लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। प्लास्टिक जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। इससे होने वाला प्रदूषण एक बहुत बड़ी समस्या है। इससे न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है, बल्कि सेहत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्लास्टिक उत्पादन से लेकर नष्ट होने तक लोगों और पर्यावरण को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। प्लास्टिक के बड़े टुकड़ों के टूटने या उत्पादन के दौरान माइक्रोप्लास्टिक बनते हैं। इनका आकार पांच मिमी से कम होता है। मनुष्य के सांस लेने, निगलने और सीधे त्वचा के सम्पर्क से कई विषैले रसायन और माइक्रोप्लास्टिक के सम्पर्क में आते हैं।
हवा, भोजन और पानी में माइक्रोप्लास्टिक
एक अध्ययन में पाया गया है कि माइक्रोप्लास्टिक हवा, भोजन, पानी में मिले हैं। समुद्री नमक, रॉक साल्ट, टेबल साल्ट, स्थानीय कच्चे नमक सहित 10 प्रकार के नमक और ऑनलाइन व स्थानीय बाजारों से खरीदी गयी पांच तरह की चीनी पर शोध किया गया। इसमें सामने आया कि नमक और चीनी के सभी नमूनों में अलग-अलग तरह के माइक्रोप्लास्टिक्स थे। माइक्रोप्लास्टिक्स का आकार .1 मिमी से .5 मिमी था। एक किलो नमक में माइक्रोप्लास्टिक्स के लगभग 90 टुकड़े मिले। वहीं, एक किलो चीनी के नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा 11.85 से 68.25 टुकड़े पायी गयी। विशेषज्ञों ने प्लास्टिक के बढ़ते इस्तेमाल को लेकर गंभीर चिंता जताई है।
प्लास्टिक से इन बिमारियों का खतरा
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (KGMU) के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत के मुताबिक, प्लास्टिक से हार्मोनल असंतुलन, कैंसर और अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं हो सकती हैं। बच्चों पर इसका गंभीर असर देखने को मिलता है। समय से पहले बच्चे का जन्म, मृत बच्चे का जन्म, जन्मजात प्रजनन अंगों में दोष, तंत्रिका सम्बन्धी कमजोरी, फेफड़ों के विकास में बाधा और बचपन में कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है। प्लास्टिक से न केवल जमीन प्रदूषित हो रही है। बल्कि जलीय जीवन और जलीय पारिस्थतिकी तंत्र भी प्रभावित हो रहा है।
भूमि, फसल और सेहत के लिए हानिकारक
आर्गेनाइजेशन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ एनवायरनमेंट एंड नेचर(ओशन) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सूर्य कान्त ने बताया कि प्लास्टिक प्राकृतिक रूप से संशोधित प्राकृतिक चीजों जैसे प्राकृतिक रबर, नाइट्रोसेल्यूलोज कोलेजन, गेलाईट से विकसित हुआ है। प्लास्टिक तब तक जहरीली गैस रिलीज करता रहता है जब तक यह नष्ट नहीं हो जाता। जिसके कारण भूमि की उर्वरक क्षमता खत्म हो सकती है। फसल पैदा भी होती है तो उसमें विषैले पदार्थ होते हैं। जो कि मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। प्लास्टिक के उत्पाद कम वजन, कम लागत और आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए आज के समय में सभी जगह इस्तेमाल किये जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि साल 2040 तक जलीय पारिस्थितिक तंत्र में 23-37 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा होने का अनुमान है। साल 1950 से 2017 तक लगभग 9.2 बिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन किया गया है।
नमक और चीनी में माइक्रोप्लास्टिक्स
रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभागाध्यक्ष के मुताबिक, समुद्री नमक, रॉक साल्ट, टेबल साल्ट, स्थानीय कच्चे नमक सहित 10 प्रकार के नमक और ऑनलाइन व स्थानीय बाजारों से खरीदी गयी पांच प्रकार की चीनी का जांच पर शोध किया गया। निष्कर्ष में सामने आया कि नमक और चीनी के सभी नमूनों में अलग-अलग तरह के माइक्रोप्लास्टिक्स थे। माइक्रोप्लास्टिक्स का आकार .1 मिमी से .5 मिमी था। एक किलो नमक में माइक्रोप्लास्टिक्स के लगभग 90 टुकड़े मिले हैं व एक किलो चीनी के नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा 11.85 से 68.25 टुकड़े पायी गयी। अतः प्लास्टिक के उपयोग को सीमित करना, इसके सुरक्षित विकल्प अपनाना और जागरूकता फैलाना आज समय की जरूत बन गया है।
कपड़े, पेपर से बने उत्पादों का करें इस्तेमाल
डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि अपने जीवन में कुछ आदतें सुधार कर धरती को बचा सकते हैं। प्लास्टिक का उपयोग बंद कर घर से बाजार जाते समय कपड़े का झोला लेकर जाएं। प्लास्टिक के बजाय कपड़े, पेपर से बने उत्पादों का इस्तेमाल करें। राज्य सरकार ने एक जुलाई 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। उन्होंने बताया कि हर साल पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस साल इस दिवस की थीम 'प्लास्टिक खत्म करना' है। इसका उद्देश्य प्लास्टिक के दुष्प्रभाव के बारे में लोगों को जागरूक करना है।
कपड़े और जूट के थैलों का करें इस्तेमाल
केजीएमयू के पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। उन्होंने बताया कि प्लास्टिक प्रदूषण न केवल धरती, बल्कि हवा और जल को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। प्लास्टिक के कण आज हमारे भोजन, जल और यहां तक कि सांस में भी पाए जा रहे हैं, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं। डॉ. वेद प्रकाश ने कहा कि रोग प्रतिरोधक क्षमता पर प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों का नकारात्मक प्रभाव देखा जा रहा है। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे घर, कार्यालय और सामाजिक जीवन में प्लास्टिक के विकल्पों को अपनाएं। बाजार में कपड़े और जूट के थैले आसानी से उपलब्ध हैं, जिन्हें अपनाकर बदलाव की शुरुआत की जा सकती है।
यह भी पढ़ें- सिविल में कोविड जांच शुरू : लोहिया में नहीं सुविधा, एडवाइजरी की उड़ रही धज्जियां
यह भी पढ़ें- बिजली विभाग और नगर निगम के विवाद का खामियाजा भुगत रहे राजाजीपुरम के उपभोक्ता
यह भी पढ़ें : UP News: उत्तर प्रदेश बौद्ध धरोहरों को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए प्रतिबद्ध : जयवीर सिंह