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विश्व पर्यावरण दिवस पर छावनी में पौधे लगाते सैनिक और उनका परिवरीजन Photograph: (YBN)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर बृहस्पतिवार को सेना के अधिकारियों और उनके परिवारजनों ने पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए छावनी क्षेत्र में पौधारोपण किया। इसके जरिए प्रदूषण को कम करने और हरियाली बढ़ाने का संदेश दिया गया। इस दौरान भारतीय सेना की सेंट्रल कमांड और सोसाइटी फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट के संयुक्त तत्वावधान में विशेष व्याख्यान आयोजित हुआ।
औद्योगीकरण के साथ पर्यावरण संरक्षण भी जरूरी
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता पर्यावरणविद् व सोसाइटी फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट के निदेशक राधेश्याम दीक्षित ने कहा कि आज के आधुनिक युग में हम पर्यावरण से जुड़ी कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। हमारी जरूरतें और उनके समाधान कई बार दो विपरीत ध्रुवों की तरह लगते हैं। एक ओर जहां राष्ट्र के विकास के लिए औद्योगीकरण जरुरी है। वहीं दूसरी ओर जल, जंगल और जमीन का संरक्षण भी उतना ही आवश्यक है। सेना हर मोर्चे पर सकारात्मक भूमिका निभाती रही है। इसी कारण छावनी क्षेत्र आज भी अधिक हरित और पर्यावरण हितैषी है। सैनिक अपने गांव, शहर और कार्यक्षेत्रों में भी पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों में भागीदार बन रहे हैं।
माइक्रोप्लास्टिक से जैव विविधता को खतरा
राधेश्याम दीक्षित ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2025 के लिए ‘बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन’ को थीम इसलिए चुना है क्योंकि जो प्लास्टिक एक समय में वैज्ञानिक वरदान था, वह अब धरती के लिए सबसे बड़ा संकट बन चुका है। प्लास्टिक के ज्यादा इस्तेमाल से माइक्रोप्लास्टिक जल, वायु एवं खाद्य श्रृंखला के जरिए प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को प्रदूषित कर रहे हैं और जैव विविधता को खतरे में डाल रहे हैं। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए तीन 'आर' सूत्र रिड्यूस, रीयूज, रिसायकल को अपनाने का आह्वान किया। सोसाइटी फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट की अध्यक्ष डॉ. आभा आर. दीक्षित ने नागरिकों से संयुक्त राष्ट्र के विकास लक्ष्यों (SDGs) में सहयोग देने की अपील की। उन्होंने लोगों को अपने घर व समाज में पर्यावरण के प्रति अपनी भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया।
सैनिकों ने अपने परिवारजनों समेत लगाए पौधे
कार्यक्रम में अग्निवीरों के लिए दो सत्र आयोजित किए गए। पहला सत्र लैशराम ज्योतिन सिंह प्रेक्षागृह, जबकि दूसरा कैप्टन पुनीत दत्त प्रेक्षागृह में संपन्न हुआ। अंत में सभी ने विभिन्न प्रजातियों के पौधों का रोपण कर प्रकृति के प्रति अपनी आस्था और उत्तरदायित्व का निर्वाह किया।
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