महाकुंभ में परमधर्म संसद के दौरान ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने स्वेच्छा से भूल सुधार करने वालों के लिए मौका जरूर दिया जाएगा। उन्होंने इस मौके पर एक और बड़ी बात कही है। शंकराचार्य ने कहा कि पूरी दुनिया में धर्म केवल एक है, सनातन धर्म। इस्लाम धर्म नहीं, बल्कि मजहब है। ईसाई रिलीजन है। धर्म का उपयोग केवल सनातन के लिए किया जाता है।
सनातन धर्म छोड़ने वालों को वापसी का मौका
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि किसी लालच या दवाब के चलते सनातन धर्म छोड़ने वालों को घर वापसी का मौका जरूर मिलेगा। उन्होंने बताया कि ऐसे लोगों के लिए तीन अलग-अलग जातियां बनाई जाएंगी। यह भूल सुधार का मौका उन लोगों के लिए होगा, जो अपने पूर्वजों की भूल को सुधारना चाहते हैं।
घर वापसी के लिए बनाई व्यवस्था
महाकुंभ के सेक्टर 19 स्थित शिविर में आयोजित परमधर्म संसद 1008 में कहा घर वापसी करने वालों के लिए शरणागत मानकर स्वीकार किया जाएगा। उनके परीक्षण का काल 12 साल का रहेगा, इस दौरान वे भागवत, शरणागत और धर्मपूत जातियों में रहेंगे। परीक्षण काल पूरा होने के बाद वे पुनः अपनी मूल जाति में लौट जाएंगे।
धर्मांतरण शब्द का प्रयोग करना गलत
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि घर वापसी के लिए धर्मांतरण शब्द का प्रयोग करना गलत है। यह शब्द तक इस्तेमाल किया जाता है जब कि एक से दूसरे धर्म में जाने की बात हो, लेकिन इस दुनिया में एक ही धर्म है और वह है सनातन, वैदिक, हिंदू, आर्य या परम धर्म। धर्म एक ही है, तो धर्मांतरण का सवाल ही कहां है। 4300 धर्म बताए जाते हैं, लेकिन हैं नहीं। जैसे यहूदी व ईसाई स्वयं को रिलीजन और इस्लाम एक मजहब के रूप में जाना जाता है, वैसे सबने अलग - अलग नाम दिए हैं, धर्म केवल सनानत को ही कहा गया है।
सनातन या उससे निकली शाखाएं ही धर्म
शंकराचार्य ने परमधर्म संसद में आदेश जारी किया कि धर्म शब्द से केवल सनातन और सनातन से निकली भारतीय मूल की शाखाओं जैन, बौद्ध और सिख आदि को ही पुकारा जाएगा। अपने आपको मजहब, रिलीजियस या कुछ और कहने वालों को वही पुकारा जाए। शंकराचार्य ने कहा कि इस परमादेश के पीछे किसी का अपमान करना हमारा उद्धेश्य नहीं है, बल्कि हम अपनी पहचान साफ करना चाहते हैं। परम धर्म संसद में ईसाई प्रतिनिधि के रूप में वाराणसी के मैत्री भवन के फादर यान भी मौजूद रहे। धर्माधीश के रूप में देवेंद्र पांडेय ने परम धर्म संसद का संचालन किया, विषय स्थापना साध्वी पूर्णांबा ने की।