मुरादाबाद, वाईबीएन संवाददाता।
गांवों की शांत सुबह में गौरैया कभी अपनी खुशनुमा चहचहाहट से रंग भर देती थी।लेकिन समय के साथ ये नन्हीं चिड़िया हमारी जिंदगी से गायब होती जा रही है। कभी भारी संख्या में रहने वाली घरेलू गौरैया अब कई जगहों पर एक दुर्लभ दृश्य और रहस्य बन गई है। इन छोटे पक्षियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उनकी रक्षा करने के लिए हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है।
माना जाता है कि गौरैया का विकास इंसान के साथ-साथ ही हुआ है। तभी से ये नन्हीं चिड़िया जंगलों के बजाय आबादी में रहने के लिए जानी जाती है। और बीते कई दशकों से यह चिड़िया हमारे साथ हमारी इमारतों और बगीचों में रह रही है,लेकिन पिछले दो दशकों में हर क्षेत्र में गौरैया की आबादी घट रही है।
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पहले कच्चे घरों में होता था इस नन्हीं चिड़िया का आशियाना
ग्रामीण क्षेत्रों में पहले ये नन्हीं चिड़िया कच्चे मकानों में अपना घोंसला बना कर रहा करती थी। इस चिड़िया का विलुप्त होने का कारण पक्के घरों का होना भी सामने आया है। क्योंकि अब शहर और देहात क्षेत्रों में कच्चे मकान नहीं देखे जाते हैं। और अब घरों के डिजाइन में गौरैया के लिए घोंसला बनाने की कोई जगह नहीं है।
भारत में घरेलू गौरैया की आबादी में हाल के दशकों में गिरावट देखी गई है। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एग्रीकल्चरल साइंस की एक रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब, हरियाणा,पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में गौरैया की आबादी बहुत कम होती जा रही है।भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एक हालिया अध्ययन के अनुसार आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश में घरेलू गौरैया की आबादी 88 फीसदी तक कम हो गई है और केरल, गुजरात,राजस्थान जैसे अन्य राज्यों में यह 20 फीसदी तक कम हो गई है।
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