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प्रतीकात्मक Photograph: (सोशल मीडिया)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। यूपी में 2027 में होने वाले चुनावों के चक्कर में लोग इस बीच भूल ही बैठे थे कि उससे पहले पंचायतों के चुनाव होने हैं, लेकिन योगी सरकार नहीं भूली थी। किसानों के लिए बड़े तोहफे के रूप में प्रचारित गन्ना के परामर्श मूल्य में वृद्धि को यदि राजनीति की चाशनी में देखा जाए तो सीधे तौर पर पश्चिम यूपी के किसान निशाने पर नजर आते हैं और यह बताने की बात नहीं कि पंचायत चुनावों पर इनका क्या असर पड़ सकता है। योगी की इस मीठी पालिटिक्स में किसानों को साधने की सधी चाल स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है और 2027 के चुनाव पर भी इसका असर पड़ सकता है। इसे भांपते हुए ही विपक्ष ने सरकार के इस कदम की आलोचना शुरू कर दी है और यह कहना शुरू कर दिया है कि इसे और बढ़ाया जाना चाहिए था।
पश्चिम यूपी की राजनीति में है गन्ना किसानों का प्रभुत्व
निस्संदेह रूप से यह कहा जा सकता है कि योगी सरकार के आठ साल के कार्यकाल में गन्ना किसानों को प्राथमिकता मिली है, लेकिन किसानों की अपेक्षाएं अभी पूरी तरह पूरी नहीं हुई हैं। प्रदेश में लगभग 46 लाख किसान हैं और यदि पश्चिमी यूपी को छोड़ दिया जाए तो हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर खीर, बस्ती और गोरखपुर में भी इनकी बड़ी संख्या है। सरकार ने गन्ना के राज्य परामर्शित मूल्य (SAP) में 30 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की है। यानि कि अब उन्हें अगैती गन्ना के लिए 400 और सामान्य गन्ना के लिए 390 रुपये मिलेंगे। उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव की तैयारी चल रही है और भाजपा हर कीमत में इसमें अच्छा प्रदर्शन करना चाहती है। पंचायत चुनाव में बड़ी जीत विपक्ष के मनोबल को तोड़ेगी और भाजपा को मनोवैज्ञानिक रूप से बढ़त दिलाएगी। पश्चिम यूपी में गन्ना किसान राजनीति में अहम भूमिका निभाता आया है। गन्ना बेल्ट पश्चिमी यूपी की 140 विधानसभा सीटों को प्रभावित करता है।
हर चुनाव से पहले शुगर पालिटिक्स
यह संयोग नहीं है कि यूपी में भाजपा सरकार ने जब भी गन्ना मूल्य बढ़ाया है, उसके कुछ माह बाद ही कोई न कोई चुनाव होने वाला था। योगी कार्यकाल में अब तक चार बार गन्ना मूल्य में वृद्धि हुई है। पहली बार 2017-18 के सत्र में 10 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाए गए थे। दूसरी बार 2021-21 के पेराई सत्र में 25 रुपये बढ़ाया गया। तीसरी बार 2023-24 के पेराई सत्र में 20 रुपये बढ़ाया गया और अब 30 रुपये बढ़ाया गया है। यानि की कुल 85 रुपये बढ़ाए जा चुके हैं। भाजपा किसानों को दिए गए इस तोहफे को कैश करने में भी जुटी हुई है। इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि बुधवार को ही मूल्य बढ़ाने की घोषणा हुई और गुरुवार को ही CM योगी आदित्यनाथ के किसानों के साथ संवाद भी किया। चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी का कहना है 2017 से पहले प्रदेश में कई गन्ना मिलें बंद थीं, लेकिन अब चार नई मिलें खुली हैं। छह मिलों को फिर से शुरू कराया गया है। चौधरी के अनुसार पिछले आठ साल में 12 हजार करोड़ रुपये का निवेश गन्ना सेक्टर में हुआ है।
फिर भी बरकरार हैं किसानों की समस्याएं
प्रदेश सरकार के इस कदम से ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा की जमीन थोड़ी मजबूत जरूर होगी लेकिन किसानों की समस्याएं अभी भी बरकरार हैं। पूर्वांचल की गन्ना बेल्ट में लागत अधिक और उत्पादन कम है। किसानों का चीनी मिलों पर भी लगभग दो हजार करोड़ रुपये बकाया है। किसानों को खाद और रसायन की महंगाई का भी सामना करना पड़ रहा है। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अवनीश त्यागी कहते हैं कि योगी सरकार में किसान हमेशा प्राथमिकता में रहे हैं। गन्ना मूल्य में बढ़ोतरी के एक बड़ा कदम है और इससे किसानों को काफी लाभ होगा। सरकार ने गन्ना पर्ची की ऑनलाइन व्यवस्था, भुगतान में पारदर्शिता और एथेनॉल नीति के जरिए किसानों को आर्थिक समृद्धि से जोड़ा है। हालांकि विपक्ष सरकार के इस निर्णय को किसानों के लिए नाकाफी मानता है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर लिखा कि अब जब चुनाव नजदीक हैं, बीजेपी को किसानों की याद आई है। उनका कहना है कि सरकार को गन्ना मूल्य और बढ़ाना चाहिए था।
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