Advertisment

Climate Change: काश! टिप्पिंग प्वाइंट न लांघ पाएं ड्योढ़ी, जलवायु परिवर्तन की ‌स्थिति गंभीर

दुनिया की सामाजिक और आर्थिक संरचनाओं में बदलाव ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को प्रभावित कर रहे हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन की स्थिति गंभीर हो रही है।

author-image
Dhiraj Dhillon
एडिट
काश! टिप्पिंग प्वाइंट न लांघ पाएं ड्योढ़ी
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

अवधेश कुमार गुप्त

Advertisment

धरती की जलवायु भयानक दौर से गुजर रही है। पर्यावरण विज्ञानियों ने चेतावनी दी है कि मौजूदा जलवायु नीतियों में बदलाव न किया तो दुनिया में कई मौसम टिप्पिंग पॉइंट सक्रिय हो सकते हैं। टिप्पिंग पॉइंट वह लक्ष्मण रेखा है जिसको पार करते ही एक छोटी सी घटना से किसी जलवायु प्रणाली में खतरनाक और अपरिवर्तनीय बदलाव हो सकते हैं, जैसे कि आर्कटिक बर्फ का पिघलना आदि। एक शोध में वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की 16 अलग-अलग जलवायु प्रणालियों का विश्लेषण किया।

 इनमें अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में बर्फ पिघलने, अमेजन जंगलों के सूखने और उष्णकटिबंधीय मूंगे की चट्टानों का अध्ययन हुआ। अलग सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों पर आधारित अध्ययन बताता है कि दुनिया की सामाजिक व्यवस्था, जीने के तौर-तरीकों, आबादी और अर्थव्यवस्था में बड़े बदलाव ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन पर असर डाल रहे हैं। यदि दुनिया ग्रीन हाउस गैसें घटाकर विकास के पर्यावरण केंद्रित रास्ते नहीं अपनाती है तो दुनिया ऐसे खतरनाक मोड़ पर पहुंचेगी, जहां से सुरक्षित वापसी आसान नहीं होगी।

26 फीसदी कम हुए अमेजन के जंगल

Advertisment

हम देख रहे हैं कि अमेजन के जंगलों का 26 फीसदी हिस्सा अब नहीं है। य़ह हमारे लालच का दुष्परिणाम है। वहां पिछले चालीस साल में जंगल काटकर कृषि क्षेत्र तीन गुना कर लिया है। इसके साथ खनन, भूगर्भीय तेल, जलविद्युत और बड़ी सड़क परियोजनाएं जंगल चाट जा रही हैं। अमेजन के निर्जन वनों में हाईवे पहुंचने से जंगल खत्म हो रहे हैं। 350 जल विद्युत परियोजनाएं काम कर रही हैं। इनके आठ सौ से ज्यादा होने का अनुमान है। इसकी वज़ह से अमेजन की एक हजार से ज्यादा सहायक नदियों पर प्रभाव पड़ेगा। कथित विकास से हुए नुकसानों की भरपाई अब असंभव सी दिखती है। अमेजन को धरती के फेफड़े कहा जाता है। हमने धरती को अमेजन से मिलने वाली ऑक्सीजन का चौथाई हिस्सा छीन लिया। सिर्फ इतना नहीं, यहां खपने वाली उतनी ही जहरीली गैसों को वायुमण्डल में आतंक मचाने की खुली छूट दे दी। इससे धरती का ताप बढ़ रहा है। नतीज़ा बाढ़, सूखा, तूफान और लू जैसी कठिन परिस्थितियां बन रही हैं। 

जानिए क्या कहते हैं शोध

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के कई शोध कहते हैं कि यदि यह टिप्पिंग प्वाइंट्स एक सीमा को पार कर जाते हैं तो जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाला आर्थिक नुकसान करीब 25 फीसदी बढ़ जाता है। अब तक नौ टिप्पिंग पॉइंट सक्रिय हो चुके हैं। जिनमें अमेजन के जंगल, आर्कटिक की समुद्री बर्फ, अटलांटिक सर्कुलेशन, उत्तर के जंगल (बोरियल वन), मूंगा चट्टानें, ग्रीनलैंड की बर्फ, परमाफ्रॉस्ट, पश्चिम अंटार्कटिक बर्फ की चादर व विल्क्स बेसिन शामिल हैं। तापमान में वृद्धि जितनी ज्यादा होगी, टिप्पिंग पॉइंट को रोकने के लिए हमारे पास उतना ही कम समय होगा। पेरिस समझौते में वैश्विक तापमान वृद्धि पर 1.5 डिग्री सेल्सियस की लगाम लगाने पर सहमति बनी थी, लेकिन इस पर अंकुश मुश्किल ही दिख रहा है।

