा कम्बाइन हार्वेस्टर के प्रयोग से कटाई करने पर लगभग 01 से 1.5 फिट की ऊँचाई के फसल अवशेष अथवा सूखी पत्तियां खेत में रह जाती है जिन्हें जलाने की प्रवृत्ति प्रदेश के कतिपय जनपदों में होती रही। इन फसल अवशेषों के जलाये जाने से न केवल पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है, बल्कि खेतों में मित्र कीटो, मित्र जीवों के साथ-साथ मृदा स्वास्थ्य, उर्वरता पर प्रतिकूल प्रभाव भी परिलक्षित हो रहे हैं।
पौधों के लिए आवश्यक पोषण तत्व
पौधों के बढ़वार हेतु 16 पोषण तत्वों की आवश्यकता होती है, जिसमें कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन प्रकृति से प्राप्त होता है। ये तत्व पौधों के लगभग 95 प्रतिशत भाग के निर्माण में सहायक है। उक्त के अतिरिक्त नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर तथा सूक्ष्म पोषण तत्व के रूप में लोहा, जिंक, आयरन, बोरॉन, मॉलिब्डेनम, कॉपर, क्लोरीन जैसे तत्व पौधों के बढ़वार एवं उत्पादन में सहायक होते हैं।
फसल अवशेषों का खेत में समावेशन
जब किसान भाई खरीफ, रबी, जायद की फसलों की कटाई, मढ़ाई करते है तो जड़ तना, पत्तियों के रूपों में पादप अवशेष भूमि के अन्दर एवं भूमि के ऊपर उपलब्ध होते हैं। इनको यदि लगभग 20 किग्रा0 यूरिया प्रति एकड़ की दर से मिट्टी पलटाने वाले हल से रोटोवेटर से जुताई के समय मिला देने से पादप अवशेष लगभग बीस से तीस दिन के भीतर जमीन में सड़ जाते हैं जिससे मृदा में कार्बनिक पदार्थों एवं अन्य तत्वों की बढ़ोत्तरी होती हैं। फलस्वरूप फसलों के उत्पादन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। फसल अवशेष को खेत में सडाने से फसल उत्पादन में कई लाभ होते है। एकीकृत पोषण तत्व प्रबंधन के घटक के रूप में फसल अवशेष भी अहम योगदान प्रदान करता है। फलस्वरूप मृदा में कार्बनिक पदार्थ की बढ़ोतरी से मृदा जीवाणु की क्रियाशीलता बढ़ती है जिसके कारण उत्पादन पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।
फसल अवशेष प्रबंधन के लाभ
वातावरण को विपरीत परिस्थितियों से बचाने में सहायक दलहनी फसलों के फसल अवशेष भूमि में नत्रजन एवं अन्य पोषण तत्वों की मात्रा बढ़ाने में सहायक होते है। फसल अवशेष कम्पोस्ट खाद बनाने में सहायक है जो कि मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक क्रियाओं में लाभदायक है। पादप अवशेष मल्च के रूप में प्रयोग करने में मृदा जल संरक्षण के साथ-साथ फसलों को खरपतवारों से बचाने में सहायक होते है। मृदा के जीवांश में हो रहें लगातार ह्यस को कम करने में योगदान करता है। मृदा जलधारण क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है। मृदा वायु संचार में बढ़ोत्तरी होती है। कृषक भाई फसल अवशेष जलाते हैं तो उनसे कई हानियां होती है।
फसल अवशेष जलाने के दुष्प्रभाव
फसलों के अवशेषों को जलाने से उनके जड़ तना, पत्तियों में संचित लाभदायक पोषण तत्व नष्ट हो जाते है। फसल अवशेषों को जलाने से मृदा ताप में बढ़ोत्तरी होती हैं जिसके कारण मृदा के भौतिक, रसायनिक एवं जैविक दशा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। पादप अवशेषों में लाभदायक मित्र कीट जलकर मर जाते हैं जिसके कारण वातावरण पर विपरीत प्रभाव भी पड़ता है। पशुओं के चारे की व्यवस्था पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।
किसानों के लिए लाभदायक
प्रदेश सरकार ने फसलों के अवशेष जलाने पर प्रतिबन्ध लगाया है। फसलो की जड़ से कटाई हेतु हार्वेस्टिंग मशीन के साथ स्ट्रारीपर विद बाइण्डर के प्रयोग करने पर बल दिया गया है। प्रदेश सरकार इसके लिए विभिन्न कृषि यन्त्रों में किसानों को आवश्यक छूट भी दे रही है। सीटू, योजना में यन्त्रों को सुगमता से कस्टम हायरिंग केन्द्र एवं फार्म मशीनरी बैंक से यन्त्र प्राप्त कर किसान भाई खेत की पराली अवशेष का प्रबंधन कर सकते हैं। रबी फसल के भूसे को बेचकर आय अर्जित कर सकते है। किसानों के लिए यह लाभदायक भी है। जनपदों के किसान इसका लाभ ले रहे हैं।
चारे व बिछावन के रूप में उपयोगी
किसानों की पराली संग्रह कर गौशालाओं में रखने हेतु सरकार ने मनरेगा अथवा वित्त आयोग से धनराशि की व्यवस्था की है। यह गौशालाओं में चारे व बिछावन के उपयोग में लाई जायेगी, जिससे खाद भी बनेगी। प्रदेश में स्थापित सीबीजी प्लान्ट एवं अन्य फसल अवशेष आधारित जैव ऊर्जा इकाइयों द्वारा धान की पराली क्रय की जाती है। किसान भाई इन्हें पराली देकर पर्यावरण, मृदा उर्वरक एवं सूक्ष्म जीव बचाव के साथ अतिरिक्त आय भी प्राप्त कर सकते हैं।
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