लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि अगर किसी व्यक्ति की दूसरी शादी के वैध होने को लेकर सवाल भी है, तब भी भरण-पोषण का अधिकार उस पर निर्भर नहीं करता। कोर्ट ने कहा कि यह देखना ज्यादा जरूरी है कि जिस व्यक्ति ने भरण-पोषण की मांग की है, क्या वह वास्तव में आर्थिक रूप से जरूरतमंद है?
यह फैसला जस्टिस अरिंदम सिन्हा और जस्टिस अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक पति-पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद अदालत में लंबित है, तब तक हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत भरण-पोषण की मांग पर सुनवाई की जा सकती है, चाहे शादी की वैधता पर सवाल हो या नहीं।
दूसरी शादी को अवैध बताया था पति ने
उपरोक्त मामले में पति ने दावा किया था कि पत्नी की शादी अवैध है, क्योंकि उसके पहले पति की मौत नहीं हुई थी और वह जिंदा है। इसी आधार पर फैमिली कोर्ट ने पत्नी का भरण-पोषण का आवेदन खारिज कर दिया था। इसके बाद पत्नी ने हाईकोर्ट में अपील की और कहा कि दोनों लंबे समय से एक-दूसरे को जानते थे और पति उसके पूर्व जीवन से अंजान नहीं हो सकता। साथ ही उसने यह भी तर्क दिया कि पति पुलिस विभाग में कार्यरत है और उसकी आर्थिक स्थिति ठीक है, इसलिए उसे भरण-पोषण मिलना चाहिए।
हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि ऐसी स्थिति में यह देखना जरूरी है कि पत्नी को वाकई खर्च और भरण-पोषण की आवश्यकता है या नहीं, ना कि केवल शादी की वैधता पर ध्यान देना।
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