Advertisment

2024 अब तक का रिकॉर्ड गर्म वर्ष था

पिछला साल अब तक का रिकॉर्ड गर्म वर्ष था। पारा ने कई बार 1.5 की सीमा रेखा लांघने की बेचैनी दिखाई।  यही लगता है कि य़ह सीमा रेखा जल्द ही पीछे छूट जाएगी। इस साल के बारे में पहले से तय माना जा रहा है कि य़ह साल गर्मी के पिछले साल के सारे रिकॉर्ड तोड़ेगा। इसका सीधा मतलब है कि हमें विनाशकारी परिवर्तनों के लिए तैयार हो जाना चाहिए। हालांकि अभी मौका है। जिन टिप्पिंग प्वाइंट्स में बदलाव धीमी गति से हो रहा है, उन्हें अभी सुधारा जा सकता है। फिर भी अमेजन जैसे स्थानों में बदलाव की गुंजाइश कम है। वहां दुष्परिणाम कुछ ही दशकों में दिखने लगेंगे। दुनिया के 180 देशों में बढ़ते तापमान और समुद्र के जलस्तर के कारण होने वाली पर्यावरणीय क्षति को आधार बनाकर एक अध्ययन किया गया है। उसके अनुसार इस बात की अशंका है कि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाला आर्थिक नुकसान दोगुना हो जाए।

आर्कटिक की घटती बर्फ ग्लोबल वार्मिंग बढ़ा रही

Advertisment

भारत की बात करें तो मानसून में बदलाव सीधे तौर पर जीडीपी को प्रभावित कर रहा है। भारत के बाढ़ और सूखा वैश्विक नुकसान में 1.3 फीसदी का योगदान करते हैं। पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन निकलती है। य़ह खतरनाक है। आर्कटिक की घटती बर्फ ग्लोबल वार्मिंग बढ़ा रही है। अमेजन के जंगल सूखने से कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में मुक्त नहीं होती है। ग्रीनलैंड की बर्फ पिघलने से समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। इस सभी से भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है। इसलिए वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को जल्द से जल्द रोकने की जरूरत है। तभी दुनिया की तमाम जैवविविधताओं को बचाया जा सकेगा। इसमें स्थानीय समाज की जैवविविधताओं के प्रति संवेदनशीलता और उनका परम्परागत स्वदेशी ज्ञान कारगर हैं। दुनिया के कई देशों में जहां पर्यावरणीय क्षति अपेक्षाकृत कम हुई है, उसके मूल में यही कारक हैं। मूल निवासी ही उन्हें बचा रहे हैं। 

... जब जागे तभी सवेरा

इसलिए प्रकृति के साथ सहअस्तित्व के सिद्धांत को समझना होगा। अभी देर नहीं हुई है। जब जागे तभी सवेरा। अगर सतत विकास के राह पर चलें और उत्सर्जन सीमित करें तो जलवायु संकट को रोका जा सकता है। जरूरत है कि समाज और अर्थव्यवस्था में सकारात्मक बदलाव हो। सबसे पहले हमें अपनी जीवन शैली बदलनी होगी। इसे प्रकृति के अनुरूप बनाना होगा। जल, जंगल जमीन से संघर्ष के बजाय सामंजस्यपूर्ण संबंध बनाना होगा। मनुष्य प्रकृति से ऊपर नहीं है, उसी का हिस्सा है। हमने अपनी जिद में बहुत कुछ खो दिया है। आपको पता है धरती पर मौजूद कुल स्तनपायी जीवों में इंसान 36 फीसदी, मवेशी 60 फीसदी और जंगली स्तनधारी जीव केवल चार फीसदी बचे हैं। य़ह आपकी प्रकृति से संघर्ष की जिद का नतीज़ा है। धरती का तीन चौथाई और समुद्र का दो तिहाई पर्यावरण इंसानी जिद के चलते गंभीर बदलाव के मुहाने पर खड़ा है। इसलिए टिप्पिंग पॉइंटस विनाश की ड्योढ़ी पार न कर पाएं इसके हर सम्भव उपाय करिए। जल जोड़ें, पेड़ पौधे जोड़ें, विकास को प्रकृति उन्मुख बनाए। अन्यथा अनर्थ को रोकना मुश्किल होगा।

लेख में दिए गए सुझाव लेखक की निजी राय है।

climate | climate change | climate news | climate update | climate change India

climate climate change climate news climate update climate change India
Advertisment
Advertisment