Moradabad:दिव्यांगता नहीं तोड़ पाई संजीव का हौंसला, बच्चों में शिक्षा की जगा रहे अलख
मझोला थाना क्षेत्र के गांव मनोहरपुर निवासी दिव्यांग संजीव सिंह ने शिक्षा के क्षेत्र में नई अलख जगा गांव के बच्चों का भविष्य संवारने में जुटे है। पैर से दिव्यांग होते हुए भी गरीब और जरूरतमंद बच्चों को मुफ्त शिक्षा देते है।
दिव्यांगता भी नहीं तोड़ पाई संजीव का हौंसला,बच्चों को शिक्षित कर जगा रहे अलख।
मझोला थाना क्षेत्र के गांव मनोहरपुर निवासी दिव्यांग संजीव सिंह ने शिक्षा के क्षेत्र में नई अलख जगाकर गांव के बच्चों का भविष्य को संवारने में जुटे हुए हैं। एक पैर से दिव्यांग होते हुए भी,उन्होंने बच्चों के सपनों को साकार किया है। पहले खुद सरकारी परीक्षाओं की तैयारी करने में संजीव को सफलता नहीं मिल सकी,जिसके बाद उन्होंने हार मान ली और वह अवसाद का शिकार हो गए थे,मगर उसके बाद संजीव ने गरीब और जरूरतमंद बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देकर उनके भविष्य को संवारने का जिम्मा उठाया है। संजीव के परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी, उन परिस्थितियों से जूझते हुए संजीव ने शिक्षा के महत्व को समझा और बच्चों को शिक्षा की रोशनी देने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। उनका कहना है कि शिक्षा ही सबसे बड़ी ताकत है।
जिंदगी में आ रही चुनौतियों के चलते संजीव की पढ़ाई और परिवार की आर्थिक स्थिति प्रभावित हो गई थी, मगर उन्होंने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी। एम.ए. की पढ़ाई पूरी करने के बाद घर पर ही बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। मौजूदा समय में वह पाँच घंटे रोज़ गांव के बच्चों को पढ़ाते हैं। आर्थिक रूप से सक्षम अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए कुछ धनराशि देते हैं, जिससे उनका खर्च चलता है, मगर गरीब बच्चों को निःशुल्क शिक्षा भी प्रदान करते हैं। संजीव का सपना है कि शिक्षा की रोशनी हर घर में पहुंचे, ताकि गरीबी का चक्र टूट सके। वो मानते हैं कि परिस्थितियों से लड़ने का सबसे बड़ा हथियार शिक्षा है।
संजीव ने बताया कि वो खुद कंपटीशन की तैयारी कर रहे थे,मगर कुछ ऐसी परिस्थितियां आ गईं कि उन्हें कोई सहारा नहीं मिला और वो डिप्रेशन में चले गए। फिर धीरे-धीरे उन्होंने खुद को संभाला और शिक्षा को अपना सहारा बना लिया। संजीव ने पहले एक बच्चे को पढ़ाना शुरू किया और फिर धीरे-धीरे उनके पास और बच्चे आने लगे।
संजीव के पास शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चों ने बताया कि सर बहुत अच्छा पढ़ाते हैं।हमें अक्षरों का जान भी नहीं था,मगर जब से यहां आना शुरू किया है। उसके बाद से हमने बहुत कुछ सीखा है। सर कहते हैं कि मुझे कामयाबी नहीं मिली तो कोई बात नहीं, मगर यहां से अगर एक भी बच्चा आगे निकला तो गर्व की अनुभूति होगी।