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Electricity Privatisation : झूठा शपथ पत्र देने वाली सलाहकार कंपनी की ढाल बना UPPCL, तीसरी बार स्पष्टीकरण मांग खुद ही तैयार किया जवाब

Electricity Privatisation : उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद (UPRVUP) के अध्यक्ष Avadhesh Kumar Verma ने कहा कि ब्रिटिश कंपनी ग्रांट थार्नटन को बचाने के लिए Power Corporation किसी भी हद तक जाने को तैयार है।

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Deepak Yadav
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झूठा हलफनामा देने वाली सलाहकार कंपनी को बचाने का uppcl का ‘खास प्लान’ Photograph: (YBN)

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लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता

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बिजली के निजीकरण का मसौदा तैयार कर रही सलाहकार कंपनी ग्रांट थार्नटन (Grant Thornton) पर झूठा हलफनामा देने के मामले में कार्रवाई करने के बजाय उल्टा उसे बचाने के लिए मशक्कत की जा रही है। उपभोक्ता परिषद का आरोप है कि पवार कारपोरेशन ने कंपनी को बचाने का अब एक नया रास्ता खोजा है। कंपनी से बार-बार मन माफिक जवाब मांगा जा रहा है। उपभोक्ता परिषद ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि सलाहकार कंपनी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। ताकि भविष्य में कोई भी कंपनी इस तरह की धोखाधड़ी करने का साहस न कर सके।

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कार्रवाई के बजाय निभाय जा रहा भाईचारा

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उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद (UPRVUP) के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा (Avadhesh Kumar Verma) ने कहा कि ब्रिटिश कंपनी ग्रांट थार्नटन को बचाने के लिए पावर कारपोरेशन (Power Corporation) किसी भी हद तक जाने को तैयार है। वर्मा ने कहा कि कंपनी ने झूठा शपथ पत्र दाखिल कर टेंडर हासिल किया। ऐसे में उसे ब्लैक लिस्ट कर केस दर्ज होना चाहिए था। इसके बजाय शनिवार को पावर कारपोरेशन प्रबंधन और कंसल्टेंट कंपनी के बीच लंबी बैठक हुई। जिसमें कंपनी को बचाने की रणनीति तैयार की गई। इतना ही नहीं कंपनी से तीसरी बार स्पष्टीकरण मांगा गया। इससे स्पष्ट है कि कार्रवाई के बजाय उसे बार-बार मौका दिया जा रहा है। अवधेश वर्मा ने आरोप लगाया कि पावर कारपोरेशन जुर्माना भारत में नहीं अमेरिका में लगने और उसे जमा किए जाने का जवाब सलाहकार कंपनी से देने को कह रहा है।  उन्होंने कहा कि अब मामले को जानबूझकर उलझाया जा रहा है। ताकि दोषी कंपनी को बचाया जा सके।

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अंतरराष्ट्रीय से भारत की ओर मुड़ा पावर कारपोरेशन

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अवधेश वर्मा ने कहा कि एनर्जी टास्क फोर्स और एंपावर्ड कमेटी में पास मसौदे के बिंदु नंबर तीन में स्पष्ट रूप से जिक्र है कि टेंडर भरने वाली सलाहकार कंपनी का न्यूनतम वार्षिक औसत टर्नओवर 500 करोड़ रुपये होना चाहिए। इस शर्त पर ग्रांट थार्नटन ने अपना मत रखते हुए कहा था कि अंतरराष्ट्रीय स्तर का टर्नओवर भी शामिल किया जाए। इसके बाद नियमों में ढील देते हुए न्यूनतम टर्नओवर की सीमा घटाकर 200 करोड़ रुपये कर दी गई। उस समय खुद कंपनी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर की बात कही थी। लेकिन जब कंपनी पर कार्रवाई की बात आई तो अधिकारी अंतरराष्ट्रीय स्तर से हटकर भारत का हवाला देकर प्लान बनाने लग गए। वर्मा ने स्पष्ट कहा कि अब चाहे जितने भी प्रयास कर लिए जाएं, कंसल्टेंट कंपनी पर कार्रवाई के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है। उपभोक्ता परिषद इस पूरे मामले की हर पहलू पर पैनी नजर बनाए हुए है।

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