लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि वह पहले की सरकारों की तरह बिजली निजीकरण का फैसला वापस ले। परिषद ने कह कि वह पहले ही निजीकरण के प्रस्ताव में खामियां उजाकर कर चुका है। अब विद्युत नियामक आयोग ने भी कमियां निकालकर प्रस्ताव वापस कर दिया है। ऐसे में सरकार को निजीकरण की प्रकिया को तत्काल रद्द कर देना चाहिए।
2006 में निजीकरण पर लगी रोक
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि वर्ष 2006 में लखनऊ के माल, मलिहाबाद और काकोरी को निजी कंपनी को सौंपने का फैसला कैबिनेट ने पास किया था। तत्कालीन ऊर्जा मंत्री शिवपाल यादव उसका हैंडओवर-टेकओवर कर रहे थे। हालांकि, उपभोक्ता परिषद की याचिका पर नियामक आयोग ने निजीकरण पर रोक लगा दी। इसके बाद सरकार ने उसे ने उसे वापस ले लिया था।
2014 में पांच शहरों के निजीकरण प्रस्ताव वापस
वर्मा ने कहा कि इसी तरह वर्ष 2014 में पांच शहरों के निजीकरण का मामला सपा सरकार की कैबिनेट से पास हो गया था। निजीकरण की प्रक्रिया के दौरान उपभोक्ता परिषद की याचिका पर नियामक आयोग ने अवमानना नोटिस जारी किया था, जिसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने निजीकरण का प्रस्ताव वापस ले लिया था। ऐसे में अब प्रदेश सरकार को मान लेना चाहिए कि निजीकरण की आड़ में कुछ अधिकारी बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की साजिश रच रहे हैं। सरकार को बिजली कर्मचारियों ओर उपभोक्ताओं के हित में फैसला लेते हुए तत्काल निजीकरण का प्रस्ताव वापस लेना चाहिए।
